शिवसेना नेता संजय निरुपम ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के बीच हालिया गठजोड़ पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने MNS प्रमुख राज ठाकरे के उस बयान की कड़ी निंदा की, जिसमें उन्होंने कहा था कि जो लोग मराठी बोलने से इनकार करते हैं, उनकी पिटाई करनी चाहिए. लेकिन इसका वीडियो नहीं बनाना चाहिए. निरुपम ने इसे गलत और गरीबों के खिलाफ हिंसक रवैया करार दिया है. उन्होंने कहा कि इस तरह की हरकतों से दोनों पार्टियों का जनाधार बढ़ने के बजाय और सिकुड़ेगा.
संजय निरुपम ने उद्धव ठाकरे से सीधा सवाल किया, 'क्या वह राज ठाकरे की इस घोषणा से सहमत हैं कि अगर कोई मराठी बोलने से इनकार करता है, तो उसे पीटा जाना चाहिए, लेकिन उसका वीडियो नहीं बनाया जाना चाहिए. जिस तरह की गतिविधियां वे कर रहे हैं, जिस तरह से वे गरीब लोगों की पिटाई कर रहे हैं, वह पूरी तरह से गलत है और अगर वे इस तरह से पार्टी का जनाधार बढ़ाना चाहते हैं, तो मैं आज गारंटी के साथ कह रहा हूं कि जनाधार नहीं बढ़ेगा, बल्कि आज जो वोट बैंक उनके पास है, वह भी काफी कम हो जाएगा...'
'उद्धव और राज की पार्टी ने खोई राजनीतिक जमीन'
निरुपम ने MNS और शिवसेना (UBT) के गठजोड़ को 'महाविकास अघाड़ी' (MVA) का नया रूप करार दिया और इसे 'ठाकरे विकास अघाड़ी' (TVA) का नाम दिया.
उन्होंने दावा किया कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे, दोनों की पार्टियों ने अपनी राजनीतिक जमीन खो दी है और उनका वोट बैंक लगभग खत्म हो चुका है. अपने जनाधार को फिर से हासिल करने और विस्तार करने के लिए, दोनों नेताओं ने मराठी भावनाओं को भड़काने की रणनीति अपनाई है.
भाषा का सम्मान होना चाहिए
निरुपम ने कहा कि मराठी भाषा का सम्मान महाराष्ट्र में होना चाहिए और उनकी पार्टी मराठी भाषा के विकास और समृद्धि के लिए लगातार कोशिश कर रही है. हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भाषा के नाम पर लोगों की भावनाओं को भड़काकर वोट मांगना पूरी तरह से गलत है.
'भाषा के नाम पर राजनीतिक लाभ लेना गलत'
उन्होंने कहा, 'स्वास्थ्य, विकास, शिक्षा जैसे मुद्दों के नाम पर वोट मांगा जा सकता है, लेकिन भाषा के नाम पर लोगों की भावनाओं को उकसाकर राजनीतिक लाभ लेना गलत है.'
उन्होंने आगे कहा कि MNS और शिवसेना (UBT) ने अपने गठजोड़ में एनसीपी (शरदचंद्र पवार), सीपीएम और अन्य छोटी पार्टियों को शामिल किया है, लेकिन कांग्रेस को इससे बाहर रखा गया है. यह गठजोड़ उनके अनुसार, केवल मराठी भावनाओं को भुनाने की कोशिश है, ताकि दोनों पार्टियां अपने खोए हुए जनाधार को फिर से हासिल कर सकें.
आपको बता दें कि महाराष्ट्र की राजनीति में मराठी अस्मिता और भाषा का मुद्दा हमेशा से संवेदनशील रहा है. MNS और शिवसेना दोनों ही पार्टियां लंबे समय से मराठी मानुष के हितों की रक्षा का दावा करती रही हैं. हालांकि, हाल के सालों में दोनों का जनाधार कम हुआ है. साल 2019 में शिवसेना के विभाजन के बाद उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के बीच टकराव ने पार्टी की ताकत को और कम किया है. वहीं, राज ठाकरे की MNS भी लगातार अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है.