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Bombay HC की फटकार, बायलॉजिकल मां जीवित तो बच्चे नहीं कहला सकते अनाथ

जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस आरएन लड्डा एक चाइल्ड केयर होम 'द नेस्ट इंडिया फाउंडेशन' की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे. याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया था कि वह इन दोनों नाबालिग लड़कियों को अनाथ घोषित करने वाले सर्टिफिकेट जारी करने का निर्देश दें. 

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बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सख्त लहजे में कहा कि अगर किसी बच्चे की बायोलॉजिकल मां जीवित है तो उस बच्चे को किसी भी कीमत पर अनाथ नहीं कहा जा सकता. अदालत ने इस मामले में दायर एक एनजीओ की याचिका खारिज कर दी. दरअसल इस याचिका में दो नाबालिग लड़कियों को अनाथ घोषित करने की मांग की गई थी. 

हालाकि, अदालत ने एनजीओ को एक सक्षम अथॉरिटी से संपर्क करने की अनुमति दे दी, जो मामले पर गौर कर लड़कियों को अनाथ घोषित करने की याचिका पर उचित फैसला ले सके. अदालत ने इस अथॉरिटी से 14 नवंबर तक इस पर फैसला लेने को कहा है. 

जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस आरएन लड्डा एक चाइल्ड केयर होम 'द नेस्ट इंडिया फाउंडेशन' की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे. याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया था कि वह इन दोनों नाबालिग लड़कियों को अनाथ घोषित करने वाले सर्टिफिकेट जारी करने का निर्देश दें. 

छोड़े गए बच्चे (Abandoned Child) घोषित करने की मांग

एनजीओ की ओर से मामले की पैरवी कर रहे अधिवक्ता अभिनव चंद्रचूड़ ने अदालत के समक्ष कहा कि इन लड़कियों की माएं जीवित हैं लेकिन फिर भी इन्हें जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत अनाथ घोषित किया जा सकता है. 

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उन्होंने कहा कि यह मान लें कि अगर इन लड़कियों को अनाथ घोषित नहीं किया जा सकता तो भी इन्हें छोड़े गए बच्चे (Abandoned Child) घोषित किया जा सकता है. ये लड़कियां चार से पांच साल की उम्र से एनजीओ में रह रही हैं और इनकी माएं इन सालों में मुश्किल ही इनसे मिलने आई हैं. 

उन्होंने कहा, अगर तकनीकी रूप से इन लड़कियों को अनाथ घोषित नहीं किया जा सकता तो इन्हें त्यागे गए बच्चे घोषित किया जा सकता है. कानून छोड़े गए और अनाथ के बीच में भेद नहीं करता क्योंकि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में दोनों की एक ही परिभाषा है.

एनजीओ की विश्वसनीयता पर उठे सवाल

मामले में सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अभी तक एनजीओ की विश्वसनीयता का ही पता नहीं चल पाया है क्योंकि यह एनजीओ रजिस्टर्ड नहीं है. 

उन्होंने कहा, यह गैराकनूनी रूप से चलाया जा रहा चाइल्ड केयर होम है. कई बार इसे लेकर एनजीओ को नोटिस भी जारी किए गए हैं. इन लड़कियों को अनाथ घोषित नहीं किया जा सकता क्योंकि इनकी बायोलॉजिकल माएं जीवित हैं. 

इसके बाद पीठ ने अधिवक्ता कंथारिया से सहमति जताते हुए कहा कि इन लड़कियों की माओं के जीवित होने की वजह से इन्हें अनाथ घोषित नहीं किया जा सकता.

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