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DU के प्रोफेसर हनी बाबू की जमानत का NIA ने किया विरोध, बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला

हनी बाबू को एनआईए ने 28 जुलाई 2020 को गिरफ्तार किया था. उन पर आरोप है कि उनके संबंध प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) और रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (RDF) से हैं. एनआईए की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने जमानत का विरोध किया.

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कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखते हुए कहा कि फैसला लिखने में कुछ समय लगेगा. (File Photo- ITG)
कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखते हुए कहा कि फैसला लिखने में कुछ समय लगेगा. (File Photo- ITG)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी प्रोफेसर हनी बाबू की जमानत याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया. बाबू पिछले पांच साल दो महीने से पुणे की जेल में बंद हैं. उन्हें 2018 के भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किया गया था.

हनी बाबू की ओर से वकील युग मोहित चौधरी ने दलील दी कि उनके मुवक्किल को बिना ट्रायल के अत्यधिक समय तक जेल में रखा गया है. चौधरी ने इस मामले के अन्य आरोपियों जैसे वर्नन गोंजाल्विस का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने इसी आधार पर जमानत दी थी.

चौधरी ने कहा, “चार्जशीट अब तक तय नहीं हुई है और दो साल पहले दाखिल की गई डिस्चार्ज अर्जी पर भी अभियोजन पक्ष ने कोई जवाब नहीं दिया है. अदालत ने पहले 9 महीने के भीतर ट्रायल पूरा करने के निर्देश दिए थे, लेकिन यह अवधि 8 अक्टूबर को पूरी हो रही है और अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को रखी गई है. क्या यह दिखाता है कि अभियोजन पक्ष ट्रायल शुरू करने का इरादा भी रखता है? यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं है?”

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NIA ने किया विरोध

एनआईए की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने जमानत का विरोध किया. उन्होंने कहा कि वर्नन गोंजाल्विस को केवल लंबी कैद के आधार पर जमानत नहीं मिली थी, बल्कि इसलिए भी मिली क्योंकि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं था. हनी बाबू आतंकी गतिविधियों में शामिल हैं.

उन्होंने यह भी दलील दी कि बाबू ने अभी तक उतना समय जेल में नहीं बिताया है जितना कुछ अन्य आरोपियों ने. साथ ही, एनआईए ने ट्रायल कोर्ट में बाबू को केस से बरी करने की मांग पर जवाब दाखिल कर दिया है और किसी भी समय बहस के लिए तैयार है. लेकिन ट्रायल कोर्ट ने सभी डिस्चार्ज अर्जियों को एक साथ सुनने का निर्णय लिया है, जिससे देरी हो रही है.

चौधरी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेशों की अनदेखी की गई है. “पांच साल बाद भी ट्रायल शुरू होने की कोई संभावना नज़र नहीं आ रही है,” उन्होंने कहा.

जस्टिस ए.एस. गडकरी और आर.आर. भोंसले की बेंच ने आदेश सुरक्षित रखते हुए कहा कि फैसला लिखने में कुछ समय लगेगा. इस दौरान चौधरी ने एक और आग्रह करते हुए कहा कि अगर अदालत जमानत देने पर सहमत होती है तो नाम की स्पेलिंग ठीक की जाए क्योंकि कोर्ट रिकॉर्ड में उनका नाम "बानू" दर्ज है. अगर जेल रिकॉर्ड में यही नाम रहा तो रिहाई में दिक्कत हो सकती है. हालांकि, अदालत ने कहा, “यह नाम ट्रायल कोर्ट से ठीक करवा लें.”

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हनी बाबू पर हैं ये गंभीर आरोप

बता दें कि हनी बाबू को एनआईए ने 28 जुलाई 2020 को गिरफ्तार किया था. उन पर आरोप है कि उनके संबंध प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) और रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (RDF) से हैं. साथ ही, उन पर यह भी आरोप है कि वे दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी.एन. साईबाबा की रक्षा समिति के सदस्य थे. साईबाबा को माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा मिली थी.

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