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घर लौटने के लिए पत्नी से मंगवाए थे उधार पैसे, ठेकेदारों से बचे तो मालगाड़ी ने ली जान

मृतक की पत्नी पुष्पा ने स्व-सहायता समूह से एक हजार रुपये उधार लेकर अपने पति को भेजे थे. पैसा ठेकेदार के खाते में भेजा गया था. इसलिए उन्होंने पांच सौ रुपये ही बिरगेन्द्र को दिए. बाकी के पांच सौ यह कहते हुए काट लिए कि लॉकडाउन में तुम्हारे ऊपर खिलाने में खर्च हुए.

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मालगाड़ी से कटकर 16 मजदूरों की हो गई थी मौत. (फोटो-पीटीआई)
मालगाड़ी से कटकर 16 मजदूरों की हो गई थी मौत. (फोटो-पीटीआई)

  • कुछ दिनों पहले ही पत्नी को फोन कर बताई थी खाने की दिक्कत
  • पत्नी ने स्व-रोजगार समूह से बात कर उधार लिए थे पैसे

महाराष्ट्र के औरंगाबाद से शुक्रवार सुबह खबर आई कि ट्रेन की पटरियों पर सोते 16 मजदूर मालगाड़ी ट्रेन की चपेट में आ गए और सभी की मौत हो गई. इस दुर्घटना ने देशभर में लॉकडाउन से प्रभावित लाखों मजदूरों की दुर्दशा को उजागर किया, जो हर हाल में अपने घर लौटना चाहते हैं. लेकिन रविवार को इन मजदूरों की बेबसी की एक और बानगी दिखी. पता चला कि इनके पास वापस लौटने के पैसे नहीं थे तो परिजनों ने लोगों से उधार पैसे मांग कर उनके खाते में डाले थे.

मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के ममान गांव के रहने वाले बिरगेन्द्र ने कुछ दिनों पहले पत्नी को फोन किया था. उसने बताया था कि खाने-पीने के लाले हैं. इसलिए वापस घर आना चाहते हैं. लेकिन वापस भी कैसे आएं, पास में पैसे भी नहीं हैं.

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जिसके बाद मृतक की पत्नी पुष्पा ने स्व-सहायता समूह से एक हजार रुपये उधार लेकर अपनी पति को भेजे थे, जिससे कि वह वापस घर आ सके. हालांकि पैसा ठेकेदार के खाते में भेजा गया था. इसलिए उन्होंने पांच सौ रुपये ही बिरगेन्द्र को दिए. बाकी के पांच सौ यह कहते हुए काट लिए कि लॉकडाउन में तुम्हारे ऊपर खिलाने में खर्च हुए.

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इसी तरह मृतक नेमशाह की पत्नी ने भी स्व-सहायता समूह से एक हजार रुपये लेकर ठेकेदार के खाते में जमा कराए, जिससे कि परदेस में फंसा पति वापस आ सके. ठेकेदार ने यहां भी पांच सौ रुपये खाना-खर्चे के नाम पर काट लिए. नेमशाह के पास ठेकेदार की बात मानने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था, क्योंकि उसे घर लौटना था.

यानी कि मजदूरों को ना सरकार की मदद मिली और ना ठेकेदार की. घर आने की चाहत ने उनकी जीवन लीला ही समाप्त कर दी.

बता दें, हादसे में मारे गए मजदूर मध्य प्रदेश के रहने वाले थे. मजदूर जालना में एक एसआरजी कंपनी में काम कर रहे थे. लॉकडाउन की वजह से मजदूर यहीं फंसे रह गए. 5 मई को मजदूरों ने घर लौटने के बारे में सोचा. कुछ दूर सड़क मार्ग से चलते रहने के बाद मजदूरों ने औरंगाबाद के पास रेलवे ट्रैक के साथ चलना शुरू कर दिया.

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जालना से भुसावल 36 किलोमीटर पैदल चलकर मजदूर थक गए थे, इसलिए रेलवे पटरी पर ही आराम करने लगे. सभी मजदूर थक कर इतने चूर हो गए थे कि उन्हें झपकी आ गई और ट्रेन सुबह 5:15 के करीब उनके ऊपर से निकल गई.

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