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तुअर दाल का बंपर उत्पादन बना किसानों के गले की फांस

बंपर फसल की वजह से भारत का 'तुअर दाल' में विश्व के सबसे बड़े उत्पादक देश का दर्जा बरकरार है. पीली दाल के नाम से भी जानी जाने वाली तुअर दाल के दाम खुले बाजार में सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम होने की वजह से किसानों की हालत खराब है.

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तुअर दाल की अच्छी हुई पैदावार
तुअर दाल की अच्छी हुई पैदावार

बंपर फसल की वजह से भारत का 'तुअर दाल' में विश्व के सबसे बड़े उत्पादक देश का दर्जा बरकरार है. पीली दाल के नाम से भी जानी जाने वाली तुअर दाल के दाम खुले बाजार में सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम होने की वजह से किसानों की हालत खराब है. उनके जख्मों पर नमक छिड़कने वाली बात ये है कि देश में बंपर उत्पादन के बावजूद सरकार ने इस दाल का बाहर से आयात करना जारी रखा हुआ है. सरकार जितने दामों में बाहर से ये दाल मंगा रही है उसके आधे ही दाम घरेलू उत्पादकों को दे रही है.

प्रोटीन की प्रचुरता की वजह से पीली दाल को आम आदमी के लिए प्रोटीन का आसानी से उपलब्ध होने वाला साधन माना जाता है. लेकिन अब ये दाल अपने उत्पादकों के लिए ही जी का जंजाल बन गई है. मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में किसानों में से एक दीपक हैं जो अधिक जमीन पर पीली दाल का उत्पादन कर पछता रहे हैं. दीपक ने पीली दाल के दाम बीते साल रिटेल मार्केट में 200 रुपए प्रति किलो तक पहुंचने के बाद अधिक क्षेत्र में इसका उत्पादन करने का फैसला किया.

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केंद्र सरकार ने जब मोजाम्बिक से 9000 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से पीली दाल मंगाने का एलान किया तो दीपक को अपना फैसला सही नजर आया. दीपक की तरह और किसानों ने भी अधिक क्षेत्र में पीली दाल को उगाया. इस साल पीली दाल की बहुत अच्छी पैदावार हुई लेकिन किसानों के चेहरे फिर भी मुरझाए हुए हैं. दरअसल, पीली दाल के दाम भी तेजी से कम हुए हैं.

खराब क्वालिटी के नाम पर नहीं हो रही खरीदारी
एक तरफ सरकार मोजाम्बिक से 9000 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से पीली दाल खरीद रही है. वहीं घरेलू उत्पादकों के लिए पीली दाल का समर्थन मूल्य 5050 रुपए प्रति क्विंटल ही रखा गया है. दीपक ने इंडिया टुडे को बताया कि सरकार 5050 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से पीली दाल खरीद तो रही है लेकिन अधिकतर मात्रा को खराब क्वालिटी के नाम पर खारिज कर रही है.

एक और किसान सुनील जाट ने भी ऐसी ही चिंता जताई. सुनील जाट ने कहा, 'हमने पिछले साल पीली दाल का अधिक जमीन पर उत्पादन करने का फैसला किया. बारिश और ओलावृष्टि की वजह से कुछ दाल खराब हो गई. अब सरकार इसे घटिया क्वालिटी का बता कर नहीं खरीद रही.'

कारोबारी उठा रहे फायदा
किसान जहां बेहाल हैं वहीं कारोबारियों की बन आई है. जब सरकारी एजेंसियां किसानों से दाल खरीदने से इनकार कर देती हैं तो ये कारोबारी किसानों से औने-पौने दामों में दाल खरीद लेते हैं. किसानों के पास भी और कोई चारा नहीं होता. अगर वो दाल को वापस ले जाएं या खुले में छोड़ें तो और नुकसान का डर रहता है. नरसिंहपुर में कारोबारी पीली दाल के लिए 3000 से 4000 रुपए प्रति क्विंटल दाम दे रहे हैं.

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कृषि मंत्री गौरी शंकर बिसेन से किसानों की बदहाली पर आजतक ने बात की तो ये जवाब मिला, 'ये सच है कि सरकार ने मोजाम्बिक के साथ दीर्घकालीन दाल खरीद समझौता किया था और वो अब भी जारी है. ये इसलिए है क्योंकि सरकार को समझौते का सम्मान करना है. लेकिन अब ये किसानों के हितों से टकरा रहा है.'

सरकार ने जुलाई 2016 में दीर्घकालीन आयात कॉन्ट्रेक्ट पर दस्तखत करते हुए ये साफ किया था कि जैसे ही घरेलू उत्पादन बढ़ेगा वैसे ही दाल का आयात कम कर दिया जाएगा. लेकिन लगता है कि सरकार को अपनी ये बात याद नहीं रही है और 'अन्नदाता' किसान को परेशान होना पड़ रहा है.

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