झारखंड में शिक्षा की स्थिति पर दशकों से बहस चल रही है. पासवा अध्यक्ष आलोक कुमार दुबे ने कहा है कि राज्य में उच्च वर्ग से लेकर निम्न वर्गीय परिवार भी अपने बच्चों को निजी विद्यालय में शिक्षा दिलाना चाहते हैं. इसका मुख्य कारण निजी विद्यालयों की गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा और आधुनिक सुविधाएं हैं.
मुख्यमंत्री का शिक्षा के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का शिक्षा के प्रति संवेदनशील हैं और निजी विद्यालयों को प्रोत्साहित करने का रुख इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है.
सरकारी विद्यालयों को प्राथमिकता देने की अपील
पासवा अध्यक्ष आलोक कुमार दुबे ने अधिकारियों और पदाधिकारियों से अपील की है कि वे अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में पढ़ाएं और निजी विद्यालयों में दाखिले के लिए सिफारिश न करें. इससे सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता, जवाबदेही और व्यवस्था में स्वाभाविक सुधार होगा.
निजी विद्यालयों का पारदर्शी संचालन
कई निजी विद्यालय सूचना का अधिकार (RTI) के अंतर्गत पारदर्शिता के साथ संचालित हो रहे हैं. इनके संचालन के लिए बनी समितियां सक्रिय हैं, और यदि कहीं ये निष्प्रभावी हैं तो उन्हें प्रभावी बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए.
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सरकारी स्कूलों की गिरती गुणवत्ता पर ध्यान
पहले की अपेक्षा आज सरकारी विद्यालयों की स्थिति में गिरावट आई है. सरकार को निजी विद्यालयों की आलोचना करने के बजाय सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि सरकारी विद्यालयों के प्रिंसिपल, शिक्षक और शिक्षा अधिकारी अपने बच्चों का दाखिला उन्हीं स्कूलों में कराएं जहाँ वे पढ़ाते हैं, अन्यथा उन्हें पदमुक्त कर दिया जाए.
निजी विद्यालयों को प्रोत्साहन देने की जरूरत
झारखंड की शिक्षा व्यवस्था में निजी विद्यालयों की महत्वपूर्ण भूमिका है. उच्च वर्ग से लेकर बीपीएल परिवार तक के लोग अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ाना चाहते हैं, इसलिए सरकार को इन विद्यालयों को प्रोत्साहित करना चाहिए.
फीस भुगतान से जुड़ी चुनौतियां
BPL छात्रों को नि:शुल्क शिक्षा मिलती है, लेकिन अन्य कई छात्र समय पर फीस नहीं देते या बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं, जिससे निजी विद्यालयों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ता है.
निजी विद्यालयों की विविधता
झारखंड में दो प्रकार के निजी विद्यालय हैं: एफिलिएटेड और नॉन-एफिलिएटेड. एफिलिएटेड विद्यालयों में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रशिक्षित शिक्षक होते हैं, जिससे उनकी लागत अधिक होती है. वहीं, छोटे निजी विद्यालय कम शुल्क में भी शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं.
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निजी विद्यालयों पर अनावश्यक दोषारोपण अनुचित
कुछ संगठित समूह निजी विद्यालयों को निशाना बनाकर राज्य की शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि 90% अभिभावकों को निजी विद्यालयों से कोई शिकायत नहीं है.
सरकार और जनता से अपील
सरकार इस मुद्दे को संवेदनशीलता से देख रही है और भ्रम फैलाने वालों की मंशा को समझती है. पासवा जनता से अपील करता है कि वे किसी नकारात्मक मुहिम का हिस्सा न बनें और सच्चाई को समझें. डोनेशन या पैरवी पर एडमिशन लेने वाले अभिभावक ही अधिक शोर मचाते हैं.
आधुनिक सुविधाओं से युक्त शिक्षण प्रणाली
निजी विद्यालयों में आधुनिक लैब, पुस्तकालय, स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर लैब और खेल-कूद की सुविधाएं बच्चों के समग्र विकास में मदद करती हैं.
डिजिटल लर्निंग और टेक्नोलॉजी का प्रयोग
निजी विद्यालय डिजिटल टेक्नोलॉजी के माध्यम से बच्चों को स्मार्ट और वैश्विक स्तर की शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, जिससे बच्चों की सीखने और समझने की क्षमता में वृद्धि होती है.
सह-पाठयक्रम और व्यक्तित्व विकास
निजी विद्यालय छात्रों के व्यक्तित्व निर्माण, नेतृत्व कौशल, भाषण कला, नृत्य-संगीत, कला और खेल के माध्यम से उन्हें जीवन के हर क्षेत्र के लिए तैयार करते हैं.
प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में प्रतिभा निखरती है
निजी विद्यालयों में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी, ओलंपियाड, क्विज और डिबेट्स जैसे आयोजनों से छात्रों की प्रतिभा उभरती है.
फीस एक सेवा का मूल्य है
निजी विद्यालयों की फीस उनके द्वारा दी जा रही उच्च गुणवत्ता की शिक्षा, सुविधाएं और प्रशिक्षित शिक्षकों की लागत का मूल्य है, न कि मुनाफाखोरी.
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ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों का समर्पण
ग्रामीण झारखंड में कई छोटे निजी विद्यालय न्यूनतम शुल्क में भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देकर बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बना रहे हैं.
शिक्षक-छात्र अनुपात में संतुलन
निजी विद्यालयों में शिक्षक-छात्र अनुपात बेहतर होता है, जिससे प्रत्येक छात्र पर विशेष ध्यान दिया जा सकता है.
माता-पिता की भागीदारी
निजी विद्यालयों में पेरेंट्स-टीचर मीटिंग्स, रिपोर्ट कार्ड फीडबैक और ओपन हाउस सत्रों के माध्यम से अभिभावकों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाती है.
अनुशंसा पत्रों का खुलासा उजागर करेगा सच्चाई
पासवा अध्यक्ष आलोक कुमार दुबे ने कहा, जो लोग आज निजी विद्यालयों की आलोचना कर रहे हैं, वही कल इन्हीं विद्यालयों में अपने बच्चों के दाखिले के लिए सिफारिशी पत्र लेकर खड़े थे. यदि सभी अनुशंसा पत्र सार्वजनिक कर दिए जाएं, तो कई तथाकथित जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी और प्रभावशाली व्यक्तियों का दोहरा चरित्र सामने आ जाएगा. यह प्रमाण है कि समाज का प्रभावशाली वर्ग भी निजी विद्यालयों की गुणवत्ता, अनुशासन और वातावरण पर विश्वास करता है.
इससे यह भी स्पष्ट होता है कि जिन निजी विद्यालयों की आज आलोचना हो रही है, वही कभी पहली पसंद रहे हैं. इसलिए निजी विद्यालयों को निशाना बनाना केवल एक राजनीतिक रणनीति प्रतीत होती है, जिससे झारखंड की शिक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंच सकता है.