रांची और आस-पास के इलाकों में खरीददार नहीं होने की वजह से किसान टमाटरों को सड़कों और खेतों में फेंकने को मजबूर हो गए हैं. झारखंड के इन इलाकों से बड़ी मात्रा में टमाटर दिल्ली, यूपी, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर भेजी जाते हैं. इस साल अच्छे मानसून की वजह से भी बंपर फसल हुई है, लेकिन बाहरी खरीदारों के मुंह फेरने की वजह से किसान मजबूरन इसे फेंकने को मजबूर है.
बीज तक के पैसे नहीं निकल पा रहे है
सड़कों और खेतों में फेंके गए ये टमाटर यहां के किसानों की बेबसी को दर्शा रहे है. एक ओर बम्पर फसल और दूसरी तरफ खरीददारों के अकाल की वजह से किसानों की खून-पसीने की मेहनत यूं ही फेंकी जा रही है. दरअसल बाजारों में टमाटरों की कीमत
इतनी कम हो गयी है कि मुनाफा की तो छोड़िये किसान अपनी लागत वसूलने तक में असफल हो रहे है. इन बाजारों में एक क्विंटल टमाटर की कीमत 50 रुपये तक हो गयी है. ऐसे में किसान टमाटरो को खेत से बाजार तक लाने का ऑटो किराया तक
वसूल नहीं कर पा रहे है.
अच्छे मानसून की वजह से हुई है बंपर फसल
इस साल बंपर फसल की वजह से बाजार में टमाटरों की बहुत आवक हुई है. दूसरी तरफ झारखंड के ही रांची और जमशेदपुर के बीच पड़नेवाले बुंडू, तमाड़, रांगामाटी और सोनाहातू जैसे इलाकों के किसानों पर ज्यादा मार पड़ी है. किसानों की माने तो अमूमन
एक एकड़ में टमाटर लगाने पर करीब 35 हजार का खर्च आता है जिससे करीब 90 क्विंटल की पैदावार होती है, जिसे सामान्य दर पर बाजार में बेचने पर 50 हजार तक मुनाफा होता था. लेकिन 50 पैसे की दर पर इसे बेचने पर इन्हें महज 4500 रुपये ही
मिल पा रहे है, जबकि इनकी लागत करीब 4 रुपये प्रति किलो की बैठ रही है. वहीं कांग्रेस के नेता सुखदेव भगत का कहना है कि किसानों की यह हालत नोटबंदी के कारण हुई है.
टमाटर की फसल का बीमा नहीं होता
दुर्भाग्य ये भी है की टमाटरों की फसल का बीमा नहीं होता है, दरअसल फसल बीमा योजना के तहत भी इसे नहीं लाया गया है. ऐसे में किसानों पर चौतरफा मार पड़ रही है. वहीं कई किसानों ने तो बैंको से कर्ज लेकर फसल लगाए है, इन किसानो की हालात
भी बेहद बुरी है.