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हजरतबल दरगाह में अशोक स्तंभ लगाने पर उठे सवाल, जानिए क्या कहते हैं इस्लामिक स्कॉलर और कानून

जम्मू-कश्मीर के हजरतबल दरगाह में अशोक स्तंभ को शुक्रवार को मुस्लिम समुदाय के लोगों ने तोड़ दिया. इसका तर्क दिया है कि इससे उनके धार्मिक भावना को ठेस पहुंची है, जिसे लेकर सियासी विवाद छिड़ गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि इस मामले में आखिर इस्लाम क्या कहता है?

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 हजरतबल दरगाह विवाद पर क्या कहता है इस्लाम (Photo: PTI)
हजरतबल दरगाह विवाद पर क्या कहता है इस्लाम (Photo: PTI)

जम्मू-कश्मीर में हज़रतबल की दरगाह में राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ के तोड़े जाने को लेकर सियासी विवाद खड़ा हो गया है. दरगाह के रेनोवेशन का काम पूरा होने के बाद वक्फ बोर्ड के द्वारा एक शिलापट्ट लगाया गया था, जिसमें राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ उकेरा गया था. कुछ लोगों ने इस्लामी मान्यताओं का हवाला देते हुए इसका विरोध किया और शिलापट्ट से अशोक स्तंभ को तोड़ डाला.

ईद-ए-मिलाद के दिन कश्मीर में जश्न मनाया जा रहा था. हज़ारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग श्रीनगर स्थित हज़रतबल दरगाह में भी पहुंचे थे. हज़रतबल दरगाह में लगे एक पत्थर पर बेकाबू भीड़ टूट पड़ी. इस पत्थर पर बने अशोक स्तंभ को पत्थरों से तोड़ दिया गया.

हज़रतबल की दरगाह में लगे शिलापट्ट से अशोक स्तंभ तोड़ने की घटना को लेकर सियासी बवाल खड़ा हो गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि मुस्लिम समाज के लोगों ने आखिर क्यों तोड़ा, इस्लाम में राष्ट्रीय प्रतीक के चिह्न को लेकर क्या नजरिया है? इन्हीं सवालों को लेकर आज तक ने इस्लामिक स्कॉलर से बातचीत करके समझने की कोशिश की.

यह भी पढ़ें: जम्मू कश्मीर: राष्ट्रीय चिह्न को लेकर बवाल, भीड़ ने हजरतबल दरगाह में पत्थर से तोड़ा अशोक स्तंभ

दरगाह पर लगे अशोक स्तंभ पर विवाद

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हज़रतबल दरगाह जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में डल झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है. कहा जाता है कि यहाँ इस्लाम के पैगंबर हज़रत मोहम्मद का बाल सुरक्षित रखा गया है. इस बाल को मुई-ए-मुकद्दस कहा जाता है. यह 1699 ईस्वी में यहाँ लाया गया था. इसे विशेष अवसरों (जैसे ईद-ए-मिलाद-उन-नबी) पर आम जनता को दिखाया जाता है.

ईद-ए-मिलाद-उन-नबी इस बार शुक्रवार, तीन सितंबर को पड़ा था, जिसकी वजह से जम्मू-कश्मीर के काफी लोग हज़रतबल दरगाह पहुँचे थे. दरगाह पर लगे पत्थर के शिलापट्ट को लेकर बड़ा बवाल शुरू हो गया. हज़रतबल दरगाह में लगे पत्थर पर बेकाबू भीड़ टूट पड़ी और पत्थर पर बने अशोक स्तंभ को पत्थरों से तोड़ दिया गया.

हज़रतबल दरगाह से अशोक स्तंभ तोड़ने के मामले में पुलिस ने 26 लोगों को हिरासत में लिया है. वायरल सीसीटीवी फुटेज के आधार पर इनकी पहचान की गई. दरगाह पर तोड़फोड़ के लिए नमाज़ियों ने तर्क दिया कि इबादतगाह में मूर्ति प्रदर्शित करना एकेश्वरवाद के इस्लामी सिद्धांत का उल्लंघन है, जो मूर्ति पूजा को सख्ती से प्रतिबंधित करता है. ऐसे में सवाल उठता है कि मुसलमानों के धार्मिक स्थलों पर क्या राष्ट्रीय प्रतीकों का इस्तेमाल करना चाहिए या नहीं.

इस्लामी नज़रिए में क्या सही, क्या गलत?

इस्लामिक स्कॉलर मुफ्ती ओसामा नदवी कहते हैं कि हज़रतबल की दरगाह में तीन सितंबर को जो हुआ, वो किसी भी सूरत में सही नहीं है. अशोक स्तंभ हमारी राष्ट्रीय पहचान है, न कि किसी देवी-देवता की इबादत. राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल अगर सरकार के द्वारा किया गया है तो उसका इस्लाम से क्या ताल्लुक है? ऐसे में अगर दरगाह पर लगे शिलापट्ट की बात है तो उससे इस्लाम की भावनाओं को किसी तरह की कोई ठेस नहीं पहुँच रही थी.

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ओसामा नदवी कहते हैं कि मुस्लिम समुदाय दरगाह पर फातिहा पढ़ने जाते हैं, न कि इबादत करने. अगर बात मस्जिद की है तो उससे भी कोई इस्लामिक टकराव नहीं हो रहा है. शरियत के लिहाज से राष्ट्रीय प्रतीकों का इस्तेमाल किया जाना गलत नहीं है. हर मुसलमान नमाज़ पढ़ने जाता है तो उसकी जेब में रुपये होते हैं, उन रुपयों में अशोक स्तंभ होता है. अगर दरगाह पर अशोक स्तंभ से तकलीफ है तो फिर जेब में पैसे रखना कहाँ से सही है? हज़रतबल की दरगाह पर जो हुआ है, वो कुछ लोगों के पागलपन का नतीजा है.

यह भी पढ़ें: कश्मीर में हजरतबल दरगाह का क्या महत्व है, जिसके इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट का उद्घाटन करेंगे पीएम मोदी

धार्मिक स्थल पर अशोक स्तंभ कैसे लगा?

वहीं, बरेली विचारधारा के मौलाना मुस्तफा रज़ा कादरी कहते हैं कि वक्फ बोर्ड ने जान-बूझकर यह किया ताकि माहौल खराब हो सके. हज़रतबल की दरगाह पर जो शिलापट्ट लगाया गया था, उससे इस्लाम का टकराव तो नहीं बन रहा, लेकिन लोगों को उससे मूर्ति का एहसास हो रहा है. दरगाह पर लोग अकीदत और इबादत की नियत से जाते हैं और इस्लाम में मूर्ति पूजा की मनाही की गई है. ऐसे में ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के दिन लोगों ने शिलापट्ट को देखकर और बिना सोचे-समझे भड़क गए और यह मामला हो गया. इस बात को शिलापट्ट लगाने वालों को सोचना चाहिए था.

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मुस्तफा रज़ा कादरी कहते हैं कि अशोक स्तंभ का इस्तेमाल सिर्फ भारतीय सरकार, राज्य सरकार और अधिकृत सरकारी संस्थाएँ ही कर सकती हैं. इसे व्यापारिक इस्तेमाल, प्राइवेट संस्थाएँ या संगठन, ट्रेड लोगो, व्यक्तिगत पहचान या अनधिकृत इस्तेमाल पर रोक है. बिना अनुमति ऐसा करना अपराध की श्रेणी में माना जाता है. धार्मिक स्थल या अपने भवन पर इसका इस्तेमाल करना भी कानून का उल्लंघन माना जाता है. ऐसे में कैसे दरगाह पर अशोक स्तंभ का इस्तेमाल किया गया और क्यों किया गया, उसे समझना चाहिए.

बता दें कि अशोक स्तंभ का गैरकानूनी इस्तेमाल करने पर दो साल तक की सजा का प्रावधान है. साथ ही पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना भी हो सकता है. बार-बार उल्लंघन करने पर यह सजा बढ़ाई जा सकती है.

जम्मू-कश्मीर में नया सियासी विवाद?

हज़रतबल दरगाह से शिलापट्ट में अशोक स्तंभ तोड़े जाने पर सियासी विवाद खड़ा हो गया है. पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती ने आरोप लगाया कि मुस्लिम समुदाय को जान-बूझकर उकसाया जा रहा है. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि मैंने कभी किसी धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय प्रतीक का इस्तेमाल होते नहीं देखा, तो हज़रतबल दरगाह के पत्थर पर प्रतीक चिह्न लगाने की क्या ज़रूरत थी? क्या सिर्फ काम ही काफी नहीं था?

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वहीं, जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की चेयरपर्सन दरख्शां अंद्राबी ने कहा कि इस घटना से संविधान पर चोट पहुंची है. अशोक स्तंभ का विरोध करने वाले उपद्रवी-आतंकी हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों पर एफआईआर दर्ज न होने पर वह भूख हड़ताल करेंगी. साथ ही कहा कि जब भी विधायक दरगाह जाएँ, उनकी पुलिस तलाशी ले ताकि उनकी जेब में कोई नोट न हो. अगर है भी, तो उसे अंदर ले जाना मकरूह (घृणित) होगा. जिन लोगों को राष्ट्रीय प्रतीक के इस्तेमाल से समस्या है, उन्हें दरगाह जाते समय राष्ट्रीय प्रतीक वाले नोट नहीं ले जाने चाहिए.

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