बाबा बर्फानी यानी अमरनाथ के पवित्र शिवलिंग के दर्शन की मनोकामना लेकर निकले श्रद्धालुओं ने शायद ये नहीं सोचा होगा कि जब वे बाबा के दर के ठीक पास होंगे, कोई हादसा हो जाएगा और दर्शन की उनकी आस बस आस बनकर ही रह जाएगी. लेकिन नियती को शायद यही मंजूर था. शुक्रवार को अमरनाथ गुफा के पास बादल फटने से आए सैलाब में कई टेंट बह गए.
अमरनाथ की पवित्र गुफा के करीब बादल फटने के कारण आई आपदा में करीब 13 लोगों की मौत हो गई है जबकि कई लोग अब भी लापता हैं. राष्ट्रीय आपदा मोचन बल यानी एनडीआरएफ के जवान रेस्क्यू में जुटे हैं. एनडीआरएफ और आईटीबीपी के जवान रात के समय भी रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटे हैं. इस प्राकृतिक आपदा ने चाक-चौबंद इंतजामों का दावा करने वाले प्रशासन पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं.
हालांकि ये कोई पहला मौका नहीं है जब अमरनाथ यात्रा पर प्राकृतिक आपदा की मार पड़ी हो. अमरनाथ यात्रा के दौरान सबसे पहला बड़ा हादसा साल 1969 में हुआ था. साल 1969 के जुलाई महीने में भी अमरनाथ यात्रा मार्ग पर बादल फटने की घटना हुई थी. तब इस हादसे में करीब सौ श्रद्धालुओं की जान चली गई थी. ये घटना अमरनाथ यात्रा के इतिहास की पहली बड़ी घटना भी मानी जाती है.
2017 से अब तक ये चौथी घटना
अमरनाथ यात्रा के अतीत पर नजर डालें तो साल 2017 से अब तक, चार घटनाएं हो चुकी हैं. 16 जुलाई 2017 को अमरनाथ जा रहे श्रद्धालुओं की बस रामबन जिले के करीब गहरी खाई में जा गिरी थी. जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाइवे पर हुए इस हादसे में 19 से ज्यादा श्रद्धालु घायल भी हो गए थे. हादसे का शिकार हुई बस में सवार सभी यात्री बाबा बर्फानी का दर्शन करने जा रहे थे.
पिछले साल भी हुई थी बादल फटने की घटना
अमरनाथ यात्रा के दौरान साल 2018 में 12 जुलाई को अमरनाथ जा रहे तीर्थ यात्रियों का वाहन जम्मू श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर खड़े एक ट्रक से जा टकराया था जिससे 13 तीर्थ यात्री गंभीर रूप से घायल हो गए थे. 2019 में 1 से 26 जुलाई के बीच अमरनाथ यात्रा के दौरान भी करीब 30 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी जिसे लेकर श्राइन बोर्ड की ओर से कहा गया था कि इसकी वजह जागरुकता का अभाव है.
अमरनाथ यात्रा मार्ग पर पिछले साल भी बादल फटने की घटना हुई थी. हालांकि, तब कोरोना के कारण अमरनाथ यात्रा भी कोरोना महामारी के कारण स्थगित थी. अमरनाथ यात्रा का आयोजन यदि हो रहा होता तो पिछले साल बादल फटने की घटना में भी बड़ा नुकसान हो सकता था. हालांकि, तब यात्रा स्थगित थी और कोई नुकसान नहीं हुआ.
प्राकृतिक आपदा ही नहीं, आतंकी हमले का भी खतरा
अमरनाथ यात्रा पर प्राकृतिक आपदा ही नहीं, आतंकी हमले का भी साया रहता है. साल 1993 में हरकत-उल-अंसार ने तीन श्रद्धालुओं की हत्या कर दी थी. साल 1994 में आतंकियों ने दो श्रद्धालुओं की हत्या कर दी थी. साल 1995 और 1996 में भी आतंकियों ने तीर्थ यात्रियों पर हमले किए लेकिन वे सफल नहीं रहे. साल 2000 में आतंकियों ने पहलगाम बेस कैंप पर हमला कर दिया था जिसमें 35 लोग मारे गए थे.
आतंकियों ने साल 2001 में 12 तीर्थ यात्रियों की हत्या कर दी थी. साल 2002 में आतंकियों के हमले में 10, 2006 में एक श्रद्धालु की मौत हुई थी. आतंकियों ने साल 2017 में भी अमरनाथ यात्रा पर निकले श्रद्धालुओं की बस पर अंधाधुंध गोलीबारी की थी जिसमें सात श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी जबकि 32 लोग घायल हो गए थे.