हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में एक घर कुछ महीनों में बनता है, एक सड़क कुछ वर्षों में बनती है. एक हाईवे कई साल में बनता है, एक पुल बनने में लंबा वक्त लगता है, लेकिन पुल, सड़क, हाईवे, घर, मंदिर, आस्था के केंद्र और जिंदगी सबकुछ तबाह होने में कुछ घंटे लगते हैं. शिमला से लेकर कुल्लू, कांगड़ा, मंडी और मनाली तक यही हाल है. पहले जुलाई, फिर अगस्त. हिमाचल 2 महीनों में दर्जनों लैंडस्लाइड, 20 से ज्यादा बादल फटने की आपदा झेल चुका है. इस दौरान 300 से ज्यादा मौत हो चुकी हैं.
हाल ही में शिमला के कृष्णानगर इलाके खतरनाक लैंडस्लाइड हुआ था. यहां एक पेड़ एक इमारत पर गिर गया. इसके बाद इमारत ढह गई थी. इसी तरह समर हिल इलाके में सोमवार को शिव मंदिर लैंड स्लाइड की चपेट में आ गया था. यहां अभी भी रेस्क्यू जारी है. कई शव निकाले जा चुके हैं, जबकि अभी भी शवों की तलाश जारी है. लैंडस्लाइड के बाद जो पहाड़ आम लोगों पर टूटा है. उसने न जाने कितने परिवारों पर सांसें रोक देने वाला मलबा गिरा दिया, इसका कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता. 4 दिन से कुछ लोग टनों मिट्टी के मलबे में दंबे मंदिर के भीतर से अपनों के बाहर आने की एक टूट चुकी आस लेकर खड़े हैं.
एक भाई है, जो अपने बड़े भाई के पूरे परिवार को खोने के बाद उम्मीद लगाए बैठा है कि काश वह जिंदा मिल जाएं. एक पिता हैं, जो सबसे पहले यहां बचाव के लिए हाथ बढ़ाने दौड़े. जो अब अपने इकलौते बेटे के मिलने की आस लिए चार दिन से इंतजार में फफक पड़ते हैं. एकटक लोग 4 दिन से यूं नीचे झांकते रहते हैं कि कब कोई आवाज रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे हुए लोग देने लगें.
पल भर में उजड़ गया परिवार
जब ऊपर से पहाड़ टूटने के बाद मलबा बहते हुए आने लगा, तब उस वक्त इसी मंदिर में 8 साल, 4 साल, डेढ़ साल की बेटियों के साथ अमन शर्मा और अर्चना शर्मा अपने माता पिता के साथ यानी एक ही परिवार के 7 लोग पहुंचे थे. पांच के शव मिल चुके हैं. परिजन मान चुके हैं कि बाकी 2 लोग भी जीवित नहीं मिलेंगे, लेकिन इतना कठोर सत्य स्वीकार करने के बाद भी परिजनों के भीतर एक आस है कि काश... कोई आवाज आ जाए.
रेस्क्यू में करीब 3 हजार जवान जुटे
हिमाचल प्रदेश में रेस्क्यू ऑपरेशन में वायुसेना के हेलीकॉप्टर से लेकर केंद्र और राज्य की आपदा प्रबंधन एजेंसी के जवान लगे हुए हैं. करीब तीन हजार लोगों को रेस्क्यू करके हिमाचल के अलग अलग इलाकों से सुरक्षित जगह पहुंचाया जा चुका है, लेकिन शिमला में अब भी सैकड़ों ऐसे घर हैं, जो हवा में लटके हुए हैं. जिनके नीचे की जमीन खिसक चुकी है. जिन्हें खतरनाक बताकर छोड़ने के लिए कह दिया गया है. वो लोग पूछते हैं कि जाएं तो कहां जाएं?
आखिर क्यों दरक रहे हैं ये पहाड़?
विशेषज्ञों का कहना है कि पारिस्थितिक रूप से नाजुक हिमालय में अवैज्ञानिक निर्माण, घटते वन क्षेत्र और पानी के प्रवाह को अवरुद्ध करने वाली नदियों के पास लगातार निर्माण हो रहे हैं, जो कि लगातार भूस्खलन का कारण बन रही हैं. सड़कों के निर्माण और चौड़ीकरण के लिए पहाड़ी ढलानों की व्यापक कटाई, सुरंगों और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए होने वाले विस्फोट में वृद्धि भी इसका मुख्य कारण हैं. हिमाचल में केवल 5-10 फीट की रिटेनिंग दीवारों के साथ सड़क निर्माण के लिए पहाड़ों की कटाई की जा रही है.
विशेषज्ञों के अनुसार तलहटी में चट्टानों के कटने और उचित जल निकासी व्यवस्था की कमी के कारण हिमाचल में भूस्खलन बढ़ रहा है. हिमाचल प्रदेश में जून से सितंबर तक पूरे मानसून सीजन के दौरान औसतन लगभग 730 मिमी बारिश होती है, लेकिन मौसम विभाग के अनुसार इस साल अब तक राज्य में 742 मिमी बारिश हो चुकी है. राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र के अनुसार हिमाचल में मानसून की शुरुआत के बाद से 55 दिनों में 113 भूस्खलन हुए हैं. अधिकारियों ने बताया कि PWD को 2,491 करोड़ रुपये और NHAI को लगभग 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 17,120 भूस्खलन संभावित स्थल हैं. जिनमें से 675 बुनियादी ढांचे और बस्तियों के करीब हैं. इसमें सबसे ज्यादा चंबा (133) में हैं, इसके बाद मंडी (110), कांगड़ा (102), लाहौल और स्पीति (91), ऊना (63), कुल्लू (55), शिमला (50), सोलन (44), बिलासपुर (37), सिरमौर (21) और किन्नौर (15) जगहें शामिल हैं.