गुजरात के अहमदाबाद की रहने वाली रेशमा रंगरेज ने जब वर्ष 2000 के आस-पास विवाह किया तो उसे नहीं पता था कि एक दिन उनका पति आतंकवादी हो जाएगा और उसे खुद अपने पति को पुलिस के हवाले करना पड़ेगा.
जी हां, रेशमा के साहस और समाज के प्रति उसकी जवाबदेही ने उससे वह करवाया जो बिरले ही कोई कर पाता है. रेशमा ने 2002 के दंगों के दौरान अपने पति की अहमदाबाद में जगन्नाथ यात्रा के दौरान सीरियल बम विस्फोट करने की साजिश को न सिर्फ नाकाम किया बल्कि उसे पुलिस के हवाले भी कर दिया. रेशमा को उनके इस अद्भुत साहस के लिए बुधवार को 'गॉडफ्रे फिलिप्स' शारीरिक साहस पुरस्कार से नवाजा गया.
इस अवसर पर रेशमा ने कहा, 'जब मैंने अपने पति को बम के साथ देखा और उनकी साजिश पता चली तो एक तरफ मैं देश की जनता के बारे में सोच रही थी और दूसरी तरफ परिवार के बारे में. मेरी आत्मा ने कहा कि एक की जान जाने से हजारों की जान बचती है तो यही सही है.'
रेशमा ने बताया कि उसने अपने पति को धकेल दिया और उससे बमों का थैला छीनकर छत पर भाग गईं और मोबाइल से पुलिस को बम की सूचना दी.
रेशमा बताती हैं कि उसने बम के थैले को कसकर पकड़ रखा था और उस समय वह सोच रही थीं कि सबकी जान जाने से अच्छा है कि उसकी ही जान चली जाए. पति के बारे में पूछने पर रेशमा ने बताया कि पति उसके साथ शुरू से ही घरेलू हिंसा करता था.
रेशमा कहती है कि उसने पति को बहुत समझाया लेकिन 2002 के दंगों के समय उसके पति के संबंध कुछ गैरकानूनी लोगों से हो गए और वह बहुत बड़ा माफिया बनने के सपने देखने लगा था. रेशमा के साहस का ही नतीजा है कि वह भयानक हादसा टल गया और न जाने कितने लोगों की जानें बच गईं.
आज रेशमा का पति जेल में है और रेशमा उससे फिर कभी मिलने नहीं गईं. रेशमा के दो बेटियां और एक बेटा है और रेशमा उनका लालन-पालन खुद करती हैं. इसके लिए रेशमा अपनी शिक्षा को श्रेय देती हैं और कहती हैं, 'अगर मैं पढ़ी-लिखी न होती तो मैं इन्हें कैसे पालती.'
रेशमा अपने घर में बच्चों को न सिर्फ ट्यूशन देती है, बल्कि कई संगठनों से जुड़कर महिलाओं को जागरूक करने और सशक्त करने का काम भी करती हैं. रेशमा चाहती हैं कि उनके बेटे के साथ-साथ दोनों बेटियां भी पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़े हों ताकि अपने बल पर अपना जीवन जी सकें.