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श्रद्धा मर्डर केसः आफताब का होगा नार्को टेस्ट, कोर्ट में कितना टिक पाते हैं सबूत? एक्सपर्ट्स ने बताया

श्रद्धा वॉल्कर हत्याकांड के आरोपी आफताब का अब नार्को टेस्ट होगा. नार्को टेस्ट के जरिए जांच एजेंसियां मामले की तह तक पहुंचने की कोशिश करती हैं लेकिन इस टेस्ट से मिले सबूत कोर्ट में कितना टिक पाते हैं?

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श्रद्धा हत्याकांड का आरोपी है आफताब (फाइल फोटो)
श्रद्धा हत्याकांड का आरोपी है आफताब (फाइल फोटो)

श्रद्धा वॉल्कर मर्डर केस के आरोपी आफताब से दिल्ली पुलिस ने कई दिन तक पूछताछ की. दिल्ली पुलिस ने आफताब से पूछताछ के आधार पर पांच राज्यों तक जांच का दायरा बढ़ा दिया लेकिन हाथ कुछ नहीं आया. अब दिल्ली पुलिस ने आफताब का पॉलीग्राफ टेस्ट कराया है. उसका नार्को टेस्ट कराने के लिए भी दिल्ली पुलिस ने इजाजत ले ली है. लेकिन सवाल ये है कि क्या आपको खुद के खिलाफ ही बयान देने के लिए मजबूर किया जा सकता है? फिर श्रद्धा वॉल्कर की हत्या का आरोपी आफताब कैसे खुद के खिलाफ बयान देने के लिए तैयार हो जाएगा.

अब आफताब का भी नार्को एनालिसिस यानी नार्को टेस्ट किया जाएगा. आफताब का अब नार्को टेस्ट होगा. ये पहला मौका नहीं है जब किसी केस में किसी आरोपी का नार्को टेस्ट हो रहा हो. इससे पहले भी निठारी कांड, साध्वी प्रज्ञा, गोधरा कांड, अरुण भट्ट अपहरण कांड, अब्दुल करीम तेलगी हत्याकांड और आरुषि-हेमराज हत्याकांड में आरोपियों की नार्को ब्रेन मैपिंग की गई थी और लाई डिटेक्टर टेस्ट का भी सहारा लिया गया था.

ये जानकर आपको हैरानी होगी कि एजेंसियां इन टेस्ट का सहारा लेकर केस सुलझाने कि कोशिश भले ही करें लेकिन इन टेस्ट्स से हुए खुलासे सबूत के रूप में कोर्ट में नहीं टिक पाते. रोहिणी कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता (अपराध) दीपक शर्मा का कहना है कि इन टेस्ट के आधार पर अब तक कनविक्शन होते नहीं देखा. इनके रिजल्ट एविडेंस के तौर पर बहुत कमजोर साबित होते हैं. उन्होंने ये भी कहा कि टेस्ट के दौरान आफताब अगर कुछ ऐसे खुलासे करता है जिसकी बिनाह पर केस में दिल्ली पुलिस को बड़ी लीड मिल जाए या फिर कुछ खास बरामदगी हो तो नार्को टेस्ट का रिजल्ट केस की जांच को तेज कर देगा.

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वहीं, सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि आरोपी या संदिग्ध इन साइंटिफिक टेस्ट के दौरान जो बयान देते हैं. वह बयान उनके खिलाफ ही क्यों ना हों, अदालत में साक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल नहीं होते. उन्होंने ये भी कहा कि आरोपियों के बयान के आधार पर जांच एजेंसी आगे बढ़ती है और कई बार दावा भी करती है कि उन्हें मामले को सुलझाने में लीड मिल गई.

संविधान के एक्सपर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वकील पीसी शारदा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 20 (3) हर नागरिक को अधिकार देता है कि वह उन बातों पर चुप रहे जो उसके खिलाफ जाएं (incriminating). उन्होंने कहा कि ऐसे में किसी को नार्को टेस्ट या फिर इसी तरह का दूसरा साइंटिफिक टेस्ट कराने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. पीसी शारदा ने कहा कि यही वजह है कि नार्को या इसी तरह के दूसरे टेस्ट से निकले नतीजे साक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल हो किए जाते हैं.

आरुषि केस में भी हुआ था नारको टेस्ट

आरुषि और हेमराज हत्याकांड की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) कर रही थी. सीबीआई ने हत्याकांड की जांच के दौरान कंपाउंडर कृष्णा के साथ तीनों नौकरों और आरुषि तलवार के माता-पिता राजेश तलवार और नूपुर तलवार का भी नार्को टेस्ट कराया था. सीबीआई ने निठारी कांड में भी मनिंदर कोली का नार्को टेस्ट कराया था. इस मामले में सीबीआई को नार्को टेस्ट से काफी लीड मिली थी.

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कब और कहां से शुरू हुआ नार्को टेस्ट

लाई डिटेक्टर टेस्ट वैसे तो भारत में काफी समय से चल रहे थे पर माना जाता है कि पहली बार इसका इस्तेमाल गोधरा में साल 2002 में हुआ था. नारको टेस्ट कुछ साल पहले ही शुरू हुआ है. अमेरिका में नार्को टेस्ट शुरू हुआ था. एक बार एक अमेरिकी नागरिक को रूस के लिए जासूसी करते हुए अमेरिकी एजेंसी ने पकड़ लिया. कई बार नार्को टेस्ट के बाद भी वह जांच एजेंसी को चकमा देने में सफल हो गया था. बाद में उसने एक किताब लेकर सनसनीखेज खुलासा किया कि इन वैज्ञानिक टेस्ट से पहले वह अपने दिमाग में खुद को तैयार करता कि उसे वही बात बोलनी है जो उसके खिलाफ न हो इस तरह से वह कई टेस्ट में पास कर गया. 1922 में नार्को एनालिसिस का इस्तेमाल अमेरिका में हुआ था.

 

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