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प्रियदर्शिनी मट्टू के हत्यारे को फिलहाल समय पूर्व रिहाई नहीं, हाई कोर्ट ने SR बोर्ड से दोबारा विचार करने को कहा

दिल्ली हाई कोर्ट ने कारावास सजा समीक्षा बोर्ड की ओर से दोषी संतोष सिंह की रिहाई नहीं करने की सिफारिश को रद्द कर दिया. हाई कोर्ट ने SRB को संतोष रिहाई के विषय में दोबारा विचार करने को भी कहा है. हाई कोर्ट ने SRB के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि दोषी में सुधार हुआ है.

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दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट

1996 में लॉ स्टूडेंट प्रियदर्शिनी मट्टू की रेप और हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषी संतोष कुमार सिंह को समय पूर्व रिहाई की अर्जी पर दिल्ली हाई कोर्ट से राहत नहीं मिली है. हालांकि जस्टिस संजीव नरूला ने सजा पुनरीक्षण बोर्ड से कहा है कि वो संतोष की अर्जी पर फिर से विचार करे. यानी संतोष के लिए राहत की उम्मीदें बनी हुई हैं.

दिल्ली हाई कोर्ट ने सजा पुनरीक्षण बोर्ड यानी SRB को संतोष सिंह की समय पूर्व रिहाई की अर्जी पर दोबारा विचार करने को कहा है. जस्टिस संजीव नरूला ने 14 मई को संतोष सिंह की याचिका पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था.

वकील ने दी 25 साल की कैद की दलील

सुनवाई के दौरान अदालत के संज्ञान में लाया गया था कि 18 सितंबर, 2024 को एसआरबी की बैठक में उसकी समय पूर्व रिहाई की अर्जी को फिर से खारिज कर दिया गया था. दोषी संतोष सिंह के वकील ने दलील दी थी कि उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और वह पहले ही छूट सहित 25 साल की कैद काट चुका है.

दिल्ली हाई कोर्ट ने कारावास सजा समीक्षा बोर्ड की ओर से दोषी संतोष सिंह की रिहाई नहीं करने की सिफारिश को रद्द कर दिया. हाई कोर्ट ने SRB को संतोष रिहाई के विषय में दोबारा विचार करने को भी कहा है. हाई कोर्ट ने SRB के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि दोषी में सुधार हुआ है.

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अदालत ने समीक्षा बोर्ड से कहा- फैसले पर दोबारा विचार करें

दिल्ली हाई कोर्ट ने सजा समीक्षा बोर्ड से कहा है कि वह दोषी संतोष सिंह की रिहाई के फैसले पर दोबारा विचार करे. दरअसल दोषी संतोष सिंह ने समय पूर्व रिहाई की याचिका दाखिल कर दिल्ली हाई कोर्ट से SRB की ओर से 21 अक्टूबर, 2021 को हुई बैठक में की गई उस सिफारिश को रद्द करने का अनुरोध किया है जिसमें SRB ने उसे समय पूर्व रिहा नहीं करने का फैसला लिया था.

फिलहाल वह 1996 से उम्रकैद की सजा काट रहा है. उसे प्रियदर्शिनी मट्टू से रेप और हत्या करने के अपराध में निचली अदालत ने सख्त टिप्पणियों के साथ बरी किया तो हाई कोर्ट ने मृत्युदंड सुनाया जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद का निर्णय दिया था.

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