इसे संयोग ही कहें की आज से डेढ़ साल पहले ही कद्दावर नेता विद्याचरण शुक्ल ने अपने अंतिम संस्कार के लिए स्थान का चुनाव और चबूतरे का निर्माण करा लिया था. इतना ही नहीं आज से तकरीबन महीने भर पहले उन्होंने अपने समर्थकों को अपने फार्म हाउस में उस जगह को ले जाकर दिखाया भी था और कहा था कि मेरी मौत के बाद यहीं पर मेरा अंतिम संस्कार किया जाए.
राजधानी रायपुर में बुधवार दोपहर बाद उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. इस दौरान सरकारी कार्यालयों में आधे दिन का अवकाश रहेगा जिसकी घोषणा सूबे के मुख्यमंत्री ने की है. शुक्ल का पार्थिव शरीर विशेष विमान से रायपुर पहुंच गया है.
बुधवार सुबह उनका पार्थिव शरीर कांग्रेस भवन में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया. इसके बाद उनकी अंतिम यात्रा और शाम चार बजे उनके फार्म हाउस में उनकी इच्छा के अनुरूप ही उनके द्वारा बनाये गए चबूतरे पर ही किया जाएगा. उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए केन्द्रीय नेताओं का रायपुर पहुंचने का सिलसिला प्रारम्भ हो गया है.
शुक्ल को खोकर रो पड़ा छत्तीसगढ़ का जर्रा-जर्रा
छत्तीसगढ़ देश का एक ऐसा क्षेत्र था जहां के लोग सीधे-साधे, छल और कपट से दूर थे. धान का कटोरा कहलाने वाली यहां की उर्वरा धरती पर पैदा हुए राजनेता थे पं. विद्याचरण शुक्ल, जिनके नाम से छत्तीसगढ़ को जाना जाने लगा.
उनकी लोकप्रियता ऐसी कि हर जगह जहां भी वे पहुंचे, उनसे मिलने जनसैलाब उमड़ पड़ता था. 86 साल के उस राजनीतिक युवा में इतनी ताकत थी कि वे उस दिन पार्टी की परिवर्तन यात्रा में भी निकल पड़े थे यह जानते हुए भी कि सुकमा जैसे इलाके में उनके लिए खतरे हो सकते हैं.
यहां के लोग उन्हें कहते थे 'विद्या भैय्या'. एक शेर हजार पर भारी पड़ता है, यह कहावत विद्या भैय्या पर लागू होती है. जब उनके निधन की खबर मिली तो छत्तीसगढ़ का जर्रा-जर्रा रो पड़ा.
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छत्तीसगढ़ की माटी, यहां की आबोहवा में रहकर उन्होंने छत्तीसगढ़ के विकास के लिए कई कार्य किए. विद्या भैय्या ने सबसे पहले रायपुर में टीवी लाया था. भला उन्हें कोई कैसे भूल सकता है. उनके निधन से कांग्रेस और आमजन, सब असहाय.
एक समय ऐसा था जब विद्या भैया कांग्रेस की नीतियों से खफा हो गए थे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, फिर बीजेपी में चले गए. मगर उनका दिल तो जैसे कांग्रेस में ही बसा हुआ था. अपने पिता और बड़े भाई के नक्शे कदम पर चलने वाले नेता थे, भला ये कैसे गवारा होता कि वे कांग्रेस से अलग रहते. इसलिए विद्या भैया वापस कांग्रेस में आ गए.
विपक्ष के कई नेताओं से उनके मतभेद रहे, मगर मनभेद नहीं हुए. यही वजह है कि राजनीतिक दूरियां बनी रहीं, मगर व्यक्तिगत लगाव बना ही रहा. कांग्रेस की छत्तीसगढ़ में मजबूती के आधार स्तंभ रहे विद्या भैया. उनकी वजह से देश में छत्तीसगढ़ की पहचान है. छत्तीसगढ़ की बात जब की जाती तो बाहर के लोग कहते थे कि वही छत्तीसगढ़ जो वीसी शुक्ल का है.
अब तो यही छत्तीसगढ़ विकास का पर्याय बन गया है. विद्याचरण शुक्ल हर जाति-धर्म के लोगों से बड़ी गर्मजोशी से मिलते थे, यही वजह है कि जब उनके निधन की खबर आई तो छत्तीसगढ़ फूट-फूट कर रो पड़ा.