दिल्ली की सर्दियों में बढ़ते प्रदूषण के बीच सामने आई एक साइंटिफिक स्टडी ने चिंताएं और बढ़ा दी हैं. अध्ययन के मुताबिक बच्चों द्वारा सांस में खींचे गए PM2.5 का 40% हिस्सा उनके ‘डीप लंग्स’ यानी सबसे गहरे फेफड़ों तक पहुंच जाता है, जहां यह लंबे समय तक जमा रहता है और गंभीर नुकसान पहुंचाता है.
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के विश्लेषक डॉ. मनोज कुमार ने अपने एक 'पीयर-रिव्यू' अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि 8 से 9 साल के बच्चों में सांस द्वारा लिए गए PM2.5 का 40% हिस्सा (पल्मोनरी डिपोजिशन 0.40) फेफड़ों के सबसे गहरे क्षेत्र (पल्मोनरी रीजन) में पहुंच जाता है.
शिशुओं में भी खतरा: शिशुओं में भी PM2.5 का 30% हिस्सा फेफड़ों के गहरे क्षेत्र में पहुंचता है, जबकि PM10 का केवल 1% हिस्सा ही वहां पहुंच पाता है.
PM10 से अंतर: अधिकांश PM10 (मोटे कण) मुख्य रूप से नाक या गले में फंस जाते हैं, और केवल 2-4% ही बच्चों के फेफड़ों के गहरे हिस्सों तक पहुंचते हैं.
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बच्चों में अधिक खतरा
डॉ. मनोज कुमार के अनुसार, नवजात से लेकर किशोरावस्था तक, PM2.5 लगातार बच्चों के फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश करता है और लंबे समय तक बना रहता है, जिससे लंबी अवधि में स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाते हैं. इसका मुख्य कारण है कि बच्चों के फेफड़े अभी भी विकसित हो रहे हैं, उनकी वायु नलिकाएं संकरी हैं, और वे वयस्कों की तुलना में तेजी से सांस लेते हैं.
डॉ. कुमार ने कहा, "अगर हम बच्चों के स्वास्थ्य और फेफड़ों के दीर्घकालिक विकास की रक्षा करना चाहते हैं, तो PM2.5 के संपर्क को कम करना प्राथमिकता होनी चाहिए. यह वह प्रदूषक है जो सबसे गहराई तक प्रवेश करता है, सबसे लंबे समय तक रहता है, और सबसे कमजोर आयु वर्ग को प्रभावित करता है."
PM2.5 ही असली समस्या
यह स्टडी तमिलनाडु के चेन्नई और वेल्लोर पर आधारित है, पर वैज्ञानिक रूप से यह पैटर्न पूरे देश में समान रहता है. डॉ. कुमार ने जोर दिया कि PM2.5 और PM10 के फेफड़ों के अंदर व्यवहार करने का तरीका पूरे देश में समान आयु समूहों के लिए समान है.
अध्ययन के मुख्य बिंदु
- मोटे कण (PM10) मुख्य रूप से सिर (55-95%) और श्वासनली (3-44%) क्षेत्रों में जमा होते हैं.
- जबकि महीन कण (PM2.5 और PM1) सबसे अधिक सिर (36-63%) और फेफड़ो (पल्मोनरी) (28.2-52.7%) क्षेत्रों में जमा होते हैं.
- पल्मोनरी क्षेत्र में जमा कणों की निकासी दर सबसे कम होती है, जिससे वे शरीर में लंबे समय तक टिके रहते हैं.
नीतिगत विफलता
आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में सर्दियों में वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी का असली कारण PM10 नहीं, बल्कि PM2.5 है. 18 अक्टूबर से 16 नवंबर तक, 30 दिनों में से सभी 30 दिनों में PM2.5 प्रमुख प्रदूषक रहा है.
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यह दिखाता है कि दिल्ली का वायु संकट धूल नहीं, बल्कि दहन स्रोतों-वाहन, उद्योग, पावर प्लांट, कचरा जलाने से पैदा हो रहा है, बावजूद इसके नीतियां अब भी dust-control पर केंद्रित हैं.
डॉ. कुमार ने कहा, "इसका मतलब है कि मौजूदा धूल नियंत्रण उपाय वास्तविक समस्या को मुश्किल से छू पाते हैं. जब तक कार्रवाई PM2.5 के वास्तविक स्रोतों को लक्षित नहीं करती, वायु गुणवत्ता में सुधार नहीं होगा." उन्होंने NCAP 2.0 (राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम) को PM2.5 को केंद्र में रखने का एक अवसर बताया.