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45 के बाद महिलाएं रहें सतर्क! मैनोपॉज के बाद 1.6 गुना बढ़ जाता है स्ट्रोक का खतरा, दिखते हैं ये 5 संकेत

मेनोपॉज के बाद महिलाओं में स्ट्रोक का खतरा तेजी से बढ़ जाता है. एस्ट्रोजन की कमी, हाई ब्लड प्रेशर, वजन और कोलेस्ट्रॉल में बदलाव इसके मुख्य कारण हैं. जानिए कैसे सावधानी और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाकर इस खतरे को कम किया जा सकता है.

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महिलाओं में मैनोपॉज के बाद क्यों बढ़ जाता है स्ट्रोक का खतरा (Photo: AI Generated)
महिलाओं में मैनोपॉज के बाद क्यों बढ़ जाता है स्ट्रोक का खतरा (Photo: AI Generated)

स्ट्रोक एक बहुत ही खतरनाक और जानलेवा बीमारी है. ये तब होता है जब दिमाग तक खून नहीं पहुंच पाता है या बहुत कम हो जाता है. ऐसे में दिमाग को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और उसके सेल्स मरने लगते हैं. इसके नतीजे गंभीर हो सकते हैं. कभी-कभी इसके कारण जान जा सकती है तो कभी शरीर के किसी हिस्से में लकवा हो सकता है. डॉक्टर्स के अनुसार, स्ट्रोक के दो तरह के कारण होते हैं. पहला, परिवर्तनीय कारण, यानी जिन्हें आप बदल सकते हैं, जैसे धूम्रपान छोड़ना, हेल्दी डाइट लेना और एक्टिव रहना. दूसरा, गैर-परिवर्तनीय कारण, यानी जिन्हें आप नहीं बदल सकते, जैसे उम्र, लिंग और परिवार से जुड़ी बीमारियां. खासकर मैनोपॉज से गुजर रही महिलाओं को इन बातों पर खास ध्यान देना चाहिए, क्योंकि मैनोपॉज खुद एक ऐसा कारण है जिसे बदला नहीं जा सकता. जी हां, जिन महिलाओं को मैनोपॉज हो चुका है उनमें स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. हालांकि, सही लाइफस्टाइल अपनाकर स्ट्रोक के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है.

क्या है मैनोपॉज?
मैनोपॉज हर महिला की जिंदगी का एक नैचुरल पड़ाव है, जब पीरियड्स हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं तब मैनोपॉज होता है. इसका मतलब है कि अब महिला प्रेग्नेंट नहीं हो सकती. ये शरीर में होने वाला एक नॉर्मल बदलाव है, लेकिन इसके साथ कई हेल्थ प्रॉब्लम्स का खतरा भी बढ़ जाता है, जिनमें से एक स्ट्रोक है. CDC के मुताबिक, स्ट्रोक महिलाओं में मौत के मुख्य कारणों में से एक है. मैनोपॉज के दौरान या उसके बाद ये खतरा और बढ़ जाता है. माना जाता है कि 55 से 75 साल की उम्र के बीच हर पांच में से एक महिला को स्ट्रोक हो सकता है.

WHO के अनुसार, मैनोपॉज आमतौर पर 45 से 55 साल की उम्र के बीच होता है. यही वो समय है जब स्ट्रोक का खतरा भी बढ़ने लगता है. अपोलो हॉस्पिटल, बैंगलोर के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सूर्यनारायण शर्मा बताते हैं कि मैनोपॉज के समय शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन कम हो जाता है, जो दिल और दिमाग दोनों की सेहत पर असर डालता है. जिन महिलाओं को 40 साल से पहले मैनोपॉज हो जाता है, उनमें स्ट्रोक का खतरा लगभग 1.6 गुना ज्यादा होता है, खासकर इस्केमिक स्ट्रोक. ये स्ट्रोक खून का थक्का जमने के कारण होता है.  मैनोपॉज सिर्फ स्ट्रोक ही नहीं, बल्कि दिल की बीमारियों का खतरा भी बढ़ा देता है. इसलिए इस दौर में महिलाओं के लिए अपनी सेहत पर खास ध्यान देना बहुत जरूरी है.

क्यों स्ट्रोक का खतरा बढ़ाता है मैनोपॉज?

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मैनोपॉज के दौरान शरीर में कई हार्मोनल बदलाव होते हैं, जो दिल और दिमाग की सेहत को प्रभावित करते हैं. 

1. एस्ट्रोजन का कम होना: मैनोपॉज में शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन कम हो जाता है. ये हार्मोन दिल और ब्लड वेसल्स को हेल्दी रखता है. जब इसका लेवल गिरता है तो आर्टरीज सख्त होने लगती हैं, ब्लड प्रेशर बढ़ता है और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.

2. कोलेस्ट्रॉल में बदलाव: मैनोपॉज के बाद खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) बढ़ जाता है और अच्छा कोलेस्ट्रॉल (HDL) कम हो जाता है. इससे आर्टरीज में ब्लॉकेज आने लगती है, जिससे इस्केमिक स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है.

3. शरीर में सूजन बढ़ना: एस्ट्रोजन की कमी से शरीर में सूजन बढ़ जाती है और खून में थक्के बनने का चांस ज्यादा हो जाता है, जो स्ट्रोक का बड़ा कारण है.

4. वजन और ब्लड शुगर बढ़ना: मैनोपॉज के दौरान ज्यादातर महिलाओं का वजन, खासकर पेट के आसपास, बढ़ जाता है. इससे ब्लड शुगर और इंसुलिन रेजिस्टेंस की समस्या हो सकती है, जो स्ट्रोक का खतरा बढ़ाती है.

5. हाई ब्लड प्रेशर: एस्ट्रोजन कम होने से शरीर ब्लड प्रेशर को कंट्रोल नहीं कर पाता. इससे हाई ब्लड प्रेशर हो सकता है, जो स्ट्रोक का एक बड़ा कारण है.

स्ट्रोक आने से पहले मैनोपॉज वाली महिलाओं में क्या दिखते हैं संकेत?
स्ट्रोक एक गंभीर और अचानक होने वाली बीमारी है, जिसमें हर पल बहुत कीमती होता है. डॉ. सूर्यनारायण का कहना है कि अगर किसी को स्ट्रोक के लक्षण दिखें, तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए. वो कहते हैं, 'मरीज को जितनी जल्दी इलाज मिलता है, ठीक होने की संभावना उतनी ही ज्यादा होती है. पहले एक घंटे को ‘गोल्डन ऑवर’ कहा जाता है, इस दौरान इलाज मिलना बहुत जरूरी है.'

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डॉ. सूर्यनारायण बताते हैं कि स्ट्रोक के कुछ संकेत होते हैं, जिन्हें हर किसी को पहचानना आना चाहिए.  

  • चेहरे, हाथ या पैर में अचानक कमजोरी या सुन्नपन आना, खासकर शरीर के एक ही तरफ.
  • बोलने या समझने में दिक्कत होना, जैसे शब्द ठीक से न निकलें या सामने वाले की बात समझ न आए.
  • चलने में इंबैलेंस या चक्कर आना, जिससे खड़ा रहना या चलना मुश्किल लगे.
  • धुंधला दिखना या एकदम से दिखाई न देना.
  • बिना किसी वजह के अचानक और तेज सिरदर्द होना
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