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सेहत के लिए मीठा 'जहर' हैं चीनी से बनी ये चीजें... जानिए क्यों सरकार ने Sin Tax में रखा

कोल्ड्रिंक, एडेड शुगर वाली ड्रिंक तथा कैफीनयुक्त और नॉन-अल्कोहॉलिक ड्रिंक को पान मसाला, तंबाकू प्रोडक्ट, सिगरेट वाली कैटेगरी में रखा गया है और उनको 40 प्रतिशत वाले टैक्स स्लैब में रखा गया है.

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कोल्ड्रिंक्स और शुगरी ड्रिंक्स में काफी मात्रा में चीनी होती है.(Photo Credit: Adobe Image)
कोल्ड्रिंक्स और शुगरी ड्रिंक्स में काफी मात्रा में चीनी होती है.(Photo Credit: Adobe Image)

15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जीएसटी रिफॉर्म का ऐलान किया था और अब जीएसटी काउंसिल ने जीएसटी में सुधार किया है. आम आदमी से लेकर सेंसेक्स और यहां तक कि किसानों तक, सभी को खुश कर दिया है. इस बार जीएसटी रिफॉर्म का सबसे बड़ा असर आपकी रोजमर्रा की जिंदगी पर दिखने वाला है. अभी तक टैक्स की 'सिन गुड्स' कैटेगरी (Sin Goods) में सिर्फ शराब और तंबाकू आते थे लेकिन अब पहली बार चीनी और उससे जुड़ी हुई ड्रिंक्स को भी इस कैटेगरी में रखा गया है. यानी कि इसका सीधा मतलब है कि अब कोल्ड ड्रिंक्स, फ्लेवर्ड सोडा, आइस्ड टी और एनर्जी ड्रिंक्स पर 18 प्रतिशत नहीं बल्कि 40 प्रतिशत जीएसटी लगेगी.

सिन गुड्स का मतलब उन प्रोडक्ट्स से है जिन्हें सेहत या समाज के लिए हानिकारक माना जाता है. इन पर सरकार अधिक टैक्स लगाती है ताकि लोग इनका इस्तेमाल कम करें और जो लोग इस्तेमाल कर रहे हैं, उनसे अधिक रेवेन्यू मिले.

डायबिटीज की राजधानी है भारत 

ये कदम ऐसे वक्त पर उठाया गया है जब भारत में काफी सारे लोग डायबिटीज और मोटापा जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं. भारत दुनिया की डायबिटीज का केपिटल है. ICMR द्वारा अप्रूव्ड एक लैसेंट स्टडी के मुताबिक, भारत की 11.4 प्रतिशत यानी करीब 10.1 करोड़ आबादी डायबिटीज से पीड़ित हैं, जबकि 15.3 प्रतिशत यानी 13.6 करोड़ लोग प्री-डायबिटिक हैं. यह एक बहुत बड़ा संकट है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, फ्री चीनी के सेवन को आदर्श रूप से 5% से कम (लगभग 25 ग्राम या 6 चम्मच प्रतिदिन) सीमित रखने की सलाह देता है. क्योंकि न्यूट्रिशन की नजर से लोगों को अपनी डाइट में चीनी लेने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है.

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कोल्ड्रिंक और चीनी वाली ड्रिंक का असर

हर दिन एक बोतल कोला या एक कैन एनर्जी ड्रिंक जितनी शुगर आपके शरीर को देता है, उतनी आपके शरीर को पूरे दिन में भी नहीं चाहिए. ऐसे में सरकार का यह फैसला सिर्फ टैक्स सुधार नहीं, बल्कि सेहत बचाने की कोशिश भी है. नए जीएसटी स्लैब के मुताबिक, सेहत के लिए खराब वाली वस्तुओं पर 40% का स्पेशल स्लैब है. इसका मतलब है कि कोल्ड ड्रिंक्स, फ्लेवर्ड सोडा, आइस्ड टी, एनर्जी ड्रिंक्स ये सभी अब तंबाकू और शराब के साथ आधिकारिक तौर पर ठीक उसी लिस्ट में आ गए हैं, जहां अब तक तंबाकू और अल्कोहल थे.

अब कुछ पॉपुलर ब्रांड्स की ड्रिंक्स में कितनी चीनी होती है, ये भी जान लीजिए.

  • कोल्ड ड्रिंक्स थम्सअप, कोका-कोला, स्प्राइट, फैंटा में प्रति 100 ML में 10-15 ग्राम चीनी होती है.
  • फ्रूटी और माजा जैसे जूस वाली ड्रिंक में प्रति 100 ML में 11-15 ग्राम चीनी होती है.
  • रेड बुल में प्रति 100 ML, 11 ग्राम चीनी होती है.

अधिकतर मीठी ड्रिंक की कैन लगभग 200-300 मिलीलीटर की होती है. अब यदि आप रोजाना 1-2 कैन भी इन ड्रिंक्स की पीते हैं तो यानी करीब 250-300 ग्राम चीनी तो आप इन ड्रिंक्स से ही ले लेते हैं. इसके अलावा अन्य चीजों से चीनी लेंगे वो अलग. अब जो लोग सोच रहे हैं कि शराब छोड़ने का मतलब है कि वो सेहत की ओर अच्छा कदम उठा चुके हैं लेकिन ऐसा नहीं है. उन्हें चीनी वाली इन स्वीट ड्रिंक, कोला और अन्य मीठी ड्रिंक्स को भी पीना बंद कर देना चाहिए.

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चीनी का सेवन कैसे शरीर पर असर डालता है?

यदि कोई जैसे ही एक घूंट कोला या चीनी वाली ड्रिंक की पीता है तो चीनी ब्लड स्ट्रीम में जाती है. फिर आपका पैंक्रियाज आपकी कोशिकाओं में चीनी पहुंचाने के लिए इंसुलिन भेजता है. लेकिन सभी चीनी एक समान नहीं होतीं. ग्लूकोज आपकी कोशिकाओं को एनर्जी देता है जबकि फ्रुक्टोज सीधे लिवर में जाता है, जहां वो फैट में बदल जाता है जिससे समय के साथ फैटी लिवर डिजीज होती है.

फिर लगभग 20-40 मिनट बाद, आपको चीनी के कारण अचानक से एनर्जी महसूस होती है लेकिन थोड़ी देर बाद जब इंसुलिन ज्यादा बढ़ जाता है तो ब्लड शुगर गिर जाता है और आपको थकान, चिड़चिड़ापन महसूस होने लगता है और फिर आपको और चीनी की तलब लगती है.

आपका शरीर इस एक्स्ट्रा चीनी को विसरल फैट के रूप में जमा करने लगता है और यही चर्बी डायबिटीज, हार्ट डिजीज और मोटापे का सबसे बड़ा कारण है. साथ ही यह दांतो को नुकसान पहुंचाती है, चीनी और एसिड मिलकर इनेमल को खत्म कर सकते हैं.

फैट जमा होकर नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज का खतरा बढ़ाता है.लगातार ज्यादा शुगर खाने से इंसुलिन रेसिस्टेंस हो जाता है, यानी शरीर इंसुलिन पर सही प्रतिक्रिया नहीं देता. यह स्थिति आगे चलकर टाइप 2 डायबिटीज और मेटाबॉलिक सिंड्रोम का कारण बनती है.

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