क्लाइमेट चेंज अब सिर्फ मौसम, टेम्परेचर या बारिश तक सीमित नहीं है. इसका असर हमारे शरीर पर भी दिखाई देने लगा है. हाल ही में हुई एक स्टडी में पाया गया है कि लड़कियों के पीरियड्स यानी पहली माहवारी की उम्र पर भी क्लाइमेट चेंज का सीधा असर पड़ रहा है. ये सिर्फ एक बॉडी प्रोसेस नहीं है, बल्कि ये उनकी हेल्थ, पोषण, लाइफस्टाइल भी संकेत देती है.
स्टडी से पता चला है कि दुनिया भर में लड़कियों के पीरियड्स पहले शुरू हो रहे हैं. इसका मतलब यह है कि अब लड़कियां कम उम्र में ही हार्मोनल बदलाव का सामना कर रही हैं. यह बदलाव केवल न्यूट्रिशन या मोटापे के कारण नहीं, बल्कि क्लाइमेट, तापमान, नमी और पॉल्यूशन जैसी वजहों से भी हो रहा है, खास बात ये है कि अलग-अलग प्रदेशों में इसका असर अलग ढंग से दिखाई दे रहा है.
बांग्लादेश की नॉर्थ साउथ यूनिवर्सिटी और कुछ और संस्थानों के रिसर्चर्स ने डेमोग्राफिक एंड हेल्थ सर्वे (DHS) के 1992-93 और 2019-21 का एक बड़ा डेटा एनालिसिस किया. इसके साथ उन्होंने इसके लिए NASA का क्लाइमेट डेटा भी इस्तेमाल किया गया, इसमें आंध्र प्रदेश, असम, गोवा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेश शामिल है.
लड़कियों की पहली पीरियड की उम्र सिर्फ शरीर की प्रक्रिया नहीं है, यह उनकी हेल्थ, पोषण और लाइफस्टाइल को भी दिखाती है.अगर पीरियड्स जल्दी शुरू हों तो आगे चलकर मोटापा, डायबिटीज और हार्मोनल प्रॉब्लम्स का खतरा बढ़ सकता है.अगर पीरियड्स देर से शुरू हों तो ये शरीर में स्ट्रेस या न्यूट्रिशन की कमी का साइन हो सकता है.
स्टडी में ये भी पाया गया कि जिन लड़कियों की पढ़ाई का लेवल अच्छा था, उनमें पीरियड्स जल्दी आने की संभावना ज्यादा थी. इसका मतलब है कि सिर्फ क्लाइमेट ही नहीं, बल्कि समाज और शिक्षा जैसी चीजें भी शरीर पर असर डालती हैं.
पिछले 100 सालों में दुनिया भर में लड़कियों की पीरियड्स की उम्र घट रही है. पहले ये 14-15 साल में होती थी, अब औसतन 12-13 साल में शुरू हो रही है. पहले इसे बेहतर न्यूट्रिशन या मोटापे से जोड़ा जाता था, लेकिन अब क्लाइमेट चेंज और पॉल्यूशन भी इसके मुख्य कारण बन गए हैं.