scorecardresearch
 

फैक्ट चेक: किसान आंदोलन में शामिल नहीं है हाथ में रोटी की टोकरी लिए ये प्यारी बच्ची

रोटियों की टोकरी पकड़े खड़ी मुस्कुराती हुई एक बच्ची की फोटो को किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले सोशल मीडिया अकाउंट्स पर खूब शेयर किया जा रहा है. दावा किया जा रहा है कि ये फोटो मौजूदा किसान आंदोलन की है.

Advertisement

आजतक फैक्ट चेक

दावा
किसान आंदोलन के दौरान एक छोटी सी बच्ची ने पंगत में बैठकर खाना खाते लोगों को रोटियां परोसीं.
सोशल मीडिया यूजर्स
सच्चाई
रोटियों की टोकरी लेकर खड़ी बच्ची की ये फोटो कम से कम तीन साल पुरानी है. इसे अब किसान आंदोलन से जोड़कर पेश किया जा रहा है.

पंगत में बैठकर खाना खाते लोगों के पास रोटियों की टोकरी पकड़े खड़ी मुस्कुराती हुई एक बच्ची की फोटो को किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले सोशल मीडिया अकाउंट्स पर खूब शेयर किया जा रहा है. दावा किया जा रहा है कि ये फोटो मौजूदा किसान आंदोलन की है.

फोटो को शेयर करते हुए किसान, उद्यमी और सामाजिक कार्यकर्ता पीयूष मानुष ने अपने वेरिफाइड फेसबुक पेज पर अंग्रेजी में कैप्शन लिखा, जिसका हिंदी अनुवाद है, “इनका भविष्य दांव पर है. देश की अब तक की सबसे बुरी सल्तनत से इनकी मुस्कान को महफूज रखने की जिम्मेदारी क्या हमारी नहीं है? दिल्ली के बाहरी इलाके में चल रहे किसान आंदोलन की एक तस्वीर.”

इस पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है.

एक अन्य फेसबुक यूजर ने वायरल फोटो को शेयर करते हुए लिखा, “आंदोलन कर रहे किसानों को खाना खिलाने के लिए ईश्वर ने इस मोहक मुस्कान वाले सुंदर फरिश्ते को भेजा है. #FarmersProtest #FarmBills

इस पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है. 

इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि ये फोटो कम से कम तीन साल पुरानी है और इसका मौजूदा किसान आंदोलन से कुछ लेना-देना नहीं है. 

Advertisement

फेसबुक पर बहुत सारे लोग इस फोटो को किसान आंदोलन से जोड़कर शेयर कर रहे हैं. ट्विटर पर भी ये दावा काफी वायरल है.

क्या है सच्चाई

वायरल फोटो को रिवर्स सर्च करने पर ये हमें ‘गुरु का लंगर’ नाम के फेसबुक पेज पर मिली. यहां इसे 14 जुलाई 2017 को शेयर किया गया था और इसमें बतौर लोकेशन हिमाचल प्रदेश के पांवटा साहिब गुरुद्वारा को टैग किया गया था. पांवटा साहिब गुरुद्वारा हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में है.

फोटो में नजर आ रही बच्ची कौन है, हम इसकी पुष्टि तो नहीं कर सके, लेकिन इतना तय है कि ये किसी पुराने आयोजन की फोटो है.

जाहिर है कि वायरल फोटो साल 2017 से ही इंटरनेट पर मौजूद है, लिहाजा, इसका मौजूदा किसान आंदोलन से कोई संबंध नहीं है.

क्या आपको लगता है कोई मैसैज झूठा ?
सच जानने के लिए उसे हमारे नंबर 73 7000 7000 पर भेजें.
आप हमें factcheck@intoday.com पर ईमेल भी कर सकते हैं
Advertisement
Advertisement