देश में लिविंग ऑर्गन डोनर की बात करें तो महिलाएं इसमें पुरुषों से आगे हैं. अपने मेल पार्टनर से लगभग दोगुनी महिलाएं किडनी या लिवर जैसे अंग दान करती रहीं. नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (NOTTO) ने पाया कि दानकर्ताओं में सबसे आगे होने के बावजूद रिसीविंग एंड पर वे पीछे हैं. तो क्या महिलाएं अपनी इच्छा से ऑर्गन डोनेट कर रही हैं, या इसमें भी उनसे जबर्दस्ती की जा रही है? क्या यही पैटर्न बाकी देशों में भी दिखता है, या फिर यह भारत तक सीमित है?
क्या कहते हैं आंकड़े
NOTTO ने साल 2019 से 2023 तक अंगदान का डेटा देखा. इसमें पाया गया कि कुल अंगदान में 63 प्रतिशत महिलाओं का था, जबकि सिर्फ 27 प्रतिशत महिलाओं को ऑर्गन मिल सका. वहीं पुरुष डोनर बेहद कम थे, जबकि ऑर्गन पाने वाले पुरुषों की संख्या 70 प्रतिशत के करीब थी. दो साल पहले एक एनजीओ की रिसर्च और ज्यादा चौंकाती है. साल 2023 में मोहन फाउंडेशन के शोध में दावा किया गया कि ऑर्गन डोनर में 80 फीसदी महिलाएं हैं, जबकि पाने की पारी आने पर वे घटकर 18.9 फीसदी रह जाती हैं.
केंद्र ने अंगदान की प्रोसेस पर नजर रखने के लिए NOTTO का गठन किया. देश का हर अस्पताल, जहां अंग लिया या दिया जाता है, उसके लिए इस संस्था से जुड़ा होना जरूरी है. अंगदान में कोई गड़बड़ी न हो, इसके लिए एक एक्ट भी बनाया गया. ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट्स 1994 के अनुसार, कुछ निश्चित अंगों का दान किया जा सकता है. साथ ही इनका बेचा या खरीदा जाना अपराध है.
एडवायजरी में महिलाओं को प्राथमिकता
संस्था ने हाल में एक एडवायजरी भी निकाली. इसके तहत हर अस्पताल में ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर होना जरूरी है जो प्रोसेस पर लगातार नजर रख सके. साथ ही साथ एंबुलेंस स्टाफ को भी ट्रेनिंग दी जाएगी कि वे सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल लोगों को पहचान कर सकें ताकि अगर कोई अघट हो जाए तो समय रहते अंगदान हो सके. साथ ही एक और अहम बात जोड़ी गई. Notto ने एडवायजरी में कहा कि महिला मरीजों, और वो परिवार, जो अपने मृत रिश्तेदार का अंगदान कर चुके, अगर उन्हें ऑर्गन की जरूरत हो, तो उन्हें प्राथमिकता पर रखा जाए.

ऑर्गेन डोनेशन हो तो रहा है लेकिन बहुत बार जानकारी की कमी की वजह से जरूरतमंदों तक अंग नहीं पहुंच पाता. जैसे हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा भारतीयों किडनी फेल होने की वजह से गंभीर अवस्था में पहुंच जाते हैं. इसके बाद भी किडनी डोनर्स की संख्या लगभग 12 हजार ही है. अगर ये ग्राफ थोड़ा भी ऊपर जा सके तो हजारों मरीजों की जान बचाई जा सकेगी.
किस हाल में दुनियाभर की महिलाएं
अब बात करें, महिलाओं की, तो भारत की तरह ही फर्क दुनियाभर में दिखेगा. यानी महिलाएं डोनेट तो करती हैं, लेकिन जब जरूरत में हों, तो उन्हें पाने वालों की लिस्ट में सबसे नीचे रखा जाता है. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के कुछ साल पुराने डेटा के मुताबिक, 10 किडनी डोनर्स में से 6 महिलाएं हैं. दूसरी तरफ, 10 रेसिपिएंट्स में 6 पुरुष हैं. ये आंकड़ा अमेरिका का है.
मौत के बाद डोनेशन वाले आंकड़े कुछ संतुलित लगते हैं क्योंकि ब्रेन-डेथ या दुर्घटना के बाद ऑर्गन डोनेशन पर परिवार का फैसला ज्यादा असर डालता है. लेकिन यहां भी ट्रांसप्लांट पाने वालों में पुरुषों का प्रतिशत ज्यादा है.
महिलाओं से पुरुषों में ऑर्गन ट्रांसप्लांट के खतरे भी
बीबीसी की एक रिपोर्ट में यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड के हवाले से बताया गया कि अक्सर महिलाओं से पुरुषों में लगे ऑर्गन के समय से पहले कमजोर पड़ने की आशंका ज्यादा रहती है. इसमें किडनी तो शामिल है ही, हार्ट भी शामिल है. मसलन, अगर किसी पुरुष में महिला का दिल प्रत्यारोपित किया जाए तो उसके अगले पांच सालों में हार्ट फेल होने का डर 15 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा.
इसकी एक वजह है, महिलाओं और पुरुषों में साइज का फर्क. अगर रिसीवर और डोनर के वजन में 30 किलोग्राम या इससे ज्यादा का फर्क हो, तो आशंका बढ़ जाती है. अगर दोनों लगभग समान वजन के हों तब भी महिलाओं के ऑर्गन, पुरुषों की तुलना में साइज में कम होते हैं.

अंगदान में क्यों है जेंडर का फर्क
सबसे ऊपर तो है ब्रेडविनर डिलेमा. माना जाता है कि ज्यादातर परिवारों में पुरुष ही असल कमाने वाले होते हैं. ऐसे में ऑर्गन डोनेट करने पर उनकी सेहत पर खतरा हो सकता है. यही वजह है कि वे या तो खुद इससे बचते हैं, या फिर उन्हें इसमें डिसकरेज भी किया जाता है. घर में अगर जरूरत आ जाए तो पुरुषों को इस नुकसान से बचाने के लिए महिलाएं डोनेशन के लिए राजी हो जाती हैं.
आमतौर पर महिलाओं पर इमोशनल बर्डन भी होता है कि वे समझौता या त्याग करें. परिवार के किसी सदस्य को अगर ऑर्गन की जरूरत पड़ जाए तो महिला सदस्य से उम्मीद की जाती है कि वो आगे आए. खासकर अगर इसमें जान का खतरा न हो. कमजोर आर्थिक स्थिति वाले परिवारों में महिलाएं अगर जरूरमंद हों भी तो उन्हें ऑर्गेन रेसिपिएंट की लिस्ट में एनरोल ही नहीं करवाया जाता क्योंकि इस प्रक्रिया में भारी पैसे भी लगते हैं.
क्या कोई देश अपवाद भी
- स्पेनऑप्ट आउट नीति पर काम करता है यानी हर कोई डोनर माना जाता है जब तक मना न करे.
- नॉर्वे और स्कैंडिनेवियन देशों में महिलाओं और पुरुषों के रिसीवर रेट लगभग बराबर हैं क्योंकि सबको हेल्थ कवरेज मिलता है.
- ईरान दुनिया का अकेला देश है जहां कानूनी तौर पर किडनी बेच सकते हैं. यहां पैटर्न उल्टा दिखेगा. गरीब पुरुष डोनर ज्यादा हैं, जबकि महिलाएं, खासकर अमीर तबके से, रिसीवर में ज्यादा हैं.