कुछ सालों पहले चुनावों के दौरान ही एग्जिट पोल का प्रसारण होने लगा था. इसे लेकर शिकायतें हुईं कि इसकी वजह से वोटरों का मन बदल सकता है. इसके बाद चुनाव आयोग काफी सख्त हुआ. उसने कई नियम बना दिए, ताकि किसी भी की ओपिनियन या एग्जिट पोल चुनाव खत्म होने से पहले न आएं. ये तो हुई हमारी बात, लेकिन कई देशों में एग्जिट पोल पर पाबंदी रहती है. वहीं कुछ देश इसे लेकर काफी उदार हैं.
एग्जिट पोल, वोटिंग संपन्न होने के बाद एक तरह का सर्वे है जो संभावित विजताओं, पार्टियों और वे कितने अंतर से जीतेंगी, इसका अनुमान लगाता है. ये अंदाजा खालिस अनुमान नहीं होता, बल्कि वोटरों से बातचीत पर आधारित होता है. इस काम में कई एजेंसियां लगी होती हैं जो चुनाव के हर चरण के बाद वोटरों से पोलिंग स्टेशन पर ही बात करतीं और पता लगाती हैं कि हवा का रुख क्या है. हालांकि ये बात भी है कि इसे पक्का नहीं माना जा सकता.
क्या है ओपिनियन पोल
ओपिनियन पोल में वोटरों की प्राथमिकता जानी जाती है. इसमें मुद्दों पर बात करते हुए ही उनकी नाराजगी या किसी पार्टी के लिए उदारता दिख जाती है. ये सर्वे पब्लिक मूड को भांपते और चुनावी चरण शुरू होने के पहले उसके संभावित नतीजों की बात करते हैं.
देश में एग्जिट पोल का इतिहास काफी पुराना है. साठ के दशक में दिल्ली की सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज ने इसकी शुरुआत की, जो कि सरकारी है. इसके काफी बाद में मीडिया संस्थान भी पोल्स टेलीकास्ट करने लगे. नब्बे के बाद इसमें तेजी आई.

हमारे यहां क्या हैं नियम
भारत में एग्जिट पोल्स को लेकर काफी कड़े नियम हैं. मतदान खत्म होने के पहले 48 घंटे के दौरान किसी भी तरह के ऐसे प्रोग्राम के टेलीकास्ट पर रोक है, जिससे किसी खास चेहरे या पार्टी को किसी भी किस्म का फायदा होता हो. यह नियम टीवी ही नहीं, रेडियो, केबल नेटवर्क, सोशल मीडिया और डिजिटल न्यूज के लिए भी है. इस साल के लोकसभा चुनाव के दौरान जारी एडवाइजरी में वेबसाइटों और सोशल मीडिया के लिए ये दिशानिर्देश पहली बार आए.
विश्व में कैसी व्यवस्था
भारत की तर्ज पर कई और देशों में भी इसपर अलग-अलग नियम हैं. जैसे यूरोपियन यूनियन के 16 ऐसे देश हैं, जहां ओपिनियन पोल्स बैन हैं. पोलिंग के दिन के 24 घंटों से लेकर महीनेभर पहले तक पोल्स का प्रसारण नहीं हो सकता.
फ्रांस में वोटिंग वाले दिन के चौबीस घंटे पहले इलेक्शन पर किसी भी किस्म की ओपिनियन या एग्जिट पोल नहीं दिखाई जा सकती. पहले ये पाबंदी सात दिनों की थी, जिसे वहां की कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ये फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन का हनन है. इटली, लग्जमबर्ग और स्लोवाकिया में यह नियम सात दिनों से ज्यादा का है.

ब्रिटेन में ओपिनियन पोल के नतीजे प्रकाशित किए या दिखाए जा सकते हैं लेकिन एग्जिट पोल का टेलीकास्ट तब तक नहीं हो सकता, जब तक चुनाव खत्म न हो जाएं.
जर्मनी में एग्जिट पोल के नतीजे तब तक नहीं दिखाए जा सकते, जब तक कि सारे पोलिंग स्टेशन बंद न हो जाएं. इसके पहले ऐसा करना क्रिमिनल ऑफेंस की श्रेणी में आता है. बल्गेरिया में इलेक्शन वाले दिन एग्जिट पोल दिखाना अपराध है.
सिंगापुर में एग्जिट पोल पूरी तरह बैन है. इसकी वजह है वहां का पार्लियामेंट्री इलेक्शन्स एक्ट, जो चुनाव के दौरान किसी भी तरह के अनुमान लगाए को प्रतिबंधित करता है. नियम तोड़ने पर एक साल की सजा और तगड़ा जुर्माना हो सकता है.
इन देशों में ढिलाई
अमेरिका इस मामले में बेहद उदार है. वहां ओपिनियन पोल कभी भी दिखाए जा सकते हैं. वहीं एग्जिट पोल्स पर काम कर रही एजेंसियां स्वैच्छिक तौर पर शपथ लेती हैं कि वे वोटिंग खत्म होने के पहले अपने अनुमान नहीं दिखाएंगी.
ऑस्ट्रेलिया में भी एग्जिट पोल्स के दिखाने या छापने पर प्रतिबंध नहीं. वहां इसे जनता के सेंटिमेंट्स से जोड़कर देखा जाता है, और इसे दबाने को फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन से छेड़छाड़ की तरह.
दक्षिण अफ्रीका में भी चुनावों से पहले जनमत सर्वे हो सकता है, बस इतनी सावधानी रखनी होती है कि वोटिंग के लिए तय घंटों में ये न किया जाए ताकि वोटरों की मर्जी किसी भी तरह से प्रभावित न हो.