पहलगाम आतंकी हमले का जवाब भारत ने भी पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को खत्म करते हुए दिया. इसके बाद दोनों देशों के बीच जंग छिड़ गई, जो लगभग तीन दिन चली. अब सीजफायर है लेकिन हमारे बॉर्डर इलाकों में लगातार सैन्य मलबा मिल रहा है, जैसे मिसाइल या ड्रोन के टुकड़े. स्थानीय लोग उसे उठा भी रहे हैं. देखने में भले ही ये निष्क्रिय लगें लेकिन इनमें विस्फोटक हो सकता है, जो मूवमेंट से फट सकता है. ये खतरा लंबे समय तक बना रहेगा.
क्या है UXO और क्यों जोखिम है उनसे
युद्ध के दौरान सेनाओं दुश्मन इलाकों पर नुकसान के इरादे से विस्फोटक गिराती हैं. ये कई बार बिना फटे रह जाते हैं. यही UXO यानी अनएक्सप्लोडेड ऑर्डनेंस हैं. इसमें बम, मिसाइल, बारूदी सुरंगें और गोला-बारूद शामिल हैं, जो तनाव के दौरान गिराए गए, लेकिन किसी वजह से तब ब्लास्ट नहीं हो सका. ये सक्रिय रहते हैं और इनकी सबसे खतरनाक बात ये है कि इनसे हुआ नुकसान लड़ाई तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि इसके बाद भी सालों तक चलता है. सीमावर्ती इलाकों में आम लोगों के नुकसान का इसमें ज्यादा डर रहता है.
इस देश में दशकों बाद भी हो रही मौतें
वियतनाम युद्ध में इसी वजह से भारी नरसंहार हुआ, जो जंग के बाद चलता रहा. अमेरिका और वियतनाम के बीच चली लंबी लड़ाई में यूएस आर्मी ने लगभग 75 से 80 लाख टन बम और विस्फोटक सामग्री वियतनाम, लाओस और कंबोडिया की जमीनों पर गिराई. यह क्वांटिटी दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान गिराए गए कुल बमों से कहीं ज्यादा थी. इसका मकसद सिर्फ दुश्मन सैनिकों को मारना नहीं था, बल्कि पूरा जंगल, खेत, गांव, रास्ते, सुरंगें और छिपने की संभावित सारी जगहों को तबाह कर देना था ताकि दुश्मन सेना में कोई न छूटे .
इन बमों में कई तरह की तकनीकों का इस्तेमाल हुआ ताकि नुकसान ज्यादा से ज्यादा हो सके. इतनी बमबारी की गई कि वियतनाम का कोई कोना अछूता नहीं रहा. कई इलाकों में तो यह अनुमान लगाया गया है कि हर व्यक्ति के हिस्से में 300 किलो विस्फोटक गिरा. वियतनाम एंबेसी की रिपोर्ट के अनुसार, देश के ग्रामीण इलाकों में भी अब भी तीन लाख अनएक्सप्लोडेड ऑर्डनेंस बाकी हैं, और जो फटे उनकी वजह से हजारों जानें जा चुकीं, जबकि हजारों लोग अपंग हो चुके.
अब भी लैंडमाइन्स हटाने पर हो रहा काम
दरअसल यूएस आर्मी ने जो विस्फोटक बिछाए, उनमें से लाखों बम अनएक्सप्लोडेड ऑर्डनेंस के रूप में रह गए, यानी जो फटे नहीं, लेकिन जमीन में दबे हुए हैं और कभी भी विस्फोट हो सकता है. बच्चों से लेकर खेत में काम करते किसान तक इससे अछूते नहीं रहे. कथित शांति आने के बाद भी वियतनाम में रह-रहकर विस्फोट होते रहे. हालात ये हैं कि आज भी इस देश में लोग जमीन जोतते या पानी के लिए खुदाई करते हुए डरते हैं कि कहीं ब्लास्ट न हो जाए. माइन्स हटाने का काम वहां अब भी चल रहा है, जबकि युद्ध खत्म हुए पचासों साल हो चुके.
क्या-क्या हो सकता है मलबे में
ड्रोन या मिसाइल के टूटे हुए हिस्से भले ही सिर्फ बेकार के टुकड़े लगें, लेकिन उनमें विस्फोटक, केमिकल या इलेक्ट्रॉनिक हिस्से मौजूद हो सकते हैं जो रेडियोएक्टिव भी हो सकते हैं या बिजली का झटका दे सकते हैं. वहीं कारतूस या बम का खोल खाली न भी हो, तब भी उसमें बचा हुआ बारूद अचानक फट सकता है. कभी-कभी दुश्मन देश जानबूझकर ऐसे उपकरण भेजते हैं जिनमें ट्रैप लगा होता है, ताकि किसी को नुकसान पहुंचे या दहशत फैले. इसलिए इसे सिर्फ कचरा मान लेना भारी भूल हो सकती है.
सबसे मुश्किल बात ये है कि UXO खेतों, घरेलू कामकाज की जगहों पर पड़े होते हैं. कई बार ये मिट्टी या पेड़-पौधों के नीचे दब जाते हैं. खेती करते हुए या जमीन के भीतर किसी भी वजह से खुदाई के दौरान ये फट सकते हैं. एक्सपर्ट भी ये बात मानते हैं.
क्या कहना है एक्सपर्ट का
लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ कहते हैं- वॉर के दौरान जितना नुकसान नहीं होता, कई बार इन ऑर्डनेंस की वजह से होता है.
पाकिस्तान के साथ हालिया टेंशन के बाद अभी भी सीमावर्ती गांवों में बमों, मिसाइलों का टुकड़ा पड़ा होगा. लोग उन्हें हार्मलेस मानकर उठा लेते हैं जो गलत है. आम लोगों को नहीं पता कि किसके भीतर क्या है. ऐसे में मलबा दिखते ही उनके बारे में तुरंत नजदीकी पुलिस स्टेशन या फिर सेना को सूचित करना चाहिए. पुलिस या सेना बम निरोधक दस्ते के साथ आएगी और घेराबंदी कर उसमें मौजूद विस्फोटक को डिफ्यूज कर सकती है. जब तक सुरक्षा एजेंसी नहीं आती है, उस जगह से दूर रहना और आसपास कोई मूवमेंट करने से बचना चाहिए.
युद्ध न होने के दौरान भी बॉर्डर इलाकों में सैन्य प्रैक्टिस चलती रहती है. इस दौरान जमा हुए मलबे को स्थानीय लोग, खासकर बच्चे या चरवाहे या कबाड़ जमा करने वाले लोग मेटल स्क्रैप मानकर उठा लेते हैं. राजौरी, पुंछ और सांबा जैसे जिलों में इनकी वजह से कई कैजुएलिटी हो चुकीं.