सीरिया में इतनी तेजी से चीजें बदली, इसकी उम्मीद शायद किसी को भी नहीं होगी. 27 नवंबर को हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) ने बशर अल-असद सरकार के खिलाफ जंग छेड़ दी. और 11 दिन बाद ही 8 दिसंबर को बशर अल-असद को देश छोड़कर भागना पड़ा. ये सब तब हुआ जब असद ने कुछ दिन पहले ही आतंकवादियों को कुचलने की कसम खाई थी.
बशर अल-असद 2000 से सीरिया के राष्ट्रपति थे. उनसे पहले 29 साल तक उनके पिता हाफिज अल-असद ने सत्ता संभाली थी. सीरिया की सत्ता पर 53 साल तक असद परिवार का कब्जा रहा. आखिरकार आठ दिसंबर को विद्रोहियों के राजधानी दमिश्क पर कब्जे के साथ ही इसका अंत हो गया. असद अब अपने परिवार के साथ रूस की राजधानी मॉस्को में हैं.
इससे पहले भी असद को कई बार सत्ता से उखाड़ फेंकने की कोशिशें की गईं, लेकिन सभी नाकाम रही. साल 2011 में असद सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए. ये वो वक्त था जब मिडिल ईस्ट के कई देशों में तानाशाहों के खिलाफ जनता सड़कों पर थी. दशकों से बरकरार सत्ता उखाड़ी जा रही थीं. लेकिन असद ने इस विरोध को बेरहमी से कुचला. नतीजनत विद्रोह गृहयुद्ध में बदल गया. लगभग 14 साल तक सीरिया गृहयुद्ध की आग में जलता रहा.
अरब स्प्रिंग में बर्बाद हो गए तानाशाह
मिडिल ईस्ट के कई देशों में मौजूदा सरकार के खिलाफ जनता ने विद्रोह कर दिया था. ट्यूनीशिया से इसकी शुरुआत हुई. इसे 'अरब स्प्रिंग' कहा जाता है.
साल 2011 में अरब स्प्रिंग में कई तानाशाह बर्बाद हो गए. दिसंबर 2010 में सब्जी बेचने वाले ने पुलिस के अत्याचार से तंग आकर आत्मदाह कर लिया था. जनवरी 2011 में उसकी मौत हो गई. जनता ने राष्ट्रपति जिने अल अबिदीन बेन अली के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए. 10 दिन बाद राष्ट्रपति बेन अली का 23 साल का शासन खत्म हो गया.
इन विरोध प्रदर्शनों ने पूर् अरब वर्ल्ड में विद्रोह की लहर पैदा कर दी. 25 जनवरी 2011 को मिस्र में 30 साल से सत्ता पर काबिज राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को हटाने की मांग की. 11 फरवरी को जब लाखों की भीड़ सड़कों पर उतर आई तो मुबारक ने इस्तीफा दे दिया और सत्ता सेना को सौंप दी. अगले साल मोहम्मद मुर्सी को राष्ट्रपति चुना गया, लेकिन सालभर में जनरल अब्देल फतेह अल-सीसी की अगुवाई में सेना ने तख्तापलट कर दिया. अल-सीसी अभी भी मिस्र के राष्ट्रपति हैं.
इसी तरह फरवरी 2011 में लीबिया में भी तानाशाह मुअम्मर अली गद्दाफी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए. कुछ ही दिनों में ये विद्रोह गृहयुद्ध में बदल गया. आखिरकार 20 अक्टूबर 2011 को विद्रोहियों ने गद्दाफी को पकड़ लिया और उसकी हत्या कर दी.
विद्रोह की ये आग यमन भी पहुंची. 33 साल से यमन पर राज कर रहे अली अब्दुल्ला सालेह के खिलाफ लोग सड़कों पर उतरे. एक साल तक चले विरोध प्रदर्शनों के बाद अब्दुल्ला सालेह ने सत्ता अपने डिप्टी अब्दराबुह मंसूर हादी को सत्ता सौंप दी.
बहरीन में भी राजशाही के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन हुआ था. लोगों ने राजशाही की बजाय लोकतंत्र की मांग की. लेकिन वहां की राजशाही ने इन प्रदर्शनों को दबा दिया.
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मगर असद हमेशा बचते रहे
सीरिया की सत्ता पर 1971 से ही असद परिवार का कब्जा रहा. 1971 से 2000 तक हाफिज अल-असद ने शासन किया. हाफिज की मौत के बाद उनके सबसे छोटे बेटे बशर अल-असद ने सत्ता संभाली.
मिडिल ईस्ट के कई देशों में जब अरब स्प्रिंग की वजह से तानाशाहों को सत्ता से बेदखल किया जा रहा था, जब सीरिया में भी बशर अल-असद के खिलाफ चिंगारी भड़की. फरवरी 2011 में दक्षिणी सीरिया के दारा शहर के एक स्कूल की दीवार पर 'अब तुम्हारी बारी है, डॉक्टर' लिखने वाले 14 साल के मौविया स्यास्नेह को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. 26 दिन तक उसे बंदी बनाकर रखा गया और कथित तौर पर उसे टॉर्चर किया गया. स्यास्नेह समेत उसके दोस्तों को बंदी बनाए जाने के खिलाफ जनता सड़कों पर आई. लेकिन असद सरकार ने इसे बेरहमी से कुचल दिया. बस यहीं से शुरू हुआ सीरिया में गृहयुद्ध का दौर.
मार्च 2011 में इन विरोध प्रदर्शनों पर पहली प्रतिक्रिया देते हुए असद ने इसे 'विदेशी साजिश' बताया था. असद ने अरब स्प्रिंग का मजाक उड़ाते हुए विरोध प्रदर्शन करने वालों की तुलना 'कीटाणुओं' से की थी.
असद सरकार ने अपने खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए सेना उतार दी. सीरिया की सड़कों पर कत्लेआम मचा. दिसंबर 2011 में रॉयटर्स ने एक रिपोर्ट में बताया था कि सीरियाई सेना की कार्रवाई में 5 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. जबकि, 11सौ से ज्यादा लोगों को आतंकियों ने मार डाला था.
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...तो 9 साल पहले ही बेदखल हो जाते असद!
2015 आते-आते सीरिया के कई इलाकों पर विद्रोहियों का कब्जा हो गया था. ये वो वक्त था, जब असद के करीबियों और रिश्तेदारों की रहस्यमयी परिस्थिति में मौत हो रही थी. उत्तरी और दक्षिणी सीरिया में जब सरकार ने अपनी पकड़ खो दी, तो सरकार के अंदर भी चीजें बिगड़ने लगीं.
उसी साल अप्रैल में मौजूदा इंटेलिजेंस चीफ अली ममलौक को हाउस अरेस्ट कर लिया गया था. उन पर बशर को राष्ट्रपति पद से हटाने के लिए उनके चाचा रिफात अल-असद के साथ मिलकर साजिश रचने का आरोप था. अमेरिका और पश्चिमी देश भी असद को सत्ता से हटाना चाहते थे.
सितंबर 2015 में जब लगा कि किसी भी असद की सत्ता जा सकती है, तो रूस ने इसमें दखल दिया. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने असद की मदद करने का ऐलान किया. रूस ने सीरिया में न सिर्फ अपनी सेना उतारी, बल्कि विद्रोहियों के ठिकानों पर हवाई हमले भी किए. नवंबर 2015 में असद ने दोहराया कि गृहयुद्ध को खत्म करने की प्रक्रिया पर तब तक बातचीत नहीं हो सकती, जब तक आतंकवादियों का कब्जा है. दिसंबर 2015 में पुतिन ने कहा कि रूस न सिर्फ असद की सेना के साथ है, बल्कि इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में एंटी-असद विद्रोहियों से लड़ने के लिए भी तैयार है. रूसी सेना की मदद से सीरिया के कई इलाकों पर फिर से असद सरकार का नियंत्रण हो गया.
2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत हुई. इसके बाद अमेरिका ने अपना फोकस सीरिया से कम कर दिया. मार्च 2017 में संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली ने कहा कि अमेरिका का फोकस असद को सत्ता से बेदखल करने पर नहीं है.
सिर्फ रूस ही नहीं, बल्कि ईरान की मदद से भी असद ने अपने खिलाफ चल रहे विद्रोह को कुचल दिया. रूस के साथ-साथ ईरान की सेना ने भी असद सरकार की मदद की.
फिर अब क्यों नहीं बच पाई सत्ता?
बशर अल-असद के पास एक मजबूत और वफादार सेना थी, जिसने विद्रोह को कुचलने में अहम भूमिका निभाई. अपनी सेना के साथ-साथ उन्हें रूस और ईरान की सेना का भी साथ मिला. सीरिया में विपक्ष भी कमजोर रहा, जिस कारण असद के खिलाफ राजनीतिक माहौल भी नहीं बन सका.
लेकिन सवाल उठता है कि जो असद 13 साल से अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रहे, वो आखिरकार अब कैसे नाकाम हो गए? माना जा रहा है कि ऐसा इसलिए क्योंकि पहले और अब के हालातों में बहुत अंतर है.
अब मध्य पूर्व में जंग का एक दौर चल रहा है. असद के साथी ईरान और हिज्बुल्लाह इजरायल से जंग लड़ रहे हैं. इजरायल के साथ जंग ने ईरान और हिज्बुल्लाह को कमजोर कर दिया है. वहीं, यूक्रेन से युद्ध के कारण रूस भी पहले से ज्यादा कमजोर हुआ है. रूस लगभग 34 महीने से यूक्रेन के साथ जंग लड़ रहा है. इस जंग से रूस के संसाधनों पर असर पड़ा है. 2015 में रूस जिस तरह से खुलकर असद के साथ खड़ा हुआ था, इस बार वैसा नहीं हुआ.
एक बड़ी वजह सीरियाई सेना भी है. माना जा रहा है कि गृहयुद्ध लड़ते-लड़ते सीरिया की सेना थक चुकी थी. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, सीरिया के सैनिकों को इतनी तनख्वाह भी नहीं मिल रही थी कि वो अपनी जरूरतें पूरी कर सकें. ईरान, हिज्बुल्लाह का साथ न मिलने और रूस का भी पूरी तरह से इसमें शामिल न हो पाने से सीरियाई सेना के लड़ने की इच्छा कम हो गई.
बहरहाल, 13 साल से भी लंबे वक्त से गृहयुद्ध की आग में जल रहे सीरिया में अब शांति की उम्मीद है. अभी यहां विद्रोही गुट हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) का कब्जा है. इसका संबंध अल-कायदा से भी रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने असद सरकार के पतन को सीरिया के पीड़ितों के लिए बेहतर भविष्य बनाने का ऐतिहासिक अवसर बताया है. हालांकि, सीरिया में कट्टरपंथी संगठन का कब्जा होने के बाद अब यहां क्षेत्रीय संघर्ष शुरू होने का खतरा भी बढ़ गया है.