डोनाल्ड ट्रंप सत्ता संभालने के बाद से ही लगातार भारत पर आक्रामक हैं. पहले तो उन्होंने इमिग्रेंट्स की बढ़ती आबादी को टारगेट किया, फिर एकतरफा टैरिफ युद्ध छेड़ दिया. बची-खुची कमी उनके नेता पूरी कर रहे हैं. हाल में उन्हीं की पार्टी के एक नेता अलेक्जेंडर डंकन ने टेक्सास में बनी हनुमान जी की मूर्ति पर एतराज जता दिया.
डंकन का कहना है कि चूंकि अमेरिका एक क्रिश्चियन देश है, लिहाजा यहां इस प्रतिमा का होना सही नहीं. बल्कि एक कदम आगे बढ़ते हुए उन्होंने स्टेच्यू को ही 'फॉल्स हिंदू गॉड' बता दिया.
विरोध में क्या-क्या कहा जा रहा
स्टेच्यू ऑफ यूनियन के नाम से अमेरिका की तीसरी सबसे बड़ी मूर्ति का उद्गाटन पिछले साल अगस्त में हुआ था. कांसे की बनी प्रतिमा को स्टेच्यू ऑफ यूनियन इसलिए कहा गया क्योंकि हनुमान जी ने श्रीराम और सीता माता को मिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. उद्गघाटन के साथ ही स्थानीय चर्च इसका विरोध करने लगे. कुछ ने तो इसे डेमन गॉड तक कह दिया. मूर्ति मंदिर परिसर में होते हुए भी काफी ऊंची है और दूर से दिखती है. इस बात पर कट्टरपंथी और विरोध करने लगे.
पार्टी लीडर ने क्या कह दिया
धार्मिक समुदाय तो आलोचना कर रहे थे, लेकिन आग में घी डालने का काम किया, ट्रंप की ही पार्टी के नेता ने. अलेक्जेंडर डंकन,जो कि रिपब्लिकन के नेता हैं, वे लगातार लोगों से बात कर रहे हैं. इसी कड़ी में मेजोरिटी वोटरों को लुभाने के लिए डंकन ने सीधे भारतीयों पर हमला कर दिया. उन्होंने टेक्सास में बनी मूर्ति को लेते हुए X पर लिखा कि हम क्यों एक झूठी मूर्ति को यहां रहने दे रहे हैं? हम एक क्रिश्चियन देश हैं. अपनी बात को पुख्ता करने के लिए उन्होंने बाइबल का भी एक वाक्य डाल दिया.
ट्रंप ने हालांकि मूर्ति को लेकर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया लेकिन उनकी चुप्पी को उनकी हामी की तरह देखा जा रहा है, खासकर तब जबकि वे लगातार भारतीय आबादी पर आक्रामक रहे.

इसके तुरंत बाद हिंदू अमेरिकन संगठन विरोध करने लगे. उन्होंने डंकन के बयान को एंटी-हिंदू और उकसाने वाले बताते हुए माफी मांगने की बात भी की. फिलहाल सोशल मीडिया पर इसे लेकर दो धड़े हुए पड़े हैं. अमेरिकी जनता एक तरफ है, जो चरमपंथ की तरफ जाते हुए हिंदू देवताओं को वहां से हटाने को कह रही है. दूसरी तरफ अमेरिका में बसे हिंदू हैं जो इसपर नाराज हैं.
इस बीच सवाल आता है कि क्या अमेरिका आधिकारिक तौर पर क्रिश्चियन देश हैं?
अगर हां तो वहां माइनोरिटी अपने धार्मिक पर्व या आस्था को किस हद तक सार्वजनिक कर सकती है?
यूएस को अक्सर एक क्रिश्चियन देश की तरह देखा जाता है. आबादी के मामले में ये बात सही है, लेकिन आधिकारिक तौर पर नहीं. वहां के संविधान में एस्टेब्लिशमेंट क्लॉज है, जो कहता है कि सरकार किसी धर्म को आधिकारिक धर्म की मान्यता नहीं दे सकती. यानी अमेरिका कोई आधिकारिक धार्मिक राष्ट्र नहीं, बल्कि धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है. हां, ये बात जरूर है कि वहां ज्यादातर आबादी ईसाई है. ये कल्चरल और सोशल तौर-तरीकों पर भले असर डाले, लेकिन कानून पर नहीं डाल सकता.

इसका दूसरा पहलू भी है
भले ही वहां धार्मिक आजादी है लेकिन माइनोरिटी के लिए दायरा तय है. मिसाल के तौर पर टेक्सास में ऊंची हनुमान मूर्ति हो या फिर सार्वजनिक तौर पर त्योहार मनाना, इसके लिए इजाजत लेनी होती है. कई जोनिंग लॉ हैं, जो बताते हैं कि कहां त्योहार नहीं मनाना है. कुछ भी करने से पहले समुदाय की मंजूरी जरूरी होती है, जो आमतौर पर लोकल नेता देते हैं. तमाम मंजूरियों के बाद भी अगर समारोह किसी और समुदाय को असहज करे तो लोकल एडमिनिस्ट्रेशन उसपर रोक लगा सकता है. ये धार्मिक और सामाजिक एकता बनाए रखने के लिए किया जा सकता है.
हनुमान जी की प्रतिमा की बात करें तो इतने बड़े स्टेच्यू के लिए कई स्तर पर इजाजत लेनी होती है. इसमें सिटी काउंसिल, स्टेट अथॉरिटी से लेकर कानूनी इजाजत भी ली गई थी. इसके बाद भी बवाल हो रहा है तो इसके पीछे मौजूदा कड़वाहट है, जिसे कई नेता भुनाने की कोशिश कर रहे हैं.
आधिकारिक धर्म वाले देशों में क्या हाल
अमूमन आधिकारिक रूप से एक धर्म वाले देश में अल्पसंख्यकों को धार्मिक छूट कम ही मिल पाती है. हालांकि ये इसपर भी है कि देश का संविधान कितनी आजादी देता है. अगर इस्लामिक देशों को ही लें तो यहां मजहबी कट्टरता काफी है. माइनोरिटी अपनी आस्था को मान सकते हैं, तीज-त्योहार मना सकते हैं कि लेकिन उसी दायरे में, जहां बाकियों को कोई असुविधा न हो. सार्वजनिक पूजा की अनुमति आमतौर पर नहीं मिल पाती.