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दिल्ली धमाके के दोषी देविंदर भुल्लर की रिहाई क्यों चाहते हैं खालिस्तानी, बार-बार उठता रहा 'बंदी-सिंहों' का मुद्दा

लगभग 30 साल पहले दिल्ली ब्लास्ट केस में देविंदर पाल भुल्लर को दोषी पाया गया. अब ये शख्स फिर चर्चा में है. दिल्ली के उपराज्यपाल ने आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने खालिस्तानी आतंकी गुट सिख फॉर जस्टिस से फंडिंग ली ताकि दोषी को जेल से छुड़ाया जा सके. सालों पहले हुए विस्फोट का मास्टर माइंड अक्सर चर्चा में रहता है.

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दिल्ली ब्लास्ट केस में देविंदर पाल भुल्लर को दोषी पाया गया था. (Photo- India Today)
दिल्ली ब्लास्ट केस में देविंदर पाल भुल्लर को दोषी पाया गया था. (Photo- India Today)

दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने आतंकी संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) से कथित पॉलिटिकल फंडिंग पाने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ NIA जांच की मांग की. आरोप है कि आप ने देविंदर पाल सिंह भुल्लर को जेल से छुड़ाने के लिए एसएफजे से कुछ सालों में 133 करोड़ रुपए लिए. ये वही खालिस्तानी नेता है, जिसकी वजह से दिल्ली ब्लास्ट में 9 लोग मारे गए थे. इसके बाद से भुल्लर की रिहाई के लिए बड़े स्तर पर कोशिशें होती रहीं. 

कौन है बम ब्लास्ट का दोषी

साठ के दशक में बठिंडा में जन्मा देविंदर पाल भुल्लर केमिकल इंजीनियरिंग प्रोफेसर था, जो लुधियाना में पढ़ाया करता. खालिस्तानी सोच के साथ भुल्लर ने सितंबर 1993 में तत्कालीन कांग्रेस नेता मनिंदरजीत सिंह बिट्टा की कार को बम से उड़ाने की साजिश की. हमले में कांग्रेस लीडर तो बच गए, लेकिन आसपास के 9 लोग मारे गए, और 30 से ज्यादा घायल हुए. टाडा अदालत ने इस मामले में दोषी पाते हुए भुल्लर को मौत की सजा सुनाई थी. 

आतंकवाद साबित होने पर भी मिला सपोर्ट

साल 2003 में भुल्लर के वकील ने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका डाली, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने नामंजूर कर दिया. यहां दोषी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने की अपील करने लगा. आखिरकर मौत की सजा को साल 2014 में उम्रकैद में बदल दिया गया. दोषी लगातार अपनी सेहत के हवाले से नई-नई छूटें मांगता रहा. उसका तर्क था कि उसे डिप्रेशन, हाईपरटेंशन और ऑर्थराइटिस है. ऐसे में उसे दिल्ली की तिहाड़ जेल से हटाकर पंजाब की जेल में भेज दिया जाए. 

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devinder pal singh bhullar release efforts sikh for justice and other khalistani groups photo Getty Images

लोकल से लेकर चरमपंथी गुट लगा रहे जोर

पिछले एक दशक में खालिस्तानी गुट ज्यादा आक्रामक होने लगे. इसके साथ ही वे अपने पुराने साथी को रिहा करने की मांग भी ज्यादा जोरशोर से करने लगे. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2013 में खुद पंजाब के तत्कालीन सीएम प्रकाश सिंह बादल ने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह से भुल्लर की सजा और कम करने की अपील की थी. इसके बाद कतार में आई आम आदमी पार्टी. साल 2014 में आप सरकार ने दिमागी बीमारी का हवाला देते हुए दोषी की सजा और कम करने की अपील की. इन कोशिशों से आखिरकार भुल्लर को तिहाड़ से अमृतसर सेंट्रल जेल में शिफ्ट कर दिया गया. तब से वो लगातार पैरोल पर बाहर आ रहा है. 

अब भुल्लर के रिलीज की मांग जोर पकड़ चुकी

पांच साल पहले गुरुनानक देव जयंती पर केंद्र ने भुल्लर समेत आठ सिख राजनीतिक कैदियों की रिहाई की बात की. हालांकि दिल्ली सरकार के सेंटेंस रिव्यू बोर्ड ने उसकी परमानेंट रिलीज के आवेदन को 7 बार नामंजूर कर दिया. इसपर आप की मंशा घेरे में आ गई. उसपर आरोप लगे कि वो खुद भुल्लर को कैद में रखना चाहती है. हालांकि आप की दलील है कि सेंटेंस रिव्यू बोर्ड के सदस्य एलजी को रिपोर्ट करते हैं, और उनसे प्रभावित हैं. 

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किस आधार पर मांगी जा रही रिहाई

भुल्लर के परिवार का कहना है कि वो पिछले 12 सालों से सिजोफ्रेनिया का इलाज ले रहा है. इसके साथ ही 28 सालों की कैद भुगत चुका. ऐसे में मानवीय आधार पर उसकी रिहाई की मांग हो रही है. 

devinder pal singh bhullar release efforts sikh for justice and other khalistani groups photo AFP

चरमपंथी गुटों को क्या मतलब है बंदियों से

मार्च 2023 में चंडीगढ़-मोहाली हाईवे पर सैकड़ों लोग प्रदर्शन कर रहे थे, जिसकी मांग थी 'बंदी सिंहों' की रिहाई. वे अस्सी के दशक में अलगाववादी आंदोलन के चलते जेल में कैद राजनैतिक कैदियों को जेल से छुड़ाना चाहते हैं.

इनमें कई ऐसे नाम हैं, जो लगातार चर्चा में आते रहे. एक है बलवंत सिंह राजोआना, जिसने पंजाब के पूर्व सीएम बेअंत सिंह की हत्या की थी. एक नाम भुल्लर का भी है. एक और हैं,  गुरदीप सिंह खेड़ा, जिसपर दिल्ली और कर्नाटक में बम धमाकों का दोष साबित हुआ. ये 30 से ज्यादा साल जेल काट चुका. कुल मिलाकर 9 ऐसे कैदी हैं, जो जेल में 20 से ज्यादा साल काट चुके. कई चरमपंथी संगठनों की सोच है कि उनकी रिहाई से खालिस्तान की मांग और जोर पकड़ सकेगी. यही वजह है कि सिख राजनैतिक बंदियों की रिहाई की मांग पंजाब में आएदिन होती रहती है. 

सिख फॉर जस्टिस संगठन क्या है

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जाते हुए जानते चलें, उस प्रतिबंधित संगठन के बारे में, जिससे फंडिंग पाने के आरोप आप पर लगे. साल 2007 में खालिस्तानी चरमपंथी गुरवंत सिंह पन्नू ने सिख फॉर जस्टिस संगठन बनाया, जिसका मकसद सिखों के लिए अलग देश की मांग है. ये लगातार कई अलगाववादी अभियान चलाता रहा, जो पंजाब को भारत से आजाद कराने की बात करता है. उसने कई बार जनमत संग्रह के आधार पर पंजाब को भारत से काटने की बात की. अब ये संगठन और इससे जुड़ी ज्यादातर ऑनलाइन गतिविधियां देश में प्रतिबंधित हैं. 

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