दरअसल, अस्सी के दशक के प्रसिद्ध अभिनेता भगवान दादा को इस सीन में अभिनेत्री ललिता पवार को एक थप्पड़ मारना था. थप्पड़ इतनी जोर का पड़ा कि ललिता पवार वहीं गिर पड़ीं और उनके कान से खून बहने लगा. फौरन सेट पर ही इलाज शुरू हो गया. इसी इलाज के दौरान डॉक्टर द्वारा दी गई किसी गलत दवा के नतीजे से ललिता पवार के शरीर के दाहिने भाग को लकवा मार गया. लकवे की वजह से उनकी दाहिनी आंख पूरी तरह सिकुड़ गई और उनकी सूरत हमेशा के लिए बिगड़ गई.
लेकिन आंख खराब होने के बावजूद भी ललिता पवार ने हार नहीं मानी. उन्हें फिल्मों में हिरोइन का रोल नहीं मिलता था लेकिन यहां से उनकी जिंदगी में एक नई शुरुआत हुई. हिंदी सिनेमा की सबसे क्रूर सास की. वैसे बहुत कम लोग जानते हैं कि ललिता पवार अच्छी सिंगर भी थीं. 1935 की फिल्म ‘हिम्मते मर्दां’ में उनका गाया ‘नील आभा में प्यारा गुलाब रहे, मेरे दिल में प्यारा गुलाब रहे’ उस वक्त काफी लोकप्रिय हुआ था.
ललिता पवार ने रामानंद सागर की रामायण में मंथरा का रोल भी किया था. 32 साल की उम्र में ही वह करैक्टर रोल्स करने लगी थीं. ललिता पवार का जन्म नासिक के एक धनी व्यापारी लक्ष्मणराव सगुन के घर में हुआ. लेकिन उनका जन्म स्थान इंदौर माना जाता है. 18 रुपये की मासिक पगार पर ललिता ने बतौर बाल कलाकार मूक फिल्म में काम किया था. 1927 में आई इस फिल्म का नाम था 'पतित उद्धार'.