फैज ने केबीसी के मंच पर खुद के लिखे कई शेर सुनाए. जिनमें एक शेर ये था,
"वक्त बेवक्त अपनी वफादारी का इम्तेहान हूं मैं,
दोस्तों में यारों में यारी का इम्तेहान हूं मैं.
नमाज की, रोजे की, अजान की पहचान हूं,
और कितना खुशनसीब हूं कि इस मुल्क का मुसलमान हूं...
मैंने अशफाक उल्ला से वतन पर मरना सीखा,
मौलाना कलाम से वतन के लिए कुछ करना सीखा.
और मेजर उस्मान की तरह हर हाल में वतन पर कुर्बान हूं,
कितना खुशनसीब हूं कि इस मुल्क का मुसलमान हूं."