रेट्रो रिव्यू सीरीज के तहत इस बार हम 1967 में रिलीज हुई फिल्म 'हमराज' पर नजर डालते हैं. एक ऐसी फिल्म जो फिल्म की मुख्य नायिका विमी की दुखद जिंदगी को करीब से दर्शाती है.
रेट्रो रिव्यू - हमराज (1967)
कलाकार - सुनील दत्त, राज कुमार, विमी, बलराज साहनी, मुमताज, मदन पुरी, मनमोहन कृष्ण
निर्देशक - बीआर चोपड़ा
संगीत/गीत- रवि, साहिर लुधियानवी
बॉक्स-ऑफिस स्थिति- सुपरहिट
कहां देखें- यूट्यूब
क्यों देखें- रोमांस से लेकर लव ट्रायंगल तक एक रहस्यमयी कहानी है. फिल्म का अंत इससे भी ज्यादा दिलचस्प और सहज
बदलाव दिखाता है.
कहानी की सीख- अपने जीवनसाथी पर यकीन करें, भले ही क्यों ना वो आपसे रहस्य छिपाने की कोशिश कर रहे हों.
अभिनेत्री विमी एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली पहेली थीं. वो इतनी सुंदर थीं कि अपनी सुंदरता से कुछ भी कमाल कर सकती थीं. फिल्म 'हमराज' में उन्हें भावनाओं को चित्रित करने का काम सौंपा गया था. फिल्म में उनके किरदार का नाम मीना होता है, जो पहले दो घंटे में ही प्यार में पड़ जाता है. मीना युद्ध में अपने पति को खो देती है. अपने बच्चे की मौत के गम में टूट जाती है. वो दोबारा शादी करके अपनी जिंदगी शुरू करती है. तभी उसकी लाइफ में चमत्कार होता है और उसे पता चलता है कि उसका बच्चा जिंदा है. इसके बाद वो अपने पहले पति से भी मिल जाती है. इन सारी परिस्थितियों में भी विमी का प्रदर्शन काफी संयमित रहता है. उनके गाल पर एक तिल है, जो उनकी खूबसूरती में चार चांद लगाता है. काश विमी ने इसी तरह के धैर्य के साथ जीवन को जिया होता, तो हम उन्हें और अधिक देख सकते.
फिल्म के संगीतकार रवि के माध्यम से उनका बीआर चोपड़ा से परिचय हुआ और विमी को 'हमराज' में मुख्य भूमिका के लिए चुना गया. उन्होंने बिकिनी में बोल्ड और खूबसूरत अंदाज में पोज दिए. विमी को स्टारडम मिलना तय लग रहा था, लेकिन उनकी जिंदगी तेजी से उलझ गई. उनकी अगली दो फिल्में फ्लॉप हो गईं, उनके पति, जिनसे उन्होंने अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी की थी, ने उन्हें छोड़ दिया. इसके बाद विमी अकेलेपन, असफलता, शराब और आर्थिक तंगी से जूझते हुए अंधेरे में डूब गईं. 1977 में उनका निधन हो गया और वो अपने पीछे एक दुखद विरासत छोड़ गईं.
कहानी
'हमराज' की शुरुआत दार्जिलिंग के हरे-भरे घास के मैदानों, नीले आसमान के नीचे फ्रेश रोमांस के रूप में होती है. जिसे महेंद्र कपूर के 'नीले गगन के तले' द्वारा अमर कर दिया गया है. मीना (विमी) तेजतर्रार कैप्टन राजेश (राज कुमार) के प्यार में पड़ जाती है, जो स्टाइलिश टोपी, चश्मे और सेना की वर्दी में कमाल का दिखता है. एक सेना अधिकारी के लिए मीना अपने पिता के खिलाफ जाकर राजेश संग भाग जाती है. इसके बाद मीना और राजेश गुपचुप शादी कर लेते हैं. पर उसे नहीं पता था कि शादी के अगले ही दिन उसकी जिंदगी में तूफान आने वाला है. शादी के तुरंत बाद राजेश को युद्ध के लिए बुलाया जाता है. जब उसका नाम शहीदों की सूची में दिखाई देता है, तो मीना बेहोश हो जाती है.
अपने पिता के आग्रह पर मीना अभिनेता कुमार (सुनील दत्त) से शादी कर लेती है और बॉम्बे में एक नई जिंदगी की शुरुआत करती है. इसके बाद एक मृत माने वाले बच्चे और दो रंग के जूते पहने एक रहस्यमयी व्यक्ति की एंट्री होती है और उसी समय मीना की जिंदगी के कई रहस्य उजागर होते हैं. मीना अपनी छिपी सच्चाइयों की रक्षा करने के लिए संघर्ष करती है, लेकिन उसका दुखद अंत होता है, जिसमें कुमार मुख्य संदिग्ध है. मीना को किसने मारा? जूतों के पीछे क्या रहस्य है? फिल्म इन रहस्यों को सुलझाती है और कुमार के लिए एक नए रोमांस के संकेत के साथ समाप्त होती है.
अच्छा, बुरा और बदसूरत
अपने पहले भाग में 'हमराज' रवि के सदाबहार संगीत, साहिर लुधियानवी की दार्शनिक कविता और महेंद्र कपूर की ऊंची आवाज से प्रेरित होकर, खूबसूरत जगहों से दार्जिलिंग टॉय ट्रेन की तरह आगे बढ़ती है. हमेशा जादूगर रहे साहिर ने गहरे शब्दों से अपना जादू बिखेरा, खासकर 'ना मुंह छुपा के जियो', जो जीवन की परीक्षाओं के दौरान लचीलेपन का एक भावपूर्ण गाना है. 1962 के युद्धभूमि में सेट किया गया ये गाना मीना और भारत दोनों को पिछली असफलताओं को त्याग कर, नए जोश के साथ जीवन का सामना करने के लिए प्रेरित करता है.
चोपड़ा ब्रदर्स, बीआर और उनसे ज्यादा फेमस भाई यश सिनेमाई गति के उस्ताद थे. वो तेज बदलावों में विश्वास करते थे, ताकि कहानी अपनी पकड़ ना खोए. उनकी फिल्मों में संगीत हमेशा हाई जोश वाला होता था, जो कहानी को आगे बढ़ाता था. एक घंटे में पांच गानों के बाद 'हमराज' तेजी से एक संगीत से खोई-खोई कहानी में बदल जाती है. फिर एक रहस्य में और अंत में जासूसी में. कहानी में खामियों के बावजूद इसका संगीत और सुनील दत्त की एनर्जी दर्शकों को बांधे रखती है. 60 के दशक की फिल्म में सुनील दत्त को शर्टलेस भी दिखाया जाता है. उनकी चमकदार बॉडी पूरे पांच मिनट तक स्क्रीन पर प्रदर्शित होती है. फिल्म के आकर्षण को बढ़ाने के लिए बीआर चोपड़ा ने कुशलता से एक साइड प्लॉट बुना है. मुमताज अपने आकर्षण के साथ काले और सफेद रंग की ड्रेस में सुनील दत्त संग स्टेज पर रोमांस करती हैं, जो फैशन में एक मास्टरक्लास है. हालांकि, सब प्लॉट थोड़ा सा लड़खड़ाता है. शेक्सपियर के ऑथेलो से लिए गए वैवाहिक वफादारी पर उपदेशों के साथ तीखी और नैतिकतावादी क्षेत्र में बदल जाता है.
साइड प्लॉट की तरह बीआर चोपड़ा द्वारा चित्रित किए राज कुमार के किरदार को माफ नहीं किया जा सकता. 'हमराज' की आत्मा शालीन राज कुमार हैं. उनकी शाही उपस्थिति और स्कॉच से लथपथ कर्कश आवाज ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया. दुखद बात यह है कि उन्हें स्क्रीन पर बहुत कम समय दिया गया है. उनके आइकॉनिक डॉयलाग्स की एक भी लाइन स्क्रीन पर नहीं दिखाई देती है. केवल चोपड़ा ही राज कुमार के चेहरे को दूसरे हाफ में छिपाने के रहस्य को उजागर कर सकते थे. इसके बजाए उन्होंने उनके दोहरे रंग के जूतों पर ध्यान केंद्रित किया. हॉरर मिस्ट्री 'बीस साल बाद' में पहले से ही इस्तेमाल की जा चुकी है. यह थकी हुई सस्पेंस रणनीति एक बेकार चाल लगती है. ये स्क्रीन पर दिखाए गए अपराध से भी बड़ा अपराध है
'हमराज' की हत्या का ट्रैक एक ऐसा घोटाला है, जो इतना निर्भीक है कि ये व्यावहारिक रूप से सिनेमा के खिलाफ जुर्म है. कहानी के तर्क के हिसाब से ये एक गोली के सामान लगता है. ऐसा प्रतीत होता है कि फिल्म के लेखक को पुलिस जांच के बारे में कोई जानकारी नहीं है. लेखक ने पल्पिट क्राइम फिक्शन के एक डिब्बे पर छापा मारा, पन्नों को ब्लेंडर में फेंक दिया और एक स्मूदी परोस दी. बेतुकी कहानी पुलिस को बेवकूफ और दर्शकों को बच्चों के रूप में दिखाती है.
बलराज साहनी के चरित्र को एक मूर्खतापूर्ण जांच का नेतृत्व करते देखना हास्यास्पद लगता है, लेकिन अभिनेता की गंभीरता के कारण ऐसा नहीं हो पाया. उन्होंने इसे आपदा से बचा लिया.
फैसला
इन खामियों के बावजूद 'हमराज' एक आम बॉलीवुड फिल्म है, जिसे रवि की धुनों, साहिर की कविता और चोपड़ा के तेज निर्देशन ने आगे बढ़ाया है. और एक जॉनर से दूसरे में बदलाव और बढ़िया स्टार्स के साथ बनी ये फिल्म और बढ़िया होती अगर इसे थोड़ा छोटा बनाया जाता. हालांकि, जो याद आता है वो है विमी का जीवन: एक सितारा जो 'हमराज' में थोड़े समय के लिए चमका, लेकिन फ्लॉप, परित्याग और लत के कारण खत्म हो गया. अंत में फिल्म में विमी के लिए एक गाना है, जो कड़वी-मीठी यादें याद दिलाता है.