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कांग्रेस ने BRS को हराया तो तेलंगाना में CM पद की रेस में सबसे आगे कौन?

119 सदस्यीय तेलंगाना विधानसभा चुनाव में 3 दिसंबर को वोटों की गिनती होगी. अगर कांग्रेस 60 सीटों का आंकड़ा पार कर जाती है तो सीएम पद को लेकर नया चेहरा खोजा जाएगा और इस दौड़ में पीसीसी प्रमुख होने के नाते रेवंत रेड्डी भी आगे होंगे. वो संगठन खड़ा करने से लेकर जीत का श्रेय लेते नजर आ सकते हैं.

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तेलंगाना में कांग्रेस नेता रेवंत रेड्डी, भट्टी विक्रमार्क और दामोदर राजा नरसिम्हा बड़े चेहरे के तौर पर पहचाने जाते हैं.
तेलंगाना में कांग्रेस नेता रेवंत रेड्डी, भट्टी विक्रमार्क और दामोदर राजा नरसिम्हा बड़े चेहरे के तौर पर पहचाने जाते हैं.

कांग्रेस की सीनियर लीडर सोनिया गांधी का 9 दिसंबर को जन्मदिन है. तेलंगाना के संबंध में यह तारीख इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन 2009 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने संयुक्त आंध्र प्रदेश के विभाजन और नए राज्य तेलंगाना के गठन की प्रक्रिया का ऐलान किया था. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि तेलंगाना में प्रदेश कांग्रेस प्रमुख रेवंत रेड्डी ने भी 9 दिसंबर को लेकर बड़ा दावा किया है. उन्होंने कहा है कि 3 दिसंबर को नतीजे आएंगे और 9 दिसंबर को राज्य में कांग्रेस का नया मुख्यमंत्री हैदराबाद के लाल बहादुर स्टेडियम में शपथ लेगा. संयोग से 2004 में दिवंगत वाईएस राजशेखर रेड्डी ने भी उसी स्टेडियम में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.

हालांकि, कांग्रेस के इस दावे पर राजनीतिक जानकार थोड़ा आशंकित देखे जाते हैं. उनका कहना है कि कहीं ऐसा ना हो कि कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति (BRS) के गढ़ में सेंध ना लगा पाए और पार्टी का यह दावा मीम्स का हिस्सा बन जाए. क्योंकि इससे पहले बीआरएस ने रेवंत रेड्डी को फ्लॉप पीसीसी प्रमुख बताकर तंज कसा था. बीआरएस का कहना था कि रेड्डी के नेतृत्व में कांग्रेस ने राज्य में एक भी उपचुनाव नहीं जीत पाया है.

'कांग्रेस के बयान के निकाले जा रहे मायने'

सियासी तौर पर रेवंत रेड्डी के दावा का एनालिसिस किया जाए तो इसके पीछे राजनीतिक मायने छिपे दिख रहे हैं. दरअसल, कांग्रेस की तरफ से यह दिखाने का प्रयास है कि जिस तरह 9 दिसंबर 2009 को उसने तेलंगाना के गठन के साथ अपना अलग राज्य बनाने का वादा पूरा किया था, ठीक उसी तरह इस साल 9 दिसंबर को कांग्रेस सत्ता में आने पर अपनी छह गारंटी पूरी करने का वादा निभाएगी. इसके अलावा, इस दावे का एक और अहम संदेश माना जा रहा है और वो है- रेवंत रेड्डी का खुद को सीएम पद की दौड़ में शामिल करने की कोशिश करना. 

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'रेड्डी समुदाय को भी साधे जाने की चर्चाएं'

जानकार कहते हैं कि 119 सदस्यीय तेलंगाना विधानसभा चुनाव में 3 दिसंबर को वोटों की गिनती होगी. अगर कांग्रेस 60 सीटों का आंकड़ा पार कर जाती है तो सीएम पद को लेकर नया चेहरा खोजा जाएगा और इस दौड़ में पीसीसी प्रमुख होने के नाते रेड्डी भी आगे होंगे. वो संगठन खड़ा करने से लेकर जीत का श्रेय लेते नजर आ सकते हैं. चूंकि समर्थक रेड्डी को बीआरएस के विरोध में आक्रामक चेहरे और भीड़ में सबसे बड़े आकर्षण के रूप में देखते हैं. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि रेड्डी समुदाय पारंपरिक रूप से कांग्रेस का समर्थन करता रहा है. इतना ही नहीं, संयुक्त आंध्र प्रदेश में भी अधिकांश कांग्रेस मुख्यमंत्री रेड्डी समुदाय से बनाए गए थे. 

हालांकि, यह गौर करने वाली बात है कि मैरी चेन्ना रेड्डी (तेलंगाना) को छोड़कर अन्य सभी रेड्डी मुख्यमंत्री या तो तटीय आंध्र प्रदेश से थे या रायलसीमा से संबंध रखते थे. चाहे वो कडप्पा से वाईएसआर हों, कुरनूल से कोटला विजयभास्कर रेड्डी हों या तटीय आंध्र प्रदेश से जनार्दन रेड्डी.

के. चंद्रशेखर राव, वेलामा समुदाय से आते हैं, जिनकी तेलंगाना में अनुमानित आबादी 2% से भी कम है. ऐसे में रेड्डी हमेशा से राजनीतिक और आर्थिक रूप से शक्तिशाली माने गए हैं. राज्य में रेड्डी समुदाय की आबादी करीब 5-6% है. हालांकि, ये सब मोटे अनुमान हैं. क्योंकि हाल में ऐसी कोई जातीय जनगणना नहीं हुई है. 2014 में राज्य विभाजन के बाद भी कोई आंकड़े सामने नहीं आए.

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'एससी समुदाय के भट्टी विक्रमार्क भी दावेदार'

इतना ही नहीं, तेलंगाना विधानसभा में करीब एक-तिहाई विधायक रेड्डी समुदाय से हैं. उनमें से 36 विधायक बीआरएस के साथ जुड़े हुए हैं. यह कहा जा सकता है कि हाल में इस समुदाय पॉलिटिकल पावर नहीं है. ऐसे में मतदान के दिन (30 नवंबर) कांग्रेस रेड्डी समुदाय के बीच इस असंतोष को भुनाने की कोशिश करेगी. हालांकि रेवंत रेड्डी की उम्मीदवारी को खारिज नहीं किया जा सकता है, लेकिन कांग्रेस के सत्ता में आने पर उन्हें पार्टी के अंदरखाने से प्रतिस्पर्धा से जूझना होगा. 
चूंकि, खम्मम जिले के  CLP नेता भट्टी विक्रमार्क एससी समुदाय से आते हैं. अगर कांग्रेस नेतृत्व कोई राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहता है तो वो पार्टी के लिए एक बड़ा चेहरा बन सकते हैं. दिल्ली में राजनीतिक हलकों में विक्रमार्क समर्थक पहले से ही उनके नाम की चर्चा कर रहे हैं.

'नरसिम्हा को प्रशासनिक अनुभव का मिल सकता फायदा'

इसके अलावा, संयुक्त आंध्र प्रदेश में उपमुख्यमंत्री रहे दामोदर राजा नरसिम्हा भी बड़ा दलित चेहरा माने जाते हैं. नरसिम्हा जब डिप्टी सीएम थे, तब किरण कुमार रेड्डी राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर जिम्मेदारी संभाल रहे थे. अगस्त में उन्हें ऐसे समय में सीडब्ल्यूसी में स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाया गया था, जब तेलंगाना के किसी भी बड़े नेता को जगह नहीं मिली थी. कांग्रेस के इस निर्णय ने कई दिग्गजों को भी चौंका दिया था. नरसिम्हा के प्रशासनिक अनुभव को उनके पक्ष में प्लस पॉइंट माना जा रहा है.

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'केसीआर को घेरने के लिए बड़ा दांव खेल सकती कांग्रेस'

इसके अलावा, कुछ ऐसे फैक्ट भी हैं, जो यह समीकरण बनाते देखे जाते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व क्यों रेड्डी समुदाय से अलग दूसरे समाज के नाम पर भी विचार कर सकता है. दरअसल, बीआरएस नेता और सीएम केसीआर ने घोषणा की थी कि वो दलित समुदाय के एक व्यक्ति को तेलंगाना का मुख्यमंत्री बनाएंगे, लेकिन यह वादा पूरी नहीं कर पाए हैं. जिसे लेकर कांग्रेस उन पर तंज कसती रहती है. केसीआर ने 2014 और 2018 के बीच अपने पहले कार्यकाल में सिर्फ एससी विधायकों टी राजैया और कादियाम श्रीहरि को उपमुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया था. ऐसे में कांग्रेस को यह संदेश देने में मदद मिल सकती है कि वो केसीआर की तरह वादाखिलाफी नहीं करती है.

'राहुल गांधी के मुद्दे को आगे बढ़ाने का भी मौका'

दूसरा कारण यह है कि राहुल गांधी हाल ही में जाति जनगणना और पिछड़े समुदायों को सशक्त बनाने पर जोर दे रहे हैं. ऐसे में अगर दलित या अन्य समुदाय को प्रदेश की बागड़ोर सौंपी जाती है तो पार्टी इसे आगामी लोकसभा चुनाव में भुनाने की कोशिश करेगी. हालांकि, अगर केसीआर ने तेलंगाना में जीत की हैट्रिक लगाई तो कांग्रेस के ये सभी भावी प्लान धरे रह जाएंगे.

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'जीत की हैट्रिक की तैयारी में केसीआर'

बताते चलें कि बीआरएस नेता केसीआर इस समय सत्ता में वापसी को लेकर पूरी ताकत लगा रहे हैं. वो अपने मौजूदा विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को कम करने की कोशिश में हैं. यही वजह है कि वो टिकट वितरण में खासी सावधानी बरत रहे हैं. हाल में अधिकांश को फिर से चुनाव लड़ाने का ऐलान किया है. आने वाले दिनों में शीर्ष पद के लिए केसीआर और कई कांग्रेस दावेदारों के बीच चुनाव देखने को मिल सकता है.

'कर्नाटक से अलग हैं तेलंगाना के समीकरण'

इससे पहले कर्नाटक में कांग्रेस आलाकमान को सिर्फ यह सुनिश्चित करना था कि चुनावी अभियान में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार तालमेल बिठाकर काम करें. हर कोई जानता था कि शीर्ष पद उनमें से किसी एक को मिलेगा. जबकि तेलंगाना में कांग्रेस के लिए समस्या थोड़ा बड़ी है. क्योंकि यहां दावेदारों की संख्या ज्यादा हो रही है.
 

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