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निर्वाचन आयोग पर उठीं उंगलियां

कहा जा रहा है कि वरुण गांधी के जहरीले भाषण के मद्देनजर भाजपा को उन्हें चुनाव मैदान से हटाने की सलाह देकर चुनाव आयोग ने अपनी सीमा का अतिक्रमण किया. चुनाव कार्यक्रम । शख्सियत । विश्‍लेषण । अन्‍य वीडियो । चुनाव पर विस्‍तृत कवरेज

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नाम जीवन भर के लिए होता है,'' यह कहा गया है पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी की एक किताब के ब्लर्ब में, जिसमें बच्चों के करीब 20,000 भारतीय नाम दिए गए हैं. लेकिन उनके बेटे वरुण गांधी ने पीलीभीत में एक आमसभा में कथित तौर पर एक वर्ग विशेष के नामों पर नफरत भरी टिप्पणी की, ''इन लोगों के नाम डरावने होते हैं, जैसे करीमुल्ला और मजहरुल्ला'', और यह साबित कर दिया कि नाम जीवन भर के लिए ही नहीं होते बल्कि कानूनी मुश्किलें भी खड़ी कर सकते हैं. वरुण की टिप्पणी को मीडिया में खूब उछाला गया. चुनाव आयोग ने सारी रिपोर्टों को पढ़ा, भाषण की वीडियो सीडी देखी और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इसमें ''बेहद अपमानजनक टिप्पणियां हैं और गंभीर रूप से भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल किया गया है, जो पूरी तरह से अस्वीकार्य है.'' उसने वरुण के भाषणों को ''आदर्श आचार संहिता का गंभीर उल्लंघन माना'' और वरुण तथा भाजपा को इस संदर्भ में फौरन नोटिस भेज दिए.

पहली बार चुनावी मैदान में उतर रहे वरुण से भाजपा ने पहले तो दूरी बना ली और आयोग से कहा कि पार्टी वरुण के बयान से जरा भी इत्तेफाक नहीं रखती और सीडी से भी उसका कोई लेना-देना नहीं है. वरुण का तर्क था कि कथित भाषण 7 और 8 मार्च को दिए गए थे लेकिन विवाद इसके दस दिन बाद उठा, वह भी निजी अनधिकारिक टेप के आधार पर, जिसे संभव है कि किसी राजनीतिक मंशा से तैयार किया गया हो.

वरुण के लिए परिस्थितियां तब तक मुश्किल लग रही थीं जब तक कि चुनाव आयोग ने भाजपा को यह सलाह नहीं दी कि वह उन्हें चुनाव में न उतारव् और कहा कि, ''भाजपा या अन्य किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा वरुण को चुनावी मैदान में उतारना या उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करना वरुण के अक्षम्य कार्य का समर्थन समझ जाएगा.'' कई विशेषज्ञों का मानना है कि आयोग का यह कथन पूरी तरह से कानूनसम्मत नहीं है. ऐसे कोई वैधानिक प्रावधान नहीं हैं जिनके अंतर्गत समुदायों के बीच नफरत फैलाने और फूट डालने की कोशिश करने पर किसी उम्मीदवार को चुनाव के लिए अयोग्य ठहराया जा सके. किसी उम्मीदवार को अयोग्य घोषित करने की अनुमति कानून तभी देता है जब उम्मीदवार को किसी विशेष अपराध का दोषी ठहराया गया हो या उसे दो या अधिक सालों की सजा सुनाई गई हो.

{mospagebreak}सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी कहते हैं, ''आचार संहिता बाध्यकारी नहीं है. इसके अंतर्गत सिर्फ सलाह दी जा सकती है. कानून से इसका अधिक सरोकार नहीं है.'' हिंदुत्व का झंडा फिर से बुलंद होने से खुश भाजपा के लिए चुनाव आयोग की यह गलती कानूनी दांवपेंचों में उलझने का अवसर बन गई है. भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावडेक़र ने कहा, ''वरुण पीलीभीत से हमारे उम्मीदवार हैं, पार्टी के घोषित उम्मीदवार.'' भाजपा को सलाह देते वक्त चुनाव आयोग के भीतर भी कुछ मतभेद थे. आयोग ने अपने आदेश में कहा, ''फिलहाल जो कानून है उसके अंतर्गत अपनी सीमाओं को लेकर चुनाव आयोग सचेत है कि वह प्रतिवादी को तब तक अयोग्य नहीं ठहरा सकता और उसे चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकता जब तक कि अदालत उसे दोषी घोषित नहीं कर देती.''

इस बीच वरुण को हिंदुत्व बिग्रेड की आवाज के रूप में अपनी जगह मिल गई है. सालों तक अदालत में केस चलने के बाद यदि वरुण की उम्मीदवारी समाप्त भी कर दी जाती है तो भी अंततः कानून का मजाक ही बनेगा.

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