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बदल गया है नरेंद्र मोदी के प्रचार का अंदाज

‘देखो-देखो कौन आया, गुजरात का शेर आया.’ चुनाव प्रचार करने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे ही किसी मंच पर चढ़ते हैं तो यही नारा गूंजता है. इसके बाद मोदी अपने 'विक्टरी' संकेत वाली स्टाइल में हाथ हिलाकर दर्शकों का अभिवादन करते हैं और फिर भारत माता के जयकारे से शुरू हो जाती है उनकी दहाड़.

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नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी

‘देखो-देखो कौन आया, गुजरात का शेर आया.’ चुनाव प्रचार करने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे ही किसी मंच पर चढ़ते हैं तो यही नारा गूंजता है. इसके बाद मोदी अपने 'विक्टरी' संकेत वाली स्टाइल में हाथ हिलाकर दर्शकों का अभिवादन करते हैं और फिर भारत माता के जयकारे से शुरू हो जाती है उनकी दहाड़.

पिछले विधानसभा चुनाव की तरह अब मोदी के मुखौटे उनके चुनाव प्रचार में नहीं दिखते. 2007 के चुनाव में उनका यह प्रयोग बेहद सफल रहा था. पांच साल बाद बदली परिस्थितियों के मद्देनजर मोदी के प्रचार का तरीका भी बदल गया है. वह गूगल प्लस और सोशल नेटवर्किंग साइटों का अधिक सहारा ले रहे हैं और नमो टीवी भी चला रहे हैं. इसके जरिए मोदी के भाषणों को गुजरात भर में पहुंचाने का प्रयास हो रहा है.

हालांकि मोदी की रैलियों में कोई कमी नहीं आई है. वह धुआंधार चुनावी रैलियां कर रहे हैं और लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में पहुंच रहे हैं. इतना ही नहीं 2007 की चुनावी रैलियों में वह जहां अपना भाषण 20 मिनट में समेट देते थे, वहीं इस चुनाव की लगभग हर सभा में घंटों भाषण दे रहे हैं. भाषण देने के दौरान वह पहले की ही तरह जनता से सीधा संवाद जरूर करते हैं.

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मंच से भाषण देने के क्रम में मोदी का एक नया स्टाइल देखा जा रहा है. जब जनता का जोश थोड़ा कम होता है तो वह बाएं हाथ से दाहिनी हथेली पर अमिताभ बच्चन की तर्ज पर खुद से एक ताली भी बजाते हैं. बीच-बीच में वह हाथों को सामने की ओर रखकर विभिन्न तरह की भावभंगिमाएं भी करते हैं. ज्ञात हो कि अमिताभ गुजरात के ब्रांड एम्बेसडर भी हैं.

मोदी के चुनावी भाषणों से इस दफा ‘56 इंच का सीना’ और ‘मौत का सौदागर’ जैसा ‘वनलाइनर’ गायब है. इसी की तलाश में वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पर बार-बार हमला बोलते हैं और उन्हें उकसाते दिखते हैं. वह उन्हें दिल्ली की मांद से निकलकर गुजरात के चुनावी मैदान में तैयारियों के साथ उतरने की चुनौती भी देते हैं.

सूरत में ऐसी ही एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए मोदी कहते हैं, ‘मैडम सोनिया, मनमोहन सिंह और युवराज, गुजरात आने के डर से टेंशन में हैं. टेंशन यह है कि कहीं भाषण देते वक्त उनकी जुबां से आड़ा-टेढ़ा शब्द न निकल जाए. इसलिए कांग्रेस के जो नेता भाषण भी दे रहे हैं तो उनके भाषणों की भी 15 बार स्क्रीनिंग हो रही है.’

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भावनगर में वह कांग्रेसी नेताओं की आपसी गुटबाजी पर चुटकी लेते हैं और क्रिकेटिया अंदाज में कहते हैं, ‘क्रिकेट (चुनाव) का मैच हो रहा था. अम्पयार (निर्वाचन आयोग) मैदान में पहुंच चुके थे. भाजपा का कप्तान तो मैदान में आ गया पर कांग्रेस का कोई कप्तान नहीं आया. अम्पायर ने कप्तान के बारे में पूछा तो कांग्रेस के खिलाड़ियों ने कहा कि उनका कप्तान दिल्ली में है. अम्पायर ने कहा कि चलो उपकप्तान को ही भेज दो. इस पर उसके कई खिलाड़ी खुद को उपकप्तान कहते हुए मैदान में आ गए. तो ये कांग्रेस की दशा है.’

मोदी अपने भाषणों में अपनी उपलब्धियां भी गिनाते हैं. जिस क्षेत्र में उनकी रैली होती है उस क्षेत्र में किए गए विकास कार्यो का वह जिक्र करते हैं और चुनाव जीतने के बाद क्या करेंगे, उसके बारे में भी लोगों को विस्तार से समझाते हैं.

कच्छ क्षेत्र में भाजपा से नाराज चल रहे मछुआरों के बड़े वर्ग को साधने के लिए वह समुद्र में औषधि की खेती करने का एक तरीका बताते हैं. वह कहते हैं, ‘हमने इसकी तैयारी पूरी कर ली है. अब मछुआरे छह माह खाली नहीं बैठेंगे. इस दौरान वे समुद्र में औषधि की खेती कर सकेंगे. इससे माताओं को रोजी-रोटी का जरिया मिलेगा.’

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मोदी के एक करीबी सहयोगी के मुताबिक वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन की सफलता के लिए मोदी ने जिस अंतर्राष्ट्रीय निजी पीआर एजेंसी को जिम्मा सौंपा था, वही कम्पनी उनके चुनाव-प्रचार का भी काम देख रही है. उनके अनुसार यह वही कम्पनी है जिसने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के पहले कार्यकाल के चुनाव प्रचार का जिम्मा सम्भाल रखा था.

मोदी के करीबियों की माने तो इस चुनाव में प्रचार के लिए निकलने से पहले वह अपने इष्टदेव की अराधना कर रहे हैं. उन्होंने अपनी पहली चुनावी सभा डाकोर से शुरू की.

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