Badun Loksabha Seat Candidate: आम चुनाव को लोकतंत्र का पर्व माना जाता है. लोग इस पर्व को मनाने के लिए अलग-अलग तरीके से प्रयास करते हैं. आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बता रहे हैं, जो इस पर्व को मनाने के लिए बार-बार चुनाव में उतर जाते हैं. चुनाव लड़ना इनके जीवन का एक बड़ा उद्देश्य है.
पैरों में चप्पल, सिर पर गांधी टोपी और सफेद धोती-कुर्ता पहने 70 वर्षीय हरि सिंह बदायूं कलेक्ट्रेट में नामांकन कराने आए हुए थे. हरि सिंह जी पेशे से सरकारी कर्मचारी थे, लेकिन सामाजिक बदलाव लाना चाहते थे, जिसकी वजह से राजनीति में उनका मन अधिक लगता था. महात्मा गांधी को आदर्श मानकर राजनीति में आए और उनके आदर्शो पर चलने वाले हरि सिंह आठ बार विधानसभा चुनाव और एक बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. पहला चुनाव 1989 में लोकदल (व) से लड़ा और तब से अभी तक लगातार चुनाव लड़ते आ रहे हैं.
हरि सिंह चुनाव को पर्व की तरह मानते हैं. अपने जीवन का अंतिम दौर मानते हुए हरि सिंह ने इस चुनाव में अपना नामांकन दाखिल किया था, लेकिन उनका नामांकन जांच में सही नहीं पाया गया, जिसकी वजह से पर्चा रद्द कर दिया गया.
हरि सिंह ने आजतक से बात करते हुए बताया कि पहले जनता कैंडिडेट देखती थी लेकिन अब ईमानदार कैंडिडेट नही बस पैसा होना चाहिए. उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश पढ़िए-
सवाल- आपने पहला चुनाव अपना कब लड़ा था?
जवाब- 1989 में लोकदल (व) से चुनाव लड़ा था.
सवाल- आप बताएंगे अभी तक आप कितने चुनाव लड़ चुके हैं?
जवाब- हां, चार बार सहसवान विधानसभा से लड़ चुका हूं, चार बार गुन्नौर विधानसभा से लड़ चुका हूं, प्रधान भी रहा हूं, मैं जिला पंचायत सदस्य भी रहा हूं. शिक्षा विभाग में भी रहा हूं. चुनाव लड़ना ही हमारा तो जीवन है. बहुत संघर्ष किया है और अभी तक करते आ रहे हैं.
सवाल- चुनाव लड़ने के लिए आप आर्थिक रूप से किस तरी के से अपना फंड मैनेज करते हैं? पैसों की व्यवस्था कैसे करते हैं?
जवाब- हां, सम्पत्ति थी हमारे पास, जमीन भी थी और नौकरी भी थी. इंटर कॉलेज में नौकरी करते थे. वैसे भी खेती से आमदनी होती थी हमारी और फिर पीछे से दो चार बीघा जमीन भी बिकी.
सवाल- कितनी जमीन आप बेच चुके हो चुनाव के लिए?
जवाब- 4-6 बीघा बिक गई है बाकी है अभी. 50 -60 बीघा जमीन थी जिसमें से 30-40 बीघा जमीन अब भी है.
सवाल- पहले के और अब के चुनाव में कितना फर्क देखते हैं? क्या फर्क आ चुका है?
जवाब- पहले और अब के चुनाव में जमीन-आसमान का फर्क है. पहले पैदल भी लड़ जाते थे लोग, साइकिल से भी लड़ जाते थे और उन्हीं को लोग वोट देते थे. ट्रैक्टर से गस्त होती थी. अब गाड़ियों से होने लगी. अब गाड़ियों के बजाय लोग दो-दो, चार-चार गाड़ियों से इलेक्शन हो जाता था और अब 50-100 गाड़ियों से होता. अब इलेक्शन बहुत महंगा है. पहले इलेक्शन महंगा नहीं था और नेताओं का लड़ने का भी तरीका अपना अलग था. अब चाहे भ्रष्टाचारी हो, चाहे कुछ हो, दलाल हो, पैसा हो उसके पास बस. पहले ईमानदार लोगों को वोट देती थी जनता, नेता को उसके हाव भाव से पहचानती थी. अब तो पार्टी को वोट देती है. रैली में ले जा रहे लोगों को खाने को मिलता है पीने को मिलता है तो वोट देती है. हम जैसे लोगों को वोट कम मिलता है और रहा सवाल हमारा कि आप क्यों लड़ते हो तो हमारा तो उद्देश्य है. हमारा जीवन ही संघर्ष है, चुनाव ही हमारा जीवन है. लास्ट चुनाव है हमारा. ये हमारा आखिरी पर्व है, जिससे चुनाव लड़ना जरूरी है.
सवाल- इस बार के चुनाव में आप खुद ही कह रहे हैं कि चुनाव बड़ा महंगा हो गया है तो आप पैसों का इंतजाम कैसे करेंगे?
जवाब- पैसों की कोई खास जरूरत नहीं है. इंटरनेट के द्वारा करो, सभाओं के द्वारा करो और गाड़ियों से करो और तो हर तरह से अगर सबसे बड़ा तरीका तो ये नेट का सिस्टम हो गया. कही मत जाओ, परमिशन लो सभा करो और नेट पर दिखा दो. तो हम नेट से भी करेंगे, सवारी से भी करेंगे, घूमेंगे भी जैसे संभव होगा उस तरह से करेंगे.
सवाल- कितने पैसे का इंतजाम कर लिया है इस बार चुनाव के लिए?
जवाब- हमारे पास थोड़ा बहुत होता है, बाकी चंदा वंदा मिल जाता है. 4-6 लाख है हमारे पास, बाकी का पैसा खेती का भी है, पेंशन का भी है और पब्लिक हमें चंदा देती है लड़ाने के लिए.
सवाल- कितना वोट आप ले लेते हैं?
जवाब- वोट तो याद नहीं, हमें तो यही याद नहीं रहता. इतने चुनाव लड़ लिए तो क्वांटिटी भी याद नहीं रहती. चुनाव लड़ना ही हमारा ध्येय है. चुनाव लड़ना हमारी जिंदगी है, जब हम अकेले ही चले हैं तो अकेले ही रहेंगे.
सवाल- परिवार में कौन-कौन है अभी आपके?
जवाब- परिवार में बच्चे हैं, हमारे लड़के हैं. चार लड़के है और दो लड़कियां हैं. पत्नी नहीं है हमारी. परिवार सही है हमारा. पढ़ा लिखा परिवार है. सब बच्चे कमा खा रहे हैं. हमसे कोई कुछ नहीं कहता है. हमसे कह देते हैं पापा का है सब हमारा नहीं है. हमें कोई रोकने वाला नहीं है. चुनाव का खर्च है तो कुछ पेंशन से इकट्ठा कर लेते हैं. कुछ जमीन से हो जाता है. कुछ जनता भी हमें मदद करती है. कुछ नहीं होता है तो पैदल चलते हैं. हम तो पैदल वाले आदमी हैं. हम तो हर तरह से चुनाव लड़ने वाले आदमी हैं. चुनाव से पीछे नहीं हटते हैं.