scorecardresearch
 

जब आडवाणी से बोले थे वाजपेयी, गांधीनगर सीट आपके लिए माला सिन्हा के गाल की तरह है

30 साल से गांधीनगर बीजेपी का गढ़ रहा, लेकिन इस अभेद्य बनाने में अमित शाह की बड़ी भूमिका है. 23 साल से वो सीधे तौर पर यहां के इंचार्ज रहे. कहते हैं कि गांधीनगर से कोई भी जीते, असली विजेता तो अमित शाह ही थे. जब आडवाणी यहां से लड़ने आए तो अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि आपके लिए ये सीट माला सिन्हा के गाल की तरह है.

Advertisement
X
गांधीनगर सीट से अटल और आडवाणी सांसद रह चुके हैं.
गांधीनगर सीट से अटल और आडवाणी सांसद रह चुके हैं.

गुजरात की गांधीनगर से लालकृष्ण आडवाणी गए तो अमित शाह आए. ये वही सीट है, जिससे आडवाणी जीत का सिक्सर जड़ चुके हैं, अब आडवाणी का बैट अमित शाह थाम चुके हैं. 30 साल से गांधीनगर बीजेपी का गढ़ रहा, लेकिन इसे अभेद्य बनाने में अमित शाह की बड़ी भूमिका है. 23 साल से वो सीधे तौर पर यहां के इंचार्ज रहे. जब आडवाणी यहां से लड़ने आए तो अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि आपके लिए ये सीट माला सिन्हा के गाल की तरह है.

गुजरात की राजधानी गांधीनगर बीजेपी का अभेद्य किला है. 30 सालों से यहां कमल खिलता रहा. ये सीट बीजेपी के दिग्गजों को लोकसभा भेजती रही है. 1989 में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला चुने गए तो 1991 में लालकृष्ण आडवाणी. 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी यहां से चुनकर गए थे. इसके बाद 1998 से लगातार आडवाणी ही लड़ते और जीतते रहे. अबकी बार अमित शाह मैदान में हैं.

Advertisement

amit-shah-2_033019095628.jpgहर जीत के असली हीरो अमित शाह

1996 में गांधीनगर सीट के संयोजक थे अमित शाह

ये सीट यूं ही बीजेपी का किला नहीं बना. 23 साल से तो खुद अमित शाह इसकी किलेबंदी करते रहे हैं. 1996 में शाह को गांधीनगर सीट का संयोजक बनाया गया था. तब से उन्होंने उन्होंने गांधीनगर को सींच कर कमल खिलाते रहे. कहते हैं कि गांधीनगर से कोई भी जीते, असली विजेता तो अमित शाह ही थे. उन्होंने चाहे वाजपेयी हो या आडवाणी जीत थाली में सजाकर दी और इस बार शाह खुद इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और जिताना भी खुद को है.

चुनाव प्रबंधन में अमित शाह का कोई मुकाबला नहीं

गांधीनगर से शाह को उतार कर बीजेपी एक तीर से दो-दो शिकार करना चाह रही है. एक तो आडवाणी जैसे दिग्गज की सीट फिर से जीतना और दूसरा गुजरात में कमल के पक्ष में लहर पैदा करना ताकि मिशन-26 को पूरा किया जा सके. चुनाव प्रबंधन में अमित शाह का कोई मुकाबला नहीं है. 2014 में गुजरात से दिल्ली रुख करने के बाद से शाह ने बता दिया कि इलेक्शन मैनेजमेंट क्या होता है. ब्रांड मोदी को आगे कर अमित शाह ने ऐसा धूम मचाया कि विरोधी चारों खाने चित हो गए. 2014 में यूपी की बागडोर थाम कर शाह ने बीजेपी को 80 में से 73 सीटें दिला दी. फिर तो मोदी ने भी शाह को मैन ऑफ द मैच बता दिया.

Advertisement

जीत के चाणक्य नीति का भरपूर इस्तेमाल

फिर तो अमित शाह का ग्राफ बढ़ता चला गया. मैन ऑफ द मैच से वो टीम बीजेपी के कैप्टन बन गए और फिर चुनाव दर चुनाव झंडे गाड़ने लगे. शाह के लिए चुनाव का मतलब जीत की गारंटी रही, फिर चाहे जो भी करना पड़े. उन्होंने जीत के चाणक्य नीति का भरपूर इस्तेमाल किया, फिर चाहे साम, दाम, दंड, भेद क्यों ना अपनाना पड़ा. उन्होंने उन राज्यों में भी पार्टी खड़ी की, जहां बीजेपी का ना तो संगठन था और ना ही कार्यकर्ता. चुनावी जीत के लिए उन्होंने हर फॉर्मूले को अपनाया, फिर चाहे वो जातीय समीकरण हो या फिर हिंदुत्व कार्ड. उन्होंने नारा दिया मेरा बूथ सबसे मजबूत.

विरोधी खेमे में माथापच्ची जारी

कहते हैं बीजेपी के लिए गांधीनगर सेफ सीट रही है. जब आडवाणी यहां से लड़ने आए तो अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि आपके लिए ये सीट माला सिन्हा के गाल की तरह है. फिलहाल विरोधी खेमे में अमित शाह के खिलाफ किसे उतारा जाए इसे लेकर माथापच्ची जारी है. एनसीपी एक बार फिर वाघेला पर दांव लगाना चाहती है. बीजेपी के पुराने दिग्गज वाघेला 1989 में यहां से सांसद थे. आडवाणी के लिए उन्होंने इस महफूज सीट को छोड़ दिया था.

Advertisement

चुनाव की हर ख़बर मिलेगी सीधे आपके इनबॉक्स में. आम चुनाव की ताज़ा खबरों से अपडेट रहने के लिए सब्सक्राइब करें आजतक का इलेक्शन स्पेशल न्यूज़लेटर

Advertisement
Advertisement