उत्तर प्रदेश की तरह बिहार की सियासत में भी दलित समाज की भूमिका निर्णायक मानी जाती है, लेकिन दोनों राज्यों में दलितों का सियासी मिजाज एक जैसा नहीं है. कांशीराम ने उत्तर प्रदेश के दलितों में सियासी चेतना जगाकर बसपा को चार बार सत्ता तक पहुंचाया, लेकिन यूपी जैसा करिश्मा बिहार में बसपा नहीं दिखा सकी. बिहार के सियासी मैदान में बसपा एक बार फिर से किस्मत आजमा रही है, देखना है कि इस बार बिहार में मायावती क्या सियासी करिश्मा दिखाती हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव में पहले चरण के लिए 121 सीटों पर जिस दिन वोटिंग हो रही है, उसी दिन बसपा प्रमुख मायावती बिहार में चुनावी हुंकार भरने के लिए उतर रही हैं. मायावती गुरुवार को कैमूर जिले के भभुआ क्षेत्र में जनसभा संबोधित करेंगी, जहां पर दूसरे चरण में मतदान है। इस बार बसपा की नजर यूपी से सटे हुए बिहार की विधानसभा सीटों पर है.
बिहार में मायावती भरेंगी चुनावी हुंकार
बिहार में पहले चरण के लिए वोटिंग हो रही है, जबकि दूसरे चरण के लिए 11 नवंबर को वोट पड़ेंगे. ऐसे में मायावती अपनी एक जनसभा से पूरे बिहार चुनाव को साधने की कोशिश करेंगी. कैमूर के भभुआ में हवाई अड्डे के मैदान पर मायावती की होने वाली पहली जनसभा से बिहार की सियासी लड़ाई को रोचक बनाने की संभावना है. ऐसे में मायावती अपनी सभा के जरिए सियासी नैरेटिव सेट करने की कवायद भी करेंगी.
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मायावती रामगढ़ और कैमूर विधानसभा सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में मतदाताओं को संबोधित करेंगी. मायावती यहां रामगढ़ से सतीश उर्फ पिंटू यादव और कैमूर (भभुआ) से विकास सिंह उर्फ लल्लू पटेल के समर्थन में रैली करेंगी. इस तरह से मायावती की रैली कैमूर जिले की चारों सीटें भभुआ, रामगढ़, मोहनियां और चैनपुर पर बसपा की पकड़ मजबूत करने के इरादे से रखी गई है.
यूपी से सटे बिहार की सीटों पर फोकस
बिहार में बहुजन समाज पार्टी का खास फोकस यूपी सीमा से सटे जिलों में है. पार्टी ने अपने पूर्वांचल के तमाम नेताओं को बिहार के चुनावी मैदान में लगा दिया है. बसपा की कोशिश है कि यूपी से सटी हुई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले बनाए ताकि दलित वोट बैंक के एकजुट होने पर उसके प्रत्याशी की राह आसान हो सके.
बसपा की नजर कैमूर की चारों सीटों भभुआ, मोहनियां, रामगढ़ और चैनपुर सीट पर है. इसीलिए मायावती की रैली भी कैमूर जिले में रखी गई है. बसपा की कोशिश दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को लामबंद करने की है. मायावती की मौजूदगी से कैमूर में सियासी समीकरण बदलने की उम्मीद जताई जा रही है.
मायावती क्या टर्निंग पॉइंट बनेंगी?
बसपा ने कैमूर में भभुआ से विकास उर्फ लल्लू पटेल, मोहनियां से ओम प्रकाश दीवाना, रामगढ़ से सतीश उर्फ पिंटू यादव और चैनपुर से धीरज उर्फ भान सिंह को मैदान में उतारा है. पार्टी ने सबसे पहले इन चारों सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर अपनी ताकत दिखाई। 2005 में भभुआ और 2020 में चैनपुर सीट में जीत दर्ज कर चुकी बसपा की जड़ें इस इलाके में गहरी हैं। मायावती की सभा से पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश और मतदाताओं में उत्साह बढ़ने की उम्मीद है.
मायावती का यह दौरा बसपा की रणनीति का टर्निंग पॉइंट हो सकता है. पार्टी ने आकाश आनंद के नेतृत्व में पहले ही 'सर्वजन हिताय यात्रा' शुरू कर दलित-ओबीसी-मुस्लिम गठजोड़ को मजबूत करने की कोशिश की है. क्या मायावती की हुंकार कैमूर में बसपा को 2005 और 2020 जैसी कामयाबी दिलाएगी?
यूपी से सटी बिहार की 36 सीटें हैं?
बिहार की तीन दर्जन से ज्यादा विधानसभा सीटें उत्तर प्रदेश के बॉर्डर से सटी हुई हैं. यूपी के महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बलिया, गाजीपुर, चंदौली और सोनभद्र जिले की सीमा बिहार के आठ जिलों से लगती है। बिहार के सारण, सीवान, गोपालगंज, भोजपुर, पश्चिमी चंपारण, रोहतास, बक्सर और कैमूर और रोहतास जिले की सीटें यूपी से सटी हुई हैं.
यूपी के पूर्वांचल के और बिहार के पश्चिमी इलाकों की बोली भोजपुरी, रहन-सहन और ताना-बाना भी लगभग एक जैसा है. इस इलाके का जातीय और सियासी समीकरण भी काफी मिलते-जुलते हैं. बसपा का सियासी आधार भी इसीलिए इस इलाके में माना जाता है बसपा को बिहार में जिन इलाकों में जीत मिली है, वो यूपी से सटी हुई सीटें रही हैं, क्योंकि यहां पर दलित वोटर अच्छी खासी संख्या में है.
बिहार की इन सीटों पर बसपा की नजर
यूपी के गोपालगंज, कैमूर, चंपारण, सिवान और बक्सर के जिले की सीटों पर बसपा पूरे दमखम के साथ लड़ रही है. यही वजह है कि बिहार के इन जिलों की 15 से अधिक सीटों पर बसपा पूरी ताकत लगा रही है. दलितों को एकजुट करके कुछ सीटों पर कब्जा करने की रणनीति पर काम कर रही है. चैनपुर सीट पर बसपा दो बार जीत चुकी है। 2020 में बसपा ने यह सीट जीती थी, लेकिन जमा खान जेडीयू में शामिल हो गए.
बक्सर की रामगढ़ सीट पर बसपा से सतीश कुमार यादव मैदान में हैं, जहां उपचुनाव में काफी अच्छी टक्कर दी थी. इस बार पार्टी जीत की उम्मीद लगाए है. ऐसे ही बक्सर सीट 2005 में बसपा जीती थी, यहां से अभिमन्यू कुशवाहा मैदान में हैं. मोहनिया सीट पर बसपा ने ओम प्रकाश दीवाना को उतारा है, यहां पर आरजेडी का प्रत्याशी पर्चा खारिज हो जाने के बाद मुकाबला रोचक हो गया है.
बिहार में बसपा क्या सियासी खेल करेगी
सासाराम की भगवती सीट पर बसपा ने विकास सिंह मैदान में हैं। राजपुर सीट से लालजी राम हैं तो बेलसंड सीट और शिवहर सीट पर नजर है. यूपी सीमा से सटे इन जिलों में पिछले चुनाव में एनडीए को सफलता नहीं मिली थी. इस बार चुनाव में बसपा के मजबूती से लड़ रही है.
बिहार में दलित वोट बैंक महागठबंधन से यदि दूरी बनाता है तो एनडीए को फायदा मिल सकता है. बसपा जिस तरह बिहार में प्रत्याशियों के चयन में यूपी में हिट रहे अपने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले का इस्तेमाल किया है, उससे साफ है कि बिहार के नतीजों का प्रभाव यूपी की सियासत पर भी पड़ेगा.