आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए निर्वाचन आयोग ने वोटर लिस्ट की निष्पक्षता और शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए देश के छह राज्यों में विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा की है. इसकी शुरुआत इस वर्ष अक्टूबर-नवंबर में चुनाव की ओर बढ़ रहे बिहार से की जा रही है. आयोग का मुख्य उद्देश्य फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मतदाता सूची में शामिल हुए अवैध विदेशी प्रवासियों को बाहर करना है.
आयोग के अनुसार यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब कई राज्यों में बांग्लादेश और म्यांमार से आए अवैध प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है. यही वजह है कि आयोग मतदाता सूची की अखंडता बनाए रखने के लिए सख्त कदम उठा रहा है. इसके लिए वह संविधान के अनुच्छेद 326 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 16 के प्रावधानों का पूरी तरह पालन करेगा.
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2003 में आखिरी बार किया गया था वोटर लिस्ट का करेक्शन
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बिहार में पिछली बार विशेष गहन पुनरीक्षण 2003 में किया गया था, लेकिन तब इतनी सख्ती नहीं बरती गई थी. उस समय राजनीतिक संरक्षण के चलते बड़ी संख्या में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों ने फर्जी दस्तावेजों के सहारे मतदाता सूची में अपने नाम दर्ज करवा लिए थे.
इस बार आयोग ने प्रक्रिया को पारदर्शी और सख्त बनाने के लिए एक नया घोषणा पत्र पेश किया है. इसके तहत जो व्यक्ति मतदाता के रूप में पंजीकरण करवाना चाहता है, उसे यह साबित करना होगा कि वह या उसके माता-पिता 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में जन्मे थे. यदि जन्म तिथि 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच की है, तो माता-पिता के जन्म के प्रमाण भी प्रस्तुत करने होंगे.
असम, केरल, पुदुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल भी शुरू होगी प्रक्रिया
बूथ स्तर के अधिकारी इस पुनरीक्षण के दौरान घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन करेंगे. आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि बिहार के बाद असम, केरल, पुदुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी यह प्रक्रिया इस साल के अंत तक शुरू की जाएगी, क्योंकि इन राज्यों के विधानसभा कार्यकाल 2026 में समाप्त हो रहे हैं.
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हालांकि, विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाए हैं कि यह कदम भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए उठाया गया है और मतदाता आंकड़ों में हेरफेर की आशंका है, लेकिन आयोग ने इस प्रक्रिया को निष्पक्ष और संवैधानिक दायित्व के तहत बताया है.