न्यूयॉर्क में इस वक्त प्लाज्मा थ्योरी पर क्लीनिकल ट्रायल चल रहे हैं. आजतक से खास बातचीत में एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया ने बताया कि प्लाज्मा थ्योरी पुरानी ट्रीटमेंट थेरेपी है. इसे पहले भी कई आउटब्रेक यानी महामारियों जैसे इबोला और पोलियाे में भी इस्तेमाल किया गया.
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कैसे कोरोना के इलाज में है कारगर
डॉ गुलेरिया बताते हैं कि अगर किसी एक व्यक्ति को कोरोना वायरस होता है तो 80 से 90 पर्सेंट मरीजों में ये ठीक हो जाएगा. अब अगर व्यक्ति कोरोना से बिल्कुल ठीक हो जाता है. उसकी दो तीन ब्लड रिपोर्ट नेगेटिव आ जाती हैं तो वो व्यक्ति इलाज के ब्लड डोनेट करे तो इससे आईसीयू में भर्ती गंभीर रोगी की जान बचाई जा सकती है.
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कैसे होता है इलाज
जिस व्यक्ति को एक बार कोरोना हो जाता है इलाज के बाद उसके रक्त में एंटीबॉडीज आ जाएगी. डॉ गुलेरिया ने बताया कि अब उसके ब्लड से प्लाज्मा निकालकर वो कोरोना पेशेंट को दिया जाए तो वो उसे ठीक होने में हेल्प करेगा. इस तरह ठीक हो गए पेशेंट से बीमार को देकर उसे ठीक कर सकते हैं.
यूएस में भी हो रहे ट्रायल
डॉ गुलेरिया ने कहा कि ये ट्रीटमेंट स्ट्रेटजी अमेरिका के दो सेंटर में ट्राई की गई, इंडिया में भी इस पर काम हो रहा है. इसमें सबसे जरूरी है कि ठीक हो गए लोगों को आगे आना चाहिए.
ये होगी पूरी प्रक्रिया
अगर कोई स्वेच्छा से रक्तदान के लिए आता है तो सबसे पहले उनका टेस्ट होगा. ये देखा जाएगा कि उनके खून में किसी प्रकार का संक्रमण तो नहीं है. मसलन शुगर, एचआइवी या हेपेटाइटिस तो नहीं है. अगर ब्लड ठीक पाया गया तो उसका प्लाज्मा निकालकर आईसीयू के पेशेंट को दिया जाए तो वो ठीक हो सकता है.