वर्ल्ड बैंक ने जून के अंत में एक रिपोर्ट जारी की है जिसे स्टुडेंट्स की लर्निंग के बारे में साउथ एशिया के स्कूलों के प्रदर्शन का विश्लेषण करने वाला पहला व्यापक अध्ययन बताया जा रहा है. स्टडी से पता चलता है कि इस क्षेत्र में एजुकेशन की क्वालिटी काफी खराब है.
वर्ल्ड बैंक में लीड एजुकेशन स्पेशलिस्ट और इस रिपोर्ट के लेखकों में से एक हलील दुंदार कहते हैं, ‘‘दक्षिण एशिया में एजुकेशन की खराब क्वालिटी इस क्षेत्र के भविष्य में आर्थिक संपन्नता के रास्ते में बड़ी बाधा है. साउथ एशिया में एजुकेशन की क्वालिटी को बढ़ाना तात्कालिक प्राथमिकता है और इससे क्षेत्र के इकोनॉमिक लैंडस्केप में बदलाव आ सकता है.’’
रिपोर्ट में बताया गया है कि एजुकेशन की खराब क्वालिटी की वजह से स्कूलों में जो कुछ पढ़ाया जाता है, उससे कामकाज के लिए जरूरी कई महत्वपूर्ण स्किल नहीं मिल पाते और स्किल की इस कमी की वजह से निजी क्षेत्र का निवेश भी बाधित हो रहा है. आठ से 14 वर्ष के करीब 1.3 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जाते और बड़ी संख्या ऐसे स्टुडेंट्स की भी है जो बहुत कम सीख पा रहे हैं. यही नहीं, प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने वाले एक-तिहाई स्टुडेंट्स में बेसिक न्यूमरेसी और लिटरेसी स्किल का अभाव पाया गया है.
ग्रामीण स्कूलों में बहुत से स्टुडेंट्स को तो ऐसे टीचर पढ़ाते हैं जिनको इन स्टुडेंट्स से नाममात्र ही ज्यादा जानकारी होती है. दक्षिण एशिया के एजुकेशन सिस्टम को बच्चों की उस भारी भीड़ का सामना करना है जो स्कूल जाने वाली पहली पीढ़ी के लोग हैं. साउथ एशिया के बच्चों को जो कुछ पढ़ाया जाता है उनमें ज्यादातर ‘‘प्रोसीजरल’’ या रट्टामार होती है. मेजरमेंट, प्रॉब्लम सॉल्व करने, मीनिंगफुल और ग्रामैटिकली करेक्ट सेंटेंस लिखने जैसी प्रैक्टिकल कंपीटेंसी में स्टुडेंट की तैयारी कमजोर होती है.
वर्ल्ड बैंक के दक्षिण एशिया क्षेत्र के वाइस प्रेसिडेंट फिलिप ली होरो ने कहा, ‘‘स्कूल में सिर्फ टाइम बिताना काफी नहीं है. स्किल भी अच्छे होने चाहिए जिसके लिए एजुकेशन क्वालिटी में सुधार करना होगा. इससे इस क्षेत्र के देशों को अपने निवेश पर पूरे प्रत्याशित रिटर्न हासिल करने में मदद मिलेगी और उत्पादकता तथा आर्थिक तरक्की में फायदे हासिल होंगे.’’
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि साउथ एशिया की कई सरकारों-जैसे अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका-ने मिलेनियम डेवलपमेंट गोल को हासिल करने के लिए एजुकेशन में भारी निवेश किया है. इसके तहत 2015 तक दुनिया के सभी बच्चों को यूनिवर्सल प्राइमरी एजुकेशन देने का लक्ष्य है. यह भी गौर किया गया कि नेट एनरालॅमेंट रेट 2000 के 75 फीसदी से बढ़कर 2010 में 89 फीसदी तक पहुंच गया है.
हालांकि विभिन्न देशों में और खुद किसी देश के भीतर विभिन्न सामाजिक-आर्थिक और डेमोग्राफिक समूहों में स्कूलों तक पहुंच के मामले में अंतर देखा गया है. श्रीलंका जो इस मामले में ‘‘साफ तौर पर अलग’’ है, दशकों पहले ही करीब-करीब यूनिवर्सल प्राइमरी एजुकेशन का लक्ष्य हासिल कर चुका है, अफगानिस्तान और पाकिस्तान अब भी साउथ एशिया के दूसरे देशों से काफी पीछे हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि साउथ एशिया की एजुकेशन की चुनौतियों से निबटने के लिए बहुपक्षीय रणनीति अपनानी होगी. सबको एजुकेशन सुनिश्चित करने के लिए इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि टीचिंग क्वालिटी सुधारने के लिए तत्काल हस्तक्षेप किया जाए. इसमें यह भी सुझाव दिया गया है कि उच्च और साफ मानकों को लागू किया जाए, अकसर एबसेंट रहने वाले बच्चों को इससे रोका जाए और बिना योग्यता के प्रमोशन पर रोक लगाई जाए.
रिपोर्ट में एजुकेशन से बाहर भी कई तरह की पहल करने को प्रोत्साहित किया गया है. रिपोर्ट में यह सुझव दिया गया है कि टीचर्स की क्वालिटी को बढ़ाने के लिए फाइनेंशियल इन्सेन्टिव का इस्तेमाल किया जाए और टीचर्स के साथ ही बच्चों को भी संसाधन उपलब्ध कराए जाएं.