प्रख्यात इतिहासकार और पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित रोमिला थापर को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रशासन ने सीवी जमा करने को कहा है. ताकि यह विचार किया जा सके कि क्या वह जेएनयू में एमेरिटा प्रोफेसर के रूप में जारी रहेंगी या नहीं.
जेएनयू के रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार ने पिछले महीने रोमिला थापर को पत्र लिखकर उनसे सीवी जमा करने को कहा था. पत्र में लिखा था कि विश्वविद्यालय एक समिति का गठन करेगी जो थापर के कामों का आंकलन करेगी. जिसके बाद फैसला लिया जाएगा कि रोमिला प्रोफेसर एमेरिटा के तौर पर जारी रहेंगी या नहीं.आपको बता दें, रोमिला थापर केंद्र सरकार की नीतियों की घोर आलोचक रहीं हैं.
वहीं जेएनयू के सीनियर फैकल्टी ने इस पर हैरानी जताई है. क्योंकि एमेरिटा प्रोफेसरों को कभी भी सीवी जमा करने के लिए नहीं कहा जाता है. दो फैकल्टी कहना है कि एक बार चुने जाने के बाद इस पद पर शैक्षिक जीवन अकादमिक पद जारी रहता है.
जेएनयू के एक सीनियर फैकल्टी का कहना है कि ' ये पूरे तरह से एक राजनीति से प्रेरित कदम है.' प्रोफेसर रोमिला थापर शिक्षा के निजीकरण, संस्थानों की स्वायत्तता खत्म करना और जेएनयू समेत कई संस्थानों द्वारा मतभेद की आवाज को कुचलने की कोशिश समेत सभी नीतियों की आलोचक रही हैं.'
आपको बता दें, इस पद के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्याति के केवल चुनिंदा शिक्षाविदों को ही पद के लिए चुना जाता है. जेएनयू में जिस सेंटर से एक प्रोफेसर रिटायर होता है वह एमेरिटस प्रोफेसरों का नाम प्रस्ताव में रखता है. इसके बाद संबंधित बोर्ड ऑफ स्टडीज और विश्विद्यालय के अकादमिक परिषद और कार्यकारी परिषद मंजूरी देते हैं.
इस पद के लिए शैक्षिक को किसी भी तरह का कोई वित्त लाभ नहीं मिलता है. उन्हें सेंटर में सिर्फ एक कमरा दिया जाता है जहां वह अपने अकादमिक कार्यों को कर सके. वह कभी-कभा लेक्चर देते हैं और रिसर्च विद्यार्थियों को सुपरवाइज करते हैं. आपको बता दें, लगभग छह दशकों तक एक शिक्षक और शोधकर्ता रही हैं. उन्हें प्रारंभिक भारतीय इतिहास में विशेषज्ञता प्राप्त है. 1970 से 1991 तक जेएनयू में प्रोफेसर थीं और 1993 में उन्हें प्रोफेसर एमेरिटा चुना गया था.
पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद, रोमिला थापर ने लंदन विश्वविद्यालय के 'स्कूल ऑफ ओरिएण्टल एंड अफ्रीकन स्टडीज' से ए. एल. बाशम के मार्गदर्शन में 1958 में डॉक्टर की उपाधि ली थी.
सम्मान
थापर कॉर्नेल विश्वविद्यालय, पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय और पेरिस में कॉलेज डी फ्रांस में अतिथि प्रोफेसर हैं. वह 1983 में भारतीय इतिहास कांग्रेस की जनरल प्रेसिडेंट और 1999 में ब्रिटिश अकादमी की कोरेस्पोंडिंग फेलो चुनी गई थीं.