संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को टेक्निकल प्रश्नपत्रों का सटीक हिंदी अनुवाद करने में अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है. खासकर इंजीनियरिंग और मेडिकल साइंस जैसे तकनीकी पत्रों में ज्यादा मुश्किल आ रही है. सरकार ने बुधवार को एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए ये बात कही.
बता दें कि आयोग ने 18 जनवरी, 1968 को आधिकारिक भाषाओं पर संसदीय प्रस्ताव को लागू करने के तौर-तरीकों की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय स्थायी समिति का गठन किया था. समिति ने साल 2012 में अपनी रिपोर्ट दी थी जिसे यूपीएससी द्वारा स्वीकार किया गया था.
समिति ने प्रश्नपत्रों के सटीक हिंदी अनुवाद करने में आने वाली व्यावहारिक और ऑपरेशनल कठिनाइयों और कुछ बाधाओं को रेखांकित किया. विशेष रूप से तकनीकी पत्रों जैसे (इंजीनियरिंग, चिकित्सा विज्ञान आदि) में इसका उल्लेख किया. कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में ये बात रखी.
सरकार से यहां पूछा गया था कि क्या भारतीय वन सेवा, भारतीय आर्थिक सेवा, भारतीय सांख्यिकीय सेवा, भूवैज्ञानिक और इंजीनियरिंग सेवा के लिए आयोजित प्रतियोगी परीक्षाएं उनके तकनीकी स्वभाव के कारण हिंदी माध्यम में नहीं लिखी जा सकती हैं. यदि हां, तो क्या सरकार ने कभी हिंदी का ऐसी तकनीकी शिक्षा से संबंधित प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक माध्यम के रूप में चयन किया है.
मंत्री ने जवाब में कहा कि यूपीएससी और इन सेवाओं के संबंधित कैडर को नियंत्रित करने वाले अधिकारियों ने मैटर सीज किया है. आयोग भारतीय वन सेवा परीक्षा, भारतीय आर्थिक सेवा, भारतीय सांख्यिकी सेवा परीक्षा (क्लब्ड एग्जामिनेशन), संयुक्त भू-वैज्ञानिक और भूविज्ञानी परीक्षा और इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा आयोजित करता है. इसके अनुसार परीक्षाओं के नियमों को भारत सरकार के नोडल विभाग या मंत्रालय द्वारा निर्धारित और अधिसूचित किया जाता है.