पिछले दशक में इंटरनेट, मोबाइल और क्लाउड टेक्नोलॉजी में तेज विकास से आदमी की जिंदगी का कोई पहलू अछूता नहीं रह गया है. ई-लर्निंग कुछ समय से अपनी जगह बनाने लगा है और एजुकेशन सेक्टर में जिस तेजी इसकी लोकप्रियता बढ़ी है, उतनी तेजी से ही इसकी क्षमताएं भी बढ़ रही हैं.
आज यह जरूरी हो गया है कि ट्रेनिंग के लर्निंग नतीजों की गहरी समीक्षा की जाए और उसके नतीजों के अनुरूप बदलाव किए जाएं. संस्थाओं को अब जनरल नॉलेज का अंतहीन भंडार बनाने की जरूरत नहीं है, इसके बदले ज्यादा से ज्यादा स्किल हासिल करने पर जोर है जिससे इंस्टीट्यूट्स की बचत भी होती है और कुशलता भी बढ़ती है. आइटीएम में हमने ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म विकसित किया है, जो डिजिटल लर्निंग, सोशल कोलैबोरेशन और छात्रों के बनाए कंटेंट के लिए ऐसा जरिया बनता है कि हर कोर्स और विषय का एक सक्रिय समूह बन जाता है. छात्रों को अपने रिसर्च और मौलिक योगदान से कोर्स के कंटेंट में कुछ जोड़ने और संशोधन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इस संशोधन को कोर्स में शामिल करना है या नहीं, इसका फैसला उनके शिक्षक करते हैं. ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म को अपने स्मार्टफोन पर चालू करके छात्र हमेशा अपने कोर्स में व्यस्त रहते हैं. इससे लर्निंग का डायनेिमक अनुभव होता है.
ई-लर्निंग की वजह से पारंपरिक क्लासरूम में स्टुडेंट की संख्या कम हो सकती है. वे अपनी मर्जी से कहीं भी रहते हुए लेक्चर अटेंड कर सकते हैं, असाइनमेंट जमा कर सकते हैं. एेसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि निकट भविष्य में यूनिवर्सिटीज अपनी प्रासंगिता खो देंगी क्योंकि भविष्य में परंपरागत कैंपस और परंपरागत क्लासरूम की जरूरत नहीं रह जाएगी. जुलाई 2014 की डोसेबो रिपोर्ट के मुताबिक, अपने स्थान से ही ई-लर्निंग का दुनिया भर में बाजार 2011 में 35.6 अरब डॉलर पहुंच गया. पांच साल का सकल वार्षिक ग्रोथ रेट करीब 7.6 फीसदी आंका गया है इसलिए इसकी कमाई 2016 तक 51.5 अरब डॉलर के आसपास पहुंच जानी चाहिए. कुल ग्रोथ रेट 7.6 फीसदी है, लेकिन दुनिया के कई हिस्सों में ग्रोथ रेट काफी अधिक लगती है. सबसे ऊंची ग्रोथ रेट 17.3 फीसदी एशिया में है. उसके बाद पूर्वी यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में क्रमश: 16.9 फीसदी, 15.2 फीसदी और 14.6 फीसदी है.
ई-लर्निंग के मामले में भारत के रिसर्च बताते हैं कि इंडस्ट्री 2018 तक 1.29 अरब डॉलर तक पहुंचने वाली है, जबकि कुछ अति आशावादी सूत्रों के मुताबिक बाजार काफी बड़ा हो सकता है, यानी 2018 तक 40-60 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है. जो भी हो, आम तौर पर इस पर सहमति है कि इंडस्ट्री 17-20 फीसदी मौजूदा सालाना ग्रोथ रेट से काफी प्रगति करने वाली है. भारत अभी ही दुनिया भर के बाजार के लिए ई-लर्निंग कंटेंट और उसके विकास का एक बड़ा स्रोत बन चुका है. इसका श्रेय हायर एजुकेशन में हमारे अति शिक्षित सस्ते कार्यबल को जाता है.
लेकिन यह कहानी सिर्फ व्यक्तिगत लर्नरों तक ही सीमित नहीं है. भारतीय कंपनियां भी तेजी से ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म को अपना रही हैं. कर्मचारियों की लगातार लर्निंग कंपनी के विकास के लिए जरूरी होती जा रही है और प्रमुख कंपनियां अपने कर्मचारियों को माइक्रो लर्निंग और क्वालिफिकेशन केंद्रित लर्निंग, दोनों के लिए ई-लर्निंग को बढ़ावा दे रही हैं.
देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. भारत में इंटरनेट उपभोक्ता इस साल 25 करोड़ के आसपास पहुंच जाएंगे. यह संख्या अमेरिका से होड़ लेगी और चीन के बाद दूसरे नंबर होगी. इसलिए ई-लर्निंग के मामले में विशाल बाजार की भारत की क्षमता निर्विवाद है. बड़े पैमाने पर नए उपभोक्ता इंटरनेट को पहली बार स्मार्टफोन पर हासिल कर रहे हैं, जो ई-लर्निंग का आदर्श, व्यक्तिगत और कारोबार की संभावनाओं वाला प्लेटफॉर्म है.