मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) ने अंडरग्रेजुएट मेडिकल करिकुलम में कुछ संशोधन किए हैं. एमबीबीएस सिलेबस में यह बदलाव 17 साल में पहली बार हुआ है.नए सिलेबस के मुताबिक अब फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स केवल थ्योरिटकल नॉलेज नहीं लेंगें बल्कि मरीजों के केस भी हैंडल करेंगे.
हाल ही में चेन्नई में आयोजित एक प्रेस कॉन्फेंस में MCI के चीफ कंसल्टेंट डॉक्टर एम राजलक्ष्मी ने कहा कि एमबीबीएस की मौजुदा पाठ्यक्रम की गुणवत्ता बढ़ाने की प्रक्रिया में जो संशोधन कार्य चल रहा था वह लगभग पूरा हो चुका है. फिलहाल MCI कॉपीराइट के लिए आवेदन करने में व्यस्त है ताकि सिलेबस को वेबसाइट पर डाला जा सके.
MCI के एक सूत्र से मिली जानकारी के मुताबिक, MCI ने 2011 में 'विजन 2015' के नाम से प्रस्तावित सिलेबस को स्वास्थ्य मंत्री को भेजा था लेकिन विवादों में फंसे होने की वजह से वह लागू नहीं हो पाया. इसके बाद डॉक्टरों की सर्वोच्च नियामक संस्था ने 2014 में सिलेबस में वापस से संशोधन कर ताजा संस्करण जमा किया है.
1997 में एमबीबीएस करिकुलम में प्रमुख सुधार की जरूरत देखी गई थी जिसको देखते हुए प्रथम वर्ष के लिए शैक्षणिक वर्ष की अवधि 18 महीने से घटाकर 12 महीने कर दी गई थी. इसके साथ ही 2007 में मेडिकल शिक्षा में नए कॉन्सेप्ट्स को लाया गया , लेकिन नए कॉन्सेप्ट को केवल मौजूदा सिलेबस में जोड़ा गया था.
वर्तमान में MCI ने सिलेबस को अपडेट करने के अलावा एक नई पहल भी की है. MCI ने मेडिकल टीचर्स की ट्रेनिंग का प्रस्ताव भी रखा है. कयास लगाए जा रहे हैं कि नए करिकलम की मदद से अभी तक जिस तरह की मेडिकल एजुकेशन स्टूडेंट्स को दी जाती रही है और जो योग्यता का निर्माण किया जाता रहा है उसमें बदलाव होगा.
स्टूडेंट्स को अब कलीनिक्ल प्रैक्टिस के लिए सेकेंड ईयर में जाने का इंतजार नहीं करना होगा बल्कि अब फर्स्ट ईयर में ही कलीनिक्ल प्रैक्टिस की सुविधा मुहैया कराई जाएगी.
वेल्लूर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में स्थित MCI के रीजनल सेंटर के कंवेनर डॉक्टर ध्याकानी सेल्वाकुमार ने कहा कि मेडिकल के पहले साल में ज्यादातर कॉलेजों में केवल थ्योरी पढ़ाई जाती है, लेकिन मौजूदा समय को देखते हुए हमें स्टू़डेंट्स को जल्द से जल्द मरीजों से मिलवाना होगा ताकि वे प्रैक्टिकल नॉलेज हासिल कर सकें.
नए सिलेबस के मुताबिक रेडियोलॉजी और सर्जरी को भी मेडिकल के पहले साल में पढ़ाया जाएगा, जिससे एमबीबीएस डॉक्टरों को क्लीनिकल इवैल्यूएशन में डायग्नोस्टिक और एनालिटिकल कंपीटेंस की जानकारी विकसित होगी.
डॉक्टर सेल्वाकुमार के मुताबिक MCI को इस बात का एहसास है कि अंडरग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन में बदलाव की जरूरत है क्योंकि यह जरूरी नहीं है कि जो स्टूडेंट्स एमबीबीएस की पढ़ाई करते हैं वह पीजी भी करें. कई स्टूडेंट्स ऐसे भी होते हैं जो एमबीबीएस के बाद प्रैक्टिस करते हैं और प्रैक्टिस में जाने वाले स्टू़डेंट्स के लिए नया सिलेबस काफी मददगार साबित होगा.
इसके अलावा डॉक्टर्स और स्टूडेंट्स का मानना है कि मौजूदा पाठ्यक्रम पढ़ने में काफी समय लग जाता है जो बाद में स्पेशलाइजेशन कर रहे स्टूडेंट्स के लिए कोई काम का नहीं होता. सूत्रों के मुताबिक नए सिलेबस में 17 अतिरिक्त विषय होंगे.