इस साल भी लाखों बच्चों ने सीबीएसई बोर्ड की दसवीं की परीक्षा दी, जिसमें सैकड़ों बच्चों ने बहुत अच्छे नंबर पाए. आपने उनमें से कई लोगों की कहानी पढ़ी, जिन्होंने दसवीं में टॉप किया, लेकिन यहां पढ़िए ऐसे बच्चों की कहानी जिन्होंने टॉप तो नहीं किया, लेकिन इनका 80 फीसदी तक नंबर लाना ही एक नजीर है. संघर्ष की ये कहानी सीबीएसई दसवीं की परीक्षा देने वाले निष्ठा और शुभम की है.
निष्ठा जो पैदाइशी बिना हाथों के पैदा हुई तो दूसरे हैं शुभम जो छह साल की उम्र में एक हादसे का शिकार हो गए. हादसे के बाद उनके दोनों हाथ और एक पैर काटना पड़ा. यहां से शुरू हुआ उनके संघर्ष का सफर.
शुभम के लिए यह सफर बेहद कठिन रहा. शुभम एक रिश्तेदार के घर गए थे. वहां एक्सटेंशन लाइन के तार से करंट का शिकार हो गए. आज वह एक पैर से खड़े होकर अपने चेहरे तक से कई काम करते हैं.
शुभम के पिता कलानंद ने बताया कि हादसे के बाद डॉक्टरों ने इलाज से उसे तो बचा लिया लेकिन उसके दोनों हाथ और एक पैर नहीं बचा पाए. वह बताते हैं कि किस तरह उनका पूरा परिवार बच्चे के साथ हुए हादसे के बाद टूट गया था. फिर भी हम कभी शुभम के सामने नहीं रोए.
ऐसे ही हालातों में मुश्किलों के दौर से निकलकर शुभम ने एक ही पैर को अपना सहारा बना लिया. वह उसी पैर से लिखना-पढ़ना और यहां तक कि चलना भी सीख गए. अब तो इसी एक पैर से लैपटॉप, आईपैड और मोबाइल भी चलाते हैं.
वहीं निष्ठा जन्म से ही हाथ न होने से दोनों पैरों को अपने हाथ बना चुकी है. निष्ठा की मां पूनम जैन ने बताया कि मैंने बचपन से ही निष्ठा को न सिर्फ उसके पैरों पर खड़े होना सिखाया, बल्कि पैरों से ही खाना-पीना, लिखना, बाल संवारना और कपड़े पहनना सब सिखा दिया. आज वह अपने पैरों से आई लाइनर से लेकर सारे मेकअप कर लेती है.
आज निष्ठा का एक ही सपना है कि वह आईएएस बनकर अपने माता-पिता के सपने पूरे करें. बता दें कि उनके पिता दीपक जैन ने निष्ठा की देखरेख के कारण कभी भी परमानेंट नौकरी नहीं की. वह छोटी सी मोबाइल की दुकान चलाते हैं.
निष्ठा और शुभम उन लोगों के लिए मिसाल हैं जो जीवन में छोटी-छोटी बातों से टूट जाते हैं. उन्हें इन दोनों से यह सीखना चाहिए कि जिंदगी कैसी भी हो, हम उससे हार नहीं मान सकते. निष्ठा और शुभम ने कुछ इसी तरह से अपने जीवन को हौसले के साथ इस तरह जिया कि आज लोग उन्हें देखकर गर्व महसूस करते हैं. उनके जज्बे के सामने उनकी शारीरिक कमजोरी घुटने टेक चुकी है.
शुभम कहते हैं कि मुझे पता है कि मेरी किस्मत सिर्फ एजुकेशन से ही बदल सकती है. मैं बड़ा बिजनेसमैन बनकर अपने माता-पिता का सहारा बनना चाहता हूं. आज तकनीक की मदद से बहुत कुछ हासिल हो सकता है.
निष्ठा की मां ने बताया कि बचपन में जब हम उसके लिए स्कूल खोजते तो कहीं एडमिशन नहीं मिलता. सामान्य बच्चों के साथ एडमिशन मिलता तो दूसरे पेरेंट्स शिकायत करते कि उनके बच्चे निष्ठा की नकल करके पैर से लिखने लगते हैं. फिर कड़कड़डूमा में अमर ज्योति स्कूल में दाखिला मिला जहां उसके जैसे कई बच्चे पढ़ते थे. यहां स्कूल में निष्ठा के भीतर आत्मविश्वास बढ़ा तो उसने पॉर्लर का काम भी सीख लिया.
शुभम के पिता कलानंद कहते हैं कि कई बार मैं अपने बेटे को देखकर बहुत हिम्मत से भर जाता हूं. उसमें इतना हौसला है कि वह कभी महसूस तक नहीं करता कि वह किसी सामान्य से अलग है. वह अपने हर काम खुद करता है. उसका छोटा भाई और मां भी उसकी पूरी मदद करते हैं.