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मामल्लापुरम कैसे बना महाबलीपुरम, विष्णु अवतार से ये कनेक्शन

मामल्लापुरम कैसे बना महाबलीपुरम, विष्णु अवतार से ये कनेक्शन
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महाबलीपुरम तमिलनाडु में समंदर किनारे बसे प्राचीन मंदिरों के इस शहर की खूबसूरती पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. महाबलीपुरम को मामल्लापुरम भी कहा जाता है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 11-12 अक्टूबर को भारत यात्रा पर आ रहे हैं. दोनों नेता इस बार तमिलनाडु के महाबलीपुरम में मिलने जा रहे हैं. आइए जानते हैं कैसे मामल्लापुरम का नाम महाबलीपुरम पड़ा और क्या है यहां का पूरा इतिहास.
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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मंदिरों का दौरा करेंगे. प्रधानमंत्री का इस मुलाकात के लिए महाबलीपुरम को चुनना कोई इत्तेफाक नहीं है, बल्कि इस शहर का चीन से 1700 साल पुराना इतिहास रहा है.
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तमिलनाडु शहर को हिंदू राजा नरसिंह देववर्मन ने स्थापित किया था. दरअसल, इस क्षेत्र में काफी समय पहले चीन, फारस और रोम के प्राचीन सिक्के मिले थे, इतिहासकारों के मुताबिक ये इस बात के सबूत देते हैं कि यहां पर बंदरगाह के जरिए इन देशों के साथ व्यापार होता था.  महाबलीपुरम साउथ चेन्नई के तट से 56 किलोमीटर की दूरी पर है.
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पल्लव वंश के सम्राट

आज जो समुद्री तट है वह कभी एक बार एक हलचल वाला बंदरगाह था. जिसका नाम ममलन (Mamallan) या 'महान पहलवान' से लिया था. वहीं नरसिंह देववर्मन प्रथम, पल्लव वंश के सम्राट के नामों में से एक, जिन्होंने 630 ईस्वी से 668 ईस्वी तक शासन किया था. मामल्लापुरम  के ज्यादातर स्मारकों को नरसिंह देववर्मन के राज में बनवाया गया था. मामल्लापुरम को खास तौर पर पत्थर की नक्काशी और पल्लव वंश के काल में पत्थरों से बने मंदिरों के लिए जाना जाता है. यह UNSCO की विश्व धरोहर स्थल की सूची में भी शामिल है.
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महाबलीपुरम का जन्म

पल्लवों की स्थापत्य और मूर्तिकला उपलब्धियों पर एक पुस्तक लिखी गई है. जिसके लेखक एस स्वामीनाथन ने कहा कि मामल्लापुरम  मूल नाम था, हालांकि इस शहर को महाबलीपुरम भी कहा जाता है. कुछ समय विजयनगर काल (14 वीं -17 वीं शताब्दी) के बहुत बाद में महाबलिपुरम नाम  बना. वहीं इस नाम का असुर राजा महाबली को मामल्लापुरम से सीधे जोड़ने के लिए कुछ भी नहीं है.



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विष्णु के पांचवें अवतार से संबंध

उन्होंने बताया कि, मामल्लापुरम के प्रसिद्ध वराह मंडपम (Varaha Mandapam) (वराह गुफा मंदिर) में पत्थर पर उकेरी गई त्रिविक्रम की कथा है. महाबली त्रिविक्रम के द्वारा मारे गए थे. जो भगवान विष्णु के पाचवें अवतार वामन का विशाल रूप है. भगवान की लीला अनंत है और उसी में से एक वामन अवतार है. हो सकता है कि महाबली का मामल्लापुरम के साथ एकमात्र संबंध हो. वहीं त्रिविक्रम पैनल भी वहां की कई रचनाओं में से एक है.
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वापस आते हैं मामल्लापुरम पर

स्वामीनाथन ने बताया कि आजादी के बाद, तमिलनाडु की प्रचलित द्रविड़ राजनीति ने यह सुनिश्चित किया कि मामल्लापुरम का मूल नाम बरकरार रखा जाए.1957 में एक सरकारी गजट में 'मामल्लापुरम' की घोषणा की गई थी, और उस नाम को तब दोहराया गया था जब 1964 में प्राचीन बंदरगाह शहर को एक ग्राम पंचायत घोषित किया गया था. "पौराणिक राजा (महाबली) के साथ जुड़ने के बजाय, यहां की सरकारों ने सुनिश्चित किया कि एक तमिल राजा की स्मृति में मूल नाम बहाल किया गया था.



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नरसिंह देववर्मन प्रथम को मामल्लापुरम की पत्थर की गुफाओं की खुदाई करने का श्रेय दिया जाता है. यह महेंद्रवर्मन प्रथम था, नरसिंह देववर्मन के पिता जिन्होंने 600 ईस्वी से 630 ईस्वी तक शासन किया. जो पल्लव रॉक-कट वास्तुकला के प्रथम अन्वेषक थे. नरसिंह देववर्मन प्रथम के उत्तराधिकारी थे.

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वहीं खास रूप से उनके पोते परमेस्वरवर्मन प्रथम (670-695 ईस्वी) और उनके महान पोते नरसिंहवर्मन द्वितीय (700-728 ई) ने मामल्लापुरम में निर्माण जारी रखा.
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नरसिंह देववर्मन द्वितीय, जिसे राजसिम्हा पल्लव के नाम से भी जाना जाता है, ने मामल्लापुरम में अन्य लोगों के बीच शानदार  मंदिर का निर्माण किया था. साथ ही कांचीपुरम में प्रसिद्ध कैलासनाथर मंदिर सहित कई अन्य स्थानों पर भव्य मंदिरों का निर्माण किया था.


सभी तस्वीरें फेसबुक से ली गई है.
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