scorecardresearch
 

बच्चे खेल-खेल में कह सकेंगे अपनी बात, मेंटल हेल्थ का ये प्रोग्राम होगा मददगार, CBSE को भेजा प्रस्ताव

क्लास 6 से 8 के बच्चों के लिए खास तौर पर यह प्रोग्राम डिजाइन किया गया है जिससे स्ट्रेस, एंग्जायटी और इमोशनल प्रेशर में बदलाव दिखने लगते हैं. मण‍िपुर के स्कूलों में इस प्रोजेक्ट पर सफल प्रयोग किया जा चुका है. जानिए क्या है टेक्नीक, एक्सपर्ट क्यों बच्चों के लिए इसे बेहतर विकल्प बता रहे हैं. 

Advertisement
X
government_school_kids
government_school_kids

आजकल के बच्चे भी बड़ों जितना ही प्रेशर झेल रहे हैं. स्कूल, होमवर्क, ट्यूशन, स्क्रीन टाइम, पेरेंट्स की उम्मीदें और ऊपर से सोशल मीडिया का दबाव... इन सबका असर उनके दिमाग पर पड़ रहा है. लेकिन अब एक नया गेम बच्चों को इस प्रेशर से बाहर निकालने में मदद कर सकता है वो भी बिना उन्हें ये एहसास कराए कि उनके साथ कोई थैरेपी चल रही है. 

Advertisement

क्या है ये 'एस' टेक्नीक? 
‘एस’ फॉर Social, Emotional and Ethical Learning यानी एक ऐसा तरीका जिसमें बच्चे कहानी, आर्ट, एक्टिंग और गेम्स के जरिए खुद को एक्सप्रेस करना सीखते हैं. इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि बच्चा खेल-खेल में ये समझ सके कि उसके अंदर क्या चल रहा है. उसे गुस्सा क्यों आता है, अकेलापन क्यों लगता है, और उसे कैसे संभाला जाए. इस टेक्नीक को स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और एटलस संस्था ने मिलकर डेवलप किया है और अब इसे भारत के स्कूलों में लाने की तैयारी हो रही है. 

मेघालय में हुआ ट्रायल, बच्चों पर दिखा कमाल का असर
ये प्रोग्राम पहले मेघालय के 150 स्कूलों में चार महीने तक चलाया गया. करीब 3000 बच्चों ने इसमें हिस्सा लिया और नतीजे चौंकाने वाले थे. इस टेक्नीक का इस्तेमाल करने वाले बच्चे ज्यादा शांत, समझदार और एक्सप्रेसिव हुए. वो अपने इमोशंस को दबाने की जगह खुलकर बात करने लगे. इससे साफ हो गया कि ये टेक्नीक बच्चों की मेंटल हेल्थ को पॉजिटिव तरीके से प्रभावित कर रही है. 

Advertisement

CBSE को भेजा गया प्रस्ताव 
अब इस पूरी टेक्नीक को CBSE स्कूलों में लागू करने के लिए एम्स दिल्ली के मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. नंद कुमार ने ऑफिशियल प्रस्ताव भेजा है. उनके मुताबिक बच्चों में तनाव, चिड़चिड़ापन, अकेलापन और संवादहीनता बढ़ रही है. एस तकनीक जैसे प्रयास उन्हें इन चीजों से उबरने में मदद कर सकते हैं. खेल और क्रिएटिविटी के जरिए जब बच्चे अपनी भावनाएं अभिव्यक्त करते हैं, तो उनकी मानसिक सेहत में सुधार होता है. 

नीति आयोग को भी जानकारी दी गई
इस प्रोग्राम से अब नीति आयोग को भी अवगत कराया गया है ताकि सरकार स्तर पर भी इसे सपोर्ट मिले और आगे चलकर इसे हर स्कूल में लागू किया जा सके चाहे वो सरकारी हो या प्राइवेट. 

इस प्रोग्राम की खास बातें
- बच्चों को योग और माइंडफुलनेस सिखाया जाएगा  
- एक्टिंग, आर्ट, कहानी और ड्रामा से मानसिक मजबूती आएगी  
- इमोशनल इंटेलिजेंस को डेवलप करने पर फोकस  
- 8 से 18 साल तक के बच्चों के लिए पूरी तरह से प्रैक्टिकल  
- किसी महंगे इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत नहीं – सिर्फ ट्रेनिंग और कंसिस्टेंसी

बच्चों के लिए क्यों जरूरी है ये बदलाव? 
आज के बच्चे स्क्रीन पर ज्यादा और खुद से कम जुड़े हैं. फीलिंग्स दबाने लगे हैं, बात नहीं करते, सिर्फ रिएक्शन देते हैं. अगर उन्हें खुद को समझने और एक्सप्रेस करने का मौका नहीं मिला, तो बड़ा होकर यही इमोशनल दबाव और भी बड़ी दिक्कतें बन सकता है.‘एस’ प्रोग्राम यही गैप भरकर बच्चे को खुद से जोड़ता है, उसकी इमोशनल हेल्थ को मज़बूत करता है.

Live TV

Advertisement
Advertisement