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नर्सरी से लेकर बड़ी क्लासेज तक... क्यों लगातार बढ़ रहा कोचिंग का क्रेज? समझ‍िए वजह

अब किताबों और क्लासरूम से आगे, बच्चों की पढ़ाई का नया अड्डा बन चुके हैं कोचिंग सेंटर. नर्सरी से लेकर टीनएज तक, हर लेवल पर कोचिंग का दायरा बढ़ रहा है. शहरी भारत इसमें सबसे आगे है, जहां हर तीसरा बच्चा कोचिंग ले रहा है. फीस भी सैकड़ों से हजारों तक. सवाल है, क्या पढ़ाई अब घर-स्कूल से निकलकर पूरी तरह 'कोचिंग इंडस्ट्री' पर टिक गई है?

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स्कूल के साथ कोच‍िंग में भी लाखों खर्च कर रहे पेरेंट्स (Representational Image By AI)
स्कूल के साथ कोच‍िंग में भी लाखों खर्च कर रहे पेरेंट्स (Representational Image By AI)

आज हर चार में से एक बच्चा प्राइवेट कोचिंग ले रहा है. शहरी इलाकों में यह आंकड़ा और भी ज्यादा है. यहां हर तीन में से एक छात्र कोचिंग जाता है. हैरानी की बात यह है कि प्री-प्राइमरी (नर्सरी-केजी) स्तर के करीब 11% बच्चों को भी कोचिंग मिल रही है, जबकि सेकेंडरी स्तर के 38% छात्र कोचिंग ले रहे हैं. हर स्तर पर शहरी भारत, कोचिंग लेने में ग्रामीण इलाकों से आगे है.

क्लास के साथ बढ़ती है कोच‍िंग की फीस

कोचिंग की फीस भी पढ़ाई के स्तर के साथ बढ़ती जाती है. प्री-प्राइमरी के बच्चों पर परिवार सालाना करीब ₹525 खर्च करते हैं, जबकि हायर सेकेंडरी स्तर पर यह खर्च ₹6,384 तक पहुंच जाता है. औसतन देखें तो शहरी परिवार सालाना ₹9,950 से ज्यादा कोचिंग पर खर्च करते हैं, जबकि ग्रामीण परिवार ₹4,548 खर्च कर पाते हैं.

हालांकि यह औसत आंकड़े हैं. असली तस्वीर तब सामने आती है जब हम उन बड़े और नामी-गिरामी कोचिंग सेंटरों को देखें जो आईआईटी और आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिले का वादा करके मोटी फीस वसूलते हैं.  हालिया CMS एजुकेशन सर्वे ने 52,085 परिवारों और 57,742 छात्रों से जुड़े डेटा जुटाकर यह रिपोर्ट तैयार की है. इसमें इन तमाम ट्रेंड्स का खुलासा किया गया है.

रिपोर्ट कहती है कि सभी स्तरों पर बच्चों की पढ़ाई का खर्च ज्यादातर परिवार के लोग ही उठाते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक जिन छात्रों ने स्कूल शिक्षा पर खर्च बताया, उनमें से 95% ने कहा कि उनकी पढ़ाई का मुख्य खर्च घर के अन्य सदस्यों ने उठाया. यह पैटर्न ग्रामीण (95.3%) और शहरी (94.4%) दोनों जगहों पर एक जैसा है. सिर्फ 1.2% छात्रों ने बताया कि वे सरकारी स्कॉलरशिप पर निर्भर हैं.

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प्राइवेट स्कूलाें के बच्चों पर हो रहा ज्यादा खर्च

रिपोर्ट में सरकारी स्कूल और प्राइवेट स्कूल की पढ़ाई की लागत में भी बड़ा फर्क दिखा. औसतन सरकारी स्कूलों में प्रति छात्र सालाना खर्च ₹2,863 है, जबकि प्राइवेट स्कूलों में यह खर्च ₹25,002 तक पहुंच जाता है. ग्रामीण और शहरी इलाकों में भी यह अंतर साफ है. ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्कूल की पढ़ाई पर प्रति छात्र सालाना खर्च ₹2,639 है, जबकि शहरी इलाकों में यह ₹4,128 है.

प्राइवेट स्कूलों की बात करें तो ग्रामीण परिवार औसतन ₹19,554 खर्च करते हैं, जबकि शहरी परिवारों का खर्च ₹31,782 तक पहुंच जाता है. सर्वे के मुताबिक आज भी 56% छात्र सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं और ग्रामीण इलाकों में ये अनुपात और ज्यादा 66% तक है.

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