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दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों की फीस वृद्धि पर अभिभावकों ने उठाए गंभीर सवाल, सरकार को ल‍िखा पत्र 

जस्टिस फॉर ऑल नाम के एक संगठन ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा कि स्कूल बिना किसी नियम-कानून के फीस बढ़ा रहे हैं और सरकार चुप्पी साधे हुए है. संगठन का दावा है कि स्कूलों में बाउंसरों की तैनाती तक हो रही है, जो बच्चों और अभिभावकों में डर पैदा कर रही है. इसे आपराधिक उगाही तक माना जा सकता है. 

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The Telangana government has raised the TS intermediate exam fees for 2025, affecting over nine lakh students (Photo: PTI)
The Telangana government has raised the TS intermediate exam fees for 2025, affecting over nine lakh students (Photo: PTI)

दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में फीस बढ़ोतरी का मुद्दा अब और गंभीर हो गया है. सैकड़ों अभिभावक और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सरकार पर कार्रवाई के लिए दबाव बना रहे हैं. हाल ही में एक पत्र के जरिए दिल्ली की मुख्यमंत्री को चेतावनी दी गई है कि प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि को रोकने के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं  वरना बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ सकता है. आखिर क्या है पूरा मामला, आइए जानते हैं. 

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स्कूलों की मनमानी से परेशान अभिभावक

दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में फीस कई गुना बढ़ा दी गई है जिससे माता-पिता परेशान हैं. जस्टिस फॉर ऑल नाम के एक संगठन ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा कि स्कूल बिना किसी नियम-कानून के फीस बढ़ा रहे हैं और सरकार चुप्पी साधे हुए है. संगठन का दावा है कि स्कूलों में बाउंसरों की तैनाती तक हो रही है, जो बच्चों और अभिभावकों में डर पैदा कर रही है. इसे आपराधिक उगाही तक माना जा सकता है. 

सरकार पर गंभीर आरोप

पत्र में कहा गया है कि शिक्षा विभाग और कानून विभाग के अधिकारी सरकार को गलत सलाह दे रहे हैं. उनका कहना है कि मौजूदा दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट, 1973 में फीस कंट्रोल करने का प्रावधान नहीं है, लेकिन यह दावा गलत है. संगठन के मुताबिक, एक्ट के सेक्शन 3, 5, 17, 18, और 24, साथ ही नियम 175, 177, और 180 के तहत सरकार स्कूलों के खातों की जांच कर फीस कम कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट के 1999 के मॉडर्न स्कूल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में भी यही कहा गया है. फिर भी अधिकारी नई कानून बनाने की बात कहकर समय खराब कर रहे हैं. 

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क्या है रास्ता 

सामाजिक कार्यकर्ताओं का सुझाव है कि सरकार स्कूलों के खातों की ऑडिट करे. अगर स्कूल सही हिसाब-किताब नहीं रखते तो उनकी फीस कम की जा सकती है. ऐसा करने से दिल्ली के 50% से ज्यादा स्कूलों की फीस पर काबू पाया जा सकता है. साथ ही अगर कोई भी माता-पिता शिकायत करे तो शिक्षा निदेशक को स्कूल के खातों की जांच कर फीस तय करने का आदेश देना चाहिए लेकिन सरकार इस दिशा में कदम क्यों नहीं उठा रही?

मुख्यमंत्री से की मांग

जस्टिस फॉर ऑल के एडवोकेट खगेश बी झा ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि वे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से स्वतंत्र राय लें और शिक्षा निदेशक को गलत सलाह देने से रोके. उनका कहना है कि अधिकारी जानबूझकर भ्रम पैदा कर रहे हैं, क्योंकि कुछ लोगों का प्राइवेट स्कूलों के साथ निजी हित जुड़ा हो सकता है. पत्र में मांग की गई है कि बच्चों की सुरक्षा के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं.

दिल्ली हाईकोर्ट की वर‍िष्ठ अधि‍वक्ता और श‍िक्षा मामलों की जानकार एडवोकेट श‍िखा बग्गा का कहना है कि हमारी कमाई का बड़ा हिस्सा स्कूल फीस में चला जाता है. सरकार को कुछ करना चाहिए, वरना हमारा परिवार चलाना मुश्किल हो जाएगा. यह मामला अब गंभीर मोड़ पर है. अगर सरकार जल्द कार्रवाई नहीं करती तो अभिभावक सड़कों पर उतर सकते हैं. सवाल यह है कि क्या दिल्ली की रेखा गुप्ता सरकार इस चुनौती से निपट पाएगी या फिर प्राइवेट स्कूलों की मनमानी चलती रहेगी. 

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