जब भी गाड़ी के टायर की बात आती है, हमारे दिमाग में एक काले रंग की छवि बनती है. इसी तरह, छाते की कल्पना करते समय भी अधिकांश लोगों के दिमाग में एक काले रंग का अम्ब्रैला होता है. वर्षों से हम काले टायर और आमतौर पर काले रंग के छाते देखते आ रहे हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इनका रंग काला क्यों चुना गया? इसके पीछे दिलचस्प वजह है. आइए जानते हैं.
छतरी का रंग काला क्यों?
सबसे पहले बात करते हैं काले छाते की. बाजार में आपको अधिकतर काले छाते दिखेंगे हालांकि, आजकल रंग बिरंगे और अलग-अलग डिजाइन वाले छाते भी आते हैं लेकिन पुराने समय में या आमतौर पर काले रंग के छाते ही ज्यादा बिकते हैं. छाते का रंग अक्सर काला इसलिए होता है क्योंकि काला रंग सूरज की किरणों को सबसे अधिक अवशोषित करता है. इससे छाते के नीचे की जगह ठंडी रहती है, क्योंकि काला रंग सूरज की गर्मी को अवशोषित कर लेता है और उसे छाते के बाहर ही रोक देता है. इसके अलावा, काले रंग के छाते गंदगी और धूल को भी कम दिखाते हैं, जिससे वे लंबे समय तक साफ-सुथरे दिखते हैं.
गाड़ी के टायर काले क्यों?
बात करें गाड़ियों के काले टायर की तो, सबसे पहले तो यह जानिए कि टायरों को बनाने के लिए रबर का इस्तेमाल किया जाता है. इस रबर का कलर सफेद होता है लेकिन यह इतनी सॉफ्ट होती है कि घिसने के बाद बहुत जल्दी खराब हो जाती है. गाड़ियां सालों तक चलती हैं ऐसे में रबड़ को मजबूत बनाने के लिए इसमें अलग-अलग मटेरियल का इस्तेमाल किया जाता है.
कड़ा करने के लिए ही इसमें कार्बन और सल्फर मिलाया जाता है. यही वजह होती है कि टायरों का रंग काला होता है. अगर रबड़ में कार्बन और सल्फर न मिलाया जाए तो इससे बनने वाले टायर बेहद खराब क्वालिटी के होंगे. वहीं, कम इस्तेमाल से ही ये टायर घिस जाएंगे और खराब हो जाएंगे. यही कारण है कि टायर रंगबिरंगे नहीं काले रंग के ही होते हैं. काले टायर पर सूरज की UV किरणों का बुरा असर भी नहीं हो पाता है.