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मन दुखी हो तो राहत देता है दर्द भरा संगीत? IIT मंडी के शोधकर्ताओं ने खोजी वजह

अक्सर टूटे दिलों के जख्म भरने के लिए लोग दर्द भरे गाने सुनते हैं. इससे उनके मन को थोड़ी-सी राहत मिलती है. आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने इस पर रिसर्च करके पाया कि कैसे सैड म्यूजिक सुनने से अल्फा ब्रेन एक्ट‍िविटी में इजाफा होता है. जानिए- कैसे की गई ये रिसर्च, क्या तथ्य आए सामने.

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प्रतीकात्मक फोटो (Image: Unsplash)
प्रतीकात्मक फोटो (Image: Unsplash)

अक्सर टूटे दिलों के जख्म भरने के लिए लोग दर्द भरे गाने सुनते हैं. इससे उनके मन को थोड़ी-सी राहत मिलती है. आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने इस पर रिसर्च करके पाया कि कैसे सैड म्यूजिक सुनने से अल्फा ब्रेन एक्ट‍िविटी में इजाफा होता है. जानिए- कैसे की गई ये रिसर्च, क्या तथ्य आए सामने. 

आईआईटी मंडी के निदेशक प्रो लक्ष्मीधर बेहरा के नेतृत्व में हुए इस शोध में दुख में दुख भरे संगीत से जुड़े कई सवालों के जवाब खोजे गए. 20 लोगों को इस रिसर्च में शामिल किया गया था. जारी प्रेस नोट में प्रो बेहरा ने बताया कि असल में म्यूजिक एक ऐसी विधा है जिसमें हमारी फीलिंग्स को प्रभावित करने की शक्त‍िशाली क्षमता होती है. यही कारण है कि बहुत से लोग खुशी में या कभी मूड ऑफ होने पर तो कभी अपना हौसला बढ़ाने के लिए अक्सर संगीत का सहारा लेते हैं. इसीलिए म्यूजिक को एक हीलिंग रेमेडी भी कहा जाता है. 

प्रो बेहरा ने कहा कि जब हम दुख या अपनी उदासी को कम करना चाहते हैं तो उस वक्त दर्द में डूबा उदास संगीत क्यों तलाश करते हैं? देखा जाए तो यह ऐसा कलात्मक जरिया है जिससे हम अपने भावों को व्यक्त कर पाते हैं, इससे हमें बेहतर महसूस होता है. इस रिसर्च में भी हम यह जानना चाहते थे कि जीवन में अच्छा अनुभव होने के बाद उदास संगीत सुनने पर मस्तिष्क कैसे प्रतिक्रिया करता है? 

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कैसे किया गया शोध 
बता दें कि शोधकर्ताओं ने इस शोध में जो 20 लोग शामिल किए थे, उन्हें किसी भी तरह म्यूजिक से ट्रेंड नहीं किया गया था. इसके पीछे वजह ये थी कि ये लोग पहले से तैयार रिएक्शन सोचेंगे तो ये स्टडी इतनी आधारभूत नहीं होगी. इसलिए शोध के दौरान अलग-अलग परिस्थितियों में इन सभी के ब्रेन में हो रही एक्टिविटी को मापा गया. इसे मापने के लिए शोधकर्ताओं ने इलेक्ट्रोएन्सेफ्लोग्राफी (ईईजी) तकनीक का उपयोग किया.

पाया गया ब्रेन रीजन में बदलाव 
शोधकर्ताओं ने ब्रेन के इमोशन और मेमोरी रीजन पर फोकस किया. इसे सिंगुलेट कॉर्टेक्स कॉम्प्लेक्स और पैराहिपोकैम्पस कहते हैं. इस दौरान ईईजी को तीन स्टेज में मापा गया था. पहले में, ईईजी को बिना किसी इनपुट के बेसलाइन में रिकॉर्ड किया गया था. दूसरे में प्रतिभागियों ने अपने एक दुखद अनुभव को याद किया. यह द सैड ऑटोबायोग्राफिकल रिकॉल (एसएआर) स्थिति कही गई. फिर तीसरे में, ईईजी को तब मापा गया जब उन्हें एक भारतीय शास्त्रीय राग 'मिश्रा जोगिया' राग सुनना था. 

दिमाग के इमोशनल रीजन को करता है टार्गेट
इस संगीत का चयन पांच संगीत विशेषज्ञों के एक पैनल द्वारा किया गया था. इसमें शोधकर्ताओं ने पाया कि एक दुखद अनुभव को याद करने पर ब्रेन में गामा वेव एक्टिवटी बढ़ती है, वहीं उदास संगीत सुनने से मस्तिष्क की अल्फा एक्टिविटी बढ़ जाती है. प्रो बेहरा समझाते हैं कि मिश्रा जोगिया राग (उदास संगीत) को सुनने से मस्तिष्क में अल्फा मस्तिष्क तरंग से जुड़े तीन-चैनल ढांचे के माध्यम से इमोशन और मेमोरी रीजन को बढ़ावा मिलता है.

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इस चैनल फ्रेम वर्क में देखें तो इमोशंस और मेमोरी रीजन में शामिल मस्तिष्क क्षेत्रों में सतर्कता में वृद्धि हुई है. सरल भाषा में कहें तो इसके बढ़ने से लोगों को राहत मिलती है. इस तरह IIT मंडी की इस खोज से पता चलता है कि उदास संगीत सुनते समय मस्तिष्क की गतिविधि SAR अवस्था और बेसलाइन रेस्ट‍िंग स्टेट दोनों से अलग-अलग होती है. 

 

 

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