मुर्दाघर, पोस्टमार्टम रूम... का नाम सुनते ही दिमाग में कई तरह की इमेज बनने लगती हैं. अगर इस रूम में जाने के लिए कहा जाए तो बहुत कम लोग ही इनमें जाने की हिम्मत जुटा पाएंगे. लोग लाशों को देखकर डरते हैं या फिर बदबू की वजह से वहां से भागते हैं... लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनका पूरा दिन ही इन लाशों के बीच गुजरता है. लाशों के साथ काम करना ही उनका पेशा है और लाशों की चीरफाड़ ही उनकी रोजी रोटी है. ऐसे में आज हम बताते हैं पोस्टमार्टम करने वाले असिस्टेंट की जिंदगी के बारे में, जिनके लिए एक ओब्जेक्ट की तरह है किसी की लाश...
कौन होते हैं पोस्टमार्टम असिस्टेंट?
पोस्टमार्टम असिस्टेंट एक ऐसा पद होता है, जिस पर काम करने वाले लोग पोस्टमार्टम रूम में काम करते हैं. इनका काम पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर को असिस्ट करना है. ये डॉक्टर के साथ काम करते हैं और डेड बॉडी से जुड़ी जानकारी डॉक्टर को देते हैं. इसके बाद डॉक्टर जांच कर पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार करते हैं. इनका काम डेड बॉडी को खोलना, डॉक्टर को रिपोर्ट देना और उसके बाद बॉडी को अच्छे से पैक करना है. ये पूरे दिन लाशों पर काम करते हैं.
लाश सिर्फ एक ओब्जेक्ट है...
पोस्टमार्टम असिस्टेंट के लिए डेड बॉडी सिर्फ एक ओब्जेक्ट है. अपने काम को लेकर पोस्टमार्टम असिस्टेंट मंजू देवी का कहना है कि उनके लिए लाशों के साथ चीरफाड़ करना एक काम है, जिसमें उनके इमोशन इनवॉल्व नहीं होते हैं. बता दें कि मंजू देवी अभी तक 20 हजार से ज्यादा पोस्टमार्टम कर चुकी हैं. उन्होंने लल्लनटॉप को दिए अपने इंटरव्यू में बताया था कि उनकी कई पीढ़ियां ये ही काम कर रही हैं और अब उनके बेटे ने भी ये काम करना शुरू कर दिया है. सबसे पहले हमारे ससुर के दादा ये काम करते थे और उसके बाद पीढ़ियों से हम ये काम कर रहे हैं.'
पहले सीना चीरते हैं...
मंजू देवी ने अपने काम के बारे में बताया, 'सबसे पहले डेड बॉडी को अंदर लाते हैं और फिर उसके कपड़े काटते हैं. इसके बाद पहले डेड बॉडी का सीना चीरते हैं और उसके बाद एब्डोमेन (पेट) वाला हिस्सा काटते हैं और उसके बाद स्कल को खोला जाता है. इसके बाद डॉक्टर इस पर रिपोर्ट तैयार करते हैं और फिर हम डेड बॉडी की फिर से सिलाई कर देते हैं और पैक करके वापस दे देते हैं.'
देखकर पता चल जाता है मौत का कारण
उन्होंने बताया, 'हर केस में वे अलग तरीके से ट्रीट करती हैं और चोट आदि के हिसाब से बॉडी में कट लगाती हैं. बॉडी को देखकर पता चल जाता है कि किस तरह से मौत हुई है. अगर सिर में चोट लगती है तो सिर में ब्लड क्लॉट रहता है, सीने में चोट लगती है तो पसलियां टूटी रहती है या फिर खून रहता है. ऐसे ये सब देखकर पता कर लिया जाता है. जैसे अगर किसी की मौत ट्रेन से कटकर हुई तो बॉडी में कार्बन मिलता है और अगर किसी ना मारकर पटरी पर गिराया है तो उसमें नॉर्मल कट के निशान दिखाई देते हैं.
डर नहीं लगता?
मंजू देवी साल 2000 से ये काम कर रही हैं. पोस्टमार्टम रूम में डर लगने की बात पर उन्होंने कहा कि उन्हें अब डर नहीं लगता है और वो अकेले ही उसमें काम करती हैं. उन्होंने बताया कि जब पहली बार उन्होंने किया तो थोड़ा अजीब लगा था, लेकिन अब आदत है और मजबूरी भी है. बच्चों को पालने के लिए ऐसा कर रहे हैं, क्योंकि पति काफी पहले गुजर गए थे. अब इसे सिर्फ काम मानते हैं और कर देते हैं.
कितनी मुश्किले हैं?
मंजू देवी ने बताया, 'पोस्टमार्टम रूम में कुछ सुविधाओं का अभाव होता है, जिस वजह से मुश्किलें होती हैं. जैसे पोस्टमार्टम रूम में एसी, पानी की व्यवस्था, लाइट आदि की व्यवस्था होनी चाहिए. इसके अलावा पहले सामाजिक मुश्किलें भी थीं, लोग हमारे काम को ठीक नहीं मानते थे. लेकिन, अब हमारी आदत हो चुकी है.'
कभी-कभी कुछ हिस्सों बाहर रख लेते हैं?
वैसे तो पोस्टमार्टम के बाद पूरी बॉडी को पैक कर दिया जाता है. लेकिन, कुछ स्थितियों में शरीर के कुछ हिस्सों को सिलाई के वक्त अंदर पैक नहीं किया जाता है और उन हिस्सों को बाहर ही रख लिया जाता है. मंजू देवी ने बताया कि ये स्थिति सिर्फ जहर वाले केस में होती है. उस वक्त जहर आदि की जांच के लिए उस बॉडी पार्ट को पैक नहीं किया जाता है.
कितने पैसे मिलते हैं?
अगर पैसे की बात करें तो पोस्टमार्टम असिस्टेंट को प्रति दिन के हिसाब से पैसे मिलते हैं. मंजू देवी ने बताया, उन्हें हर दिन के हिसाब से 380 रुपये मिलते हैं. लेकिन, ऐसा नहीं है कि यह रोज के हिसाब से मिलते हैं. अगर किसी दिन एक भी पोस्टमार्टम नहीं होता है तो उस दिन के पैसे नहीं मिलते. जिस दिन पोस्टमार्टम होता है, उसी दिन के पैसे मिलते हैं. इसमें भी खास बात ये है कि अगर किसी दिन एक से ज्यादा भी पोस्टमार्टम करने पड़े तो भी 380 रुपये ही मिलते हैं. एक पोस्टमार्टम हो या फिर 5 एक दिन के 380 रुपये ही मिलते हैं, जिस दिन एक भी नहीं होता, उस दिन कुछ नहीं मिलता.' इसके साथ ही मंजू देवी अपने पर्मानेंट होने की भी एक जंग लड़ रही है और उन्हें लंबे समय से पर्मानेंट नहीं किया गया.
मुर्दा खोल रहा था आंख...
मंजू देवी ने एक बार का अपना किस्सा बताया- 'एक बार एक डेड बॉडी की आंख बार-बार खुल रही थी. मैंने कई बार आंख बंद की फिर भी आंख खुल रही थी. उस वक्त मैंने जोर से उसकी आंख बंद की और उसे कहा कि शांत रहो तुम डेड बॉडी हो.'