Nalini Ranjan Sarkar: आजाद भारत को नया आकार देने में कई बुद्धिजीवी शिल्पकारों ने अपना योगदान दिया. नये राष्ट्र के निर्माण की हर ईंट में किसी विजिनरी की दूरदर्शिता झलकती है. ऐसे ही शख्स थे नलिनी रंजन सरकार, जिन्होंने देश में तकनीकी शिक्षा की जरूरत को समझते हुए, रीचर्स तक केन्द्रित हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूट बनाने की अवधारणा की. वह ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (AICTE) के पहले चेयरमैन बने, फजल-उल हक के नेतृत्व वाले बंगाल मंत्रालय में वित्त मंत्री रहे और कई जरूरी पदों पर अपनी सेवाएं दीं.
नलिनी रंजन सरकार का जन्म 1882 में बंगाल में हुआ. अपनी पढ़ाई कोलकाता से करने के बाद वह 1947 के बाद विधानचंद्र राय की सरकार में मंत्री बने. विभाजन के बाद उनका पूरा परिवार बंगाल चला आया. आज ही के दिन यानी 25 जनवरी 1953 को उनका निधन हो गया था.
कैसे देखा हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूट्स का सपना
बात दूसरे विश्वयुद्ध की है. ब्रिटिश इस युद्ध में भारी नुकसान झेल रहे थे और सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज ने यह साफ कर दिया था कि अंग्रेज अब भारतीयों की मदद से भारत पर शासन नहीं कर सकते. ऐसे में वर्ष 1938 में, एक नेशनल प्लानिंग कमेटी (NPC) की अवधारणा की गई. उस समय, सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष थे. जवाहरलाल नेहरू को बोस द्वारा NPC के पहले अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था.
मेघनाद साहा की अध्यक्षता में एनपीसी की एक समिति ने विकसित पश्चिमी देशों तरह ही देश में रीसर्च सुविधा युक्त तकनीकी संस्थानों की स्थापना की सिफारिश की. हालांकि, दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत के साथ, कांग्रेस मंत्रालयों के इस्तीफे, भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत और कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी के साथ NPC द्वारा किए गए विकास रुक गए.
नलिनी रंजन कमेटी की स्थापना
1945 में विश्व युद्ध समाप्त होते ही ब्रिटिश सरकार ने भारत में तकनीकी विकास के लिए उठाए जाने वाले कदमों का अध्ययन और सिफारिश करने के लिए नलिनी रंजन सरकार की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की. नलिनी रंजन के अलावा, समिति में 22 सदस्य थे जिनमें सर एस एस भटनागर, सर शोभा सिंह, सर जे सी घोष, डॉ के वेंकटरमन और अन्य शामिल थे.
1946 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में नलिनी सरकार ने सिफारिश की कि भारत को पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में कम से कम चार 'उच्च तकनीकी संस्थान' (HIT) स्थापित करने चाहिए. इन एचआईटी विश्वविद्यालयों का उद्देश्य मौजूदा तकनीकी संस्थानों और विभागों की तुलना में रीसर्च पर ज्यादा ध्यान देने के साथ बेहतर तकनीकी शिक्षा प्रदान करना था.
आजादी के बाद मिले IIT
सरकार ने इन सिफारिशों को स्वीकार कर लिया और फंड जारी करने के निर्देश दिए. इसी बीच, भारत को अंग्रेजी शासन से आजादी मिल गई और देश का भार नेहरू के नेतृत्व वाली नई सरकार के कंधों पर आ गया. नलिनी सरकार ने स्वयं भारत में पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री के रूप में पद ग्रहण किया. प्रस्तावित HIT का नामकरण अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) के रूप में किया गया. देश के पहले IIT का उद्घाटन तत्कालीन शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आज़ाद ने 18 अगस्त, 1951 को खड़गपुर में किया.